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पाठ को ‘अंधेरी नगरी’ शीर्षक क्यों दिया गया?

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कहावत है – ‘यथा राजा तथा प्रजा’ प्रस्तुत एकांकी इस कहावत को पूरी तरह चरितार्थ करता है। एकांकी में एक दीवार गिरने के अपराध में कइयों पर दोष मढ़ा जाता है, पर अपने-अपने बचाव में सब सफल हो जाते हैं। अंत में कोतवाल दोषी साबित होता है, जिसका घटना से कोई संबंध नहीं है। राजा उसे फांसी देने का हुक्म देता है। कोतवाल की पतली गरदन फांसी के बड़े फैदे के लायक नहीं, इसलिए मोटे-ताजे गोवर्धनदास को पकड़ा जाता है। अंत में महंत की चतुराई से राजा स्वयं फांसी पर चढ़ जाता है।

इस प्रकार अंधेरी नगरी सचमुच अंधेरी नगरौ है। यहाँ सच और झूठ में कोई भेद नहीं किया जाता। यहाँ न कोई कानून है, न व्यवस्था। अपराध कोई करता है और दंड किसी और को दिया जाता है। इसलिए पाठ को ‘अंधेरी नगरी’ शीर्षक दिया गया है।



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