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‘प्रभुजी तुम चन्दन हम पानी’ कविता के आधार पर रैदास की भक्ति पर प्रकाश डालिए।

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रैदास निर्गुण सन्त थे। उनकी ज्ञान सत्संग एवं लौकिक अनुभव का प्रतिफल था। रैदास एक साधक के रूप में भक्ति भाव के विशेष आग्रही हैं। उनका विश्वास है कि भक्ति से रहित बाहरी आडम्बर निरर्थक है। जो व्यक्ति हृदय से भगवान के प्रति समर्पित नहीं केवल कर्मकाण्ड, तीर्थयात्रा, जप-तप आदि पर ही विश्वास करते हैं, उनकी मुक्ति असम्भव है।

वे मूर्ति पूजा, यज्ञ, पुराण-कथा आदि की भी उपेक्षा करते हैं। उनकी दृष्टि में ईश्वर कर्मा है, सर्वव्यापक है, अन्तर्यामी है तथा भक्ति से प्रसन्न होकर दीन-दलितों का उद्धार करने वाला है। ऐसे ईश्वर को प्राप्त करने के लिए भक्ति को छोड़कर वे अन्य कोई साधने उचित नहीं मानते।



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