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परिवार को नागरिकता का प्रशिक्षण स्थल क्यों कहा जाता है।

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मैजिनी के अनुसार, “बालक नागरिकता का प्रथम पाठ माता के चुंबन तथा पिता के संरक्षण के मध्य सीखता है। परिवार बालक में अनेक नागरिकता के गुणों का विकास करता है। इस संबंध में परिवार के प्रमुख कार्य निम्नांकित हैं-

⦁    स्नेह की शिक्षा-स्नेह की शिक्षा बालक सर्वप्रथम माता के चुंबन और माता के दुलार से सीखता है। टी० रेमण्ट का यह कथन पूर्णतया सत्य है कि “घर में ही घनिष्ठ प्रेम की भावनाओं का विकास होता है। माता-पिता का स्नेह बालक में भी प्रेम के बीज डाल देता है। बालक भी अपने माता-पिता से प्रेम करना सीख जाता है। भविष्य में यही पारिवारिक प्रेम व्यापक होकर सामाजिक प्रेम में परिणत हो जाता है।
⦁    सहयोग की शिक्षा-सामाजिक जीवन में सहयोग का विशेष महत्त्व है। सामाजिक जीवन का आधार सहयोग ही है। बालक सहयोग का प्रथम पाठ परिवार में ही पढ़ता है; क्योंकि वह देखता है कि परिवार के समस्त सदस्य मिल-जुलकर घर का कार्य करते हैं। विद्वान् बोसो के अनुसार, “परिवार वह स्थान है, जहाँ प्रत्येक नई पीढ़ी नागरिकता का यह नया पाठ सीखती है। कि कोई भी मनुष्य बिना सहयोग के जीवित नहीं रह सकता।”
⦁    सहानुभूति की शिक्षा-परिवार में माता-पिता बालक के दुःख को देखकर तुरंत चितिंत हो उठते हैं और दौड़-भाग कर उसके दुःख को दूर करने का प्रयास करते हैं। इसी सच्ची सहानुभूति का प्रदर्शन बालक पर गहरा प्रभाव डालता है और वह भी समय पड़ने पर परिवार के सदस्यों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करता है।
⦁    कर्त्तव्यपालन और आज्ञापालन की शिक्षा–आज्ञपालन और कर्तव्यपालन की शिक्षा भी बालक परिवार में ही सीखता है। प्रत्येक बालक अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करना अपना कर्तव्य समझता है। इस प्रकार वह अनुशासन का पाठ सीखता है।
⦁    नि:स्वार्थता की शिक्षा–माता-पिता अपने बालक से नि:स्वार्थ प्रेम करते हैं और उनका लालन-पालन किसी स्वार्थ की भावना से नहीं करते। इससे परिवार के सदस्यों में नि:स्वार्थता के गुण का विकास होता है।



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