1.

निम्नांकित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यात्मक प्रश्नों के उत्तर दीजिए-यह सब श्रेष्ठता या महत्ता कस्तूरबा में कहाँ से आयी? उनकी जीवन-साधना किस प्रकार की थी? शिक्षण के द्वारा उन्होंने बाहर से कुछ नहीं लिया था। सचमुच,उनमें तो आर्य आदर्श को शोभा देनेवाले कौटुम्बिक सद्गुण ही थे। असाधारण मौका मिलते ही और उतनी ही असाधारण कसौटी आ पड़ते ही उन्होंने स्वभावसिद्ध कौटुम्बिक सद्गुण व्यापक किये और उनके जोरों पर हर समय जीवन-सिद्धि हासिल की। सूक्ष्म प्रमाण में या छोटे पैमाने पर जो शुद्ध साधना की जाती है उसका तेज इतना लोकोत्तरी होता है कि चाहे कितना ही बड़ा प्रसंग आ पड़े, व्यापक प्रमाण में कसौटी हो, चारित्र्यवान् मनुष्य को अपनी शक्ति का सिर्फ गुणाकार ही करने का होता है।(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(3) चारित्र्यवान् मनुष्य को अपनी शक्ति का क्या करना होता है?(4) चारित्र्यवान व्यक्ति की क्या विशेषता होती है?(5) किस साधना का तेज लोकोत्तरी होता है?

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1.सन्दर्भप्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक हिन्दी गद्य में संकलित एवं काका कालेलकर द्वारा लिखित निष्ठामूर्ति कस्तूरबा पाठ से अवतरित है। प्रस्तुत अवतरण में कस्तूरबा के कौटुम्बिक सद्गुणों का वर्णन है।

2.रेखांकित अंशों की व्याख्याकस्तूरबा ने शिक्षण द्वारा कुछ नहीं ग्रहण किया था, बल्कि उन्होंने जो कुछ सीखा-समझा वह व्यवहारतः था । वास्तव में उनमें आदर्श कौटुम्बिक सद्गुण थे, बल्कि अवसर मिलने पर उन्होंने स्वभाव सिद्ध पारिवारिक सद्गुणों का विस्तार किया और उसी के बल पर जीवन में सफलता प्राप्त की। छोटे पैमाने पर जो साधना की जाती है उसमें असीम शक्ति होती है। चरित्रवान व्यक्ति सदैव कसौटी पर खरा उतरता है। कस्तूरबा एक चरित्रवान् महिला थीं। अपने चारित्रिक गुणों और कौटुम्बिक सदगुणों के कारण उन्होंने भारतीय समाज में ख्याति प्राप्त की।

3.चारित्र्यवान् मनुष्य को अपनी शक्ति का सिर्फ गुणाकर ही करना होता है।

4.चारित्र्यवान् व्यक्ति की विशेषता है कि उसमें कौटुम्बिक सद्गुण होते हैं।

5.शुद्ध साधना का तेज लोकोत्तरी होता है।



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