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नहीं चाहिए बुद्ध बैर की ।भला प्रेम का उन्माद यहाँसबका शिव कल्याण यहाँ है,पावें । सभी प्रसाद यहाँ।सब तीर्थों का एक तीर्थ यहहृदय पवित्र बना : लें हमआओ यहाँ अजातशत्रु बन,सबको मित्र बना लें हम।।

Answer»

[ उन्माद = अत्यधिक अनुराग। अजातशत्रु = जिसका कोई शत्रु न हो।]

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि ने लोगों से भारत माता मंदिर के गुणों को अपने जीवन-चरित्र में उतारने की बात कही है।

व्याख्या-उक्त पंक्तियों में कवि कह रहा है कि हमें ऐसी उन्नति कदापि प्रिय नहीं है जो ईष्र्या से युक्त हो। इस भारत माता के मंदिर में सबके कल्याण और प्रेम का अत्यधिक अनुराग भरा पड़ा है। यहाँ पर सभी का मंगल कल्याण है और  यहीं पर सभी को परम सुखरूपी प्रसाद की प्राप्ति होती है।

यह भारत माता का मंदिर सभी तीर्थों में उत्तम तीर्थ है क्योंकि यह किसी एक संप्रदाय या किसी धर्म से जुड़ा तीर्थ नहीं है। यद्यपि इसमें सभी तीर्थों का समावेश है, इसलिए इस तीर्थ का तीर्थाटन करके अपने हृदय को हम पवित्र बना लें। यह ऐसा पवित्र व उत्तम स्थान है जहाँ पर कोई किसी का शत्रु नहीं है इसलिए यहाँ बसकर हम सबको अपना मित्र बना लें। यहाँ पर रेखाओं के रूप में कल्याणकारी व मंगलकारी कामनाओं  (इच्छाओं) के चित्रों को उकेरकर उनको साकार रूप देकर हम अपने मनोभावों को पूर्ण कर लें। अर्थात् यह भारत माता का मंदिर ऐसा पवित्र स्थल है जहाँ ईष्र्या-द्वेष लेश मात्र भी नहीं है। ऐसे पावन मंदिर में बसकर हम अपने जीवन को धन्य बना सकने में और अपनी मानवता को साकार रूप दे पाने में सफल हो पाएँगे।

काव्यगत सौन्दर्य-
⦁    भारत माता के मंदिर के रूप में मानवता की साकार मूर्ति का चित्रांकन।
⦁    कवि की शब्द-शक्ति के द्वारा प्रेम से परिपूर्ण दुनिया का निर्माण करना।
⦁    भाषा-खड़ी बोली।
⦁    गुण–प्रसाद।
⦁    छन्द-गेय।
⦁    शैली मुक्तक
⦁    अलंकार-रूपक।
⦁    भाव-साम्यवियोगी हरि द्वारा रचित ‘विश्व मंदिर।।



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