InterviewSolution
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पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ।भए अति निठुर, मिटाय पहिचानि डारी,याही दुख हमैं जक लागी हाय-हाय है।तुम तौ निपट निरदई, गई भूलि सुधि,हमें सूल-सेलनि सो क्यौं हूँ न भुलाय है।मीठे-मीठे बोल बोलि, ठगी पहिलें तौ तब,अब जिय जारत, कहौ धौं कौन न्याय है।सुनी है कि नाहीं, यह प्रगट कहावति जू,काहू कलपाय है, सु कैसे कल पाय है। |
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Answer» कठिन शब्दार्थ – निठुर = निष्ठुर, निर्दय। जक = रट । निपट = पूर्णतः। सूल-सेलन = शूलों की चुभन, उपेक्षा की पीड़ा। क्यों हुँन = कैसे भी नहीं । जिय = जी, मन । जारत = जलाते हो। प्रगट = प्रचलित, सुपरिचित । का = किसी को। कलपाय = कष्ट देकर। कल पाय = सुख पा सकता है। सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत छंद हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि घनानंद के छंदों में से लिया गया है। कवि अपने प्रिय की निष्ठुरता और उपेक्षा से दु:खी होकर उसे ताने दे रहा है। व्याख्या – कवि अपने प्रिय (सुजान) को उलाहना देते हुए कहता है कि वह बहुत निष्ठुर हो गया है। उसने तो उसको पहचानना भी भुला दिया है। पुराने मधुर सम्बन्ध को उसने हृदय से निकाल दिया है। यही कारण है कि बेचारा कवि दिन रात हाय-हाय पुकारता रहता है। कवि कहता है-तुम तो पूरी तरह निर्दयता पर उतर आए, हमें भुला दिया, परन्तु तुमने हमें जो उपेक्षा के काँटों से छेदा है। उस असहनीय चुभन को हम कैसे भूल जाएँ। पहले तो हमें बड़ी मधुर-मुधर बातों से ठग लिया और अब ऐसे निष्ठुर व्यवहार से हमारे जी को जला रहे हो। भला यह कैसा न्याय है ? यह तो सरासर घोर अन्याय है। तुमने यह सुपरिचित कहावत तो सुनी होगी कि जो दूसरों को कलपाता है, पीड़ा पहुँचाता है, वह स्वयं भी सुखी नहीं रह पाता। विशेष –
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