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कस्तूरबा के ‘मूक किन्तु तेजस्वी बलिदान’ की कहानी लिखिए।

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सती कस्तूरबा सिर्फ अपने संस्कारों के कारण पातिव्रत्य धर्म को, कुटुम्ब वत्सलता को और तेजस्विता को चिपकाये रहीं और उसी के बल पर महात्मा जी के महात्म्य की बराबरी में आ सकीं। आज हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी, बौद्ध आदि अनेक धर्मों के लोगों का यह विशाल देश अत्यन्त निष्ठा के साथ कस्तूरबा की पूजा करता है।



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