InterviewSolution
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पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ।मीत सुजान, अनीत करौ जिन, हा हा न हूजियै मोहि अमोही।दीठि कौं और कहूँ नहिं ठौर फिरी दृग रावरै रूप की दोही।।एक विसास की टेक गहें, लगि आस रहे बसि प्रान बटोही।हौ घन आनन्द जीवन मूल दई ! कित प्यासनि मारत मोही।। |
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Answer» कठिन शब्दार्थ – मीत = मित्र, प्रिय ! सुजान = सज्जन, कवि की प्रेमिका का नाम । अनीत = अन्याय । जीन = मत, नहीं। मोहि = मोहित करके। अमोही = निष्ठुर । दीठि = दृष्टि। ठौर = स्थान। दृग = नेत्र। रावरै = आपके। दोही = दुहाई, प्रशंसात्मक घोषणा। विसास = विश्वास। टेक = आधार। आस = आशा । प्रान-बटोही = प्राणरूपी यात्री। घन आँनद = कवि घनांनद, आनंदरूपी बादल। जीवन मूरि = जीवन के आधार पर जल के भण्डार। दई = दैव, भाग्य । कित = कहाँ, क्यों। मोही = मुझको। सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत छंद हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि घनानंद के छंदों से लिया गया है। कवि अपने निष्ठुर प्रिय के उपेक्षा से पूर्ण व्यवहार से आहत होकर उसकी ‘हा हा खा रहा है कि वह ऐसा अन्याय न करे। व्याख्या – कवि घनानंद अपने प्रिय से कहते हैं- हे मेरे मीत, सुजान ! आप नाम से तो सज्जन हो, फिर मेरे साथ ऐसी अनीति क्यों कर रहे हो। मैं याचना करता हूँ कि पहले मुझे अपने रूप पर मुग्ध करके, अब इतने निष्ठुर मत बनो। मेरी आँखों के लिए आपके अतिरिक्त और कोई दूसरा स्थान या व्यक्ति भी नहीं है। जिसे देखकर ये जीवित रह सकें, मेरे नेत्र तो आपके सौन्दर्य की दुहाई सुनकर ही आप पर मुग्ध बने हुए हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि मुझ पर कृपा करोगे। इसी आशा पर मेरे प्राणरूपी यात्री मेरे शरीर में अब तक टिके हुए हैं, अन्यथा यह कब के निकल गए होते। आप तो आनंद घन हो, जिसमें जीवन का आधार जल भरा है। फिर यह दुष्ट दैव मुझे इस प्रकार प्यासा क्यों मार रहा है ? अपना प्रेम-जल बरसाकर मेरे प्यासे प्राण-बटोही की रक्षा करो। विशेष –
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