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पर्वतीय वर्षा एवं वृष्टि-छाया प्रदेश किसे कहते हैं?

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निम्न वायुभार उच्च वायुभार को अपनी ओर आकर्षित करता है। यदि उच्च वायुभार राशि किसी जल आप्लावित क्षेत्र से होकर गुजरे तो वह आर्द्रतायुक्त हो जाती है। जब इसके मार्ग में कोई पर्वत शिखर या पठार अवरोधस्वरूप उपस्थित होता है तो वायुराशि द्रवीभूत होकर वर्षा करती है। इस प्रकार होने वाली वर्षा को पर्वतीय वर्षा या उच्चावचीय वर्षा कहते हैं। मध्यवर्ती अक्षांशों में शरद् ऋतु एवं शीत ऋतु के आरम्भ में तथा मानसूनी प्रदेशों में ग्रीष्म ऋतु में इसी प्रकार की वर्षा होती है।
वायुराशियों द्वारा अवरोध के सम्मुख वाले भाग में अत्यधिक वर्षा होती है, जबकि विमुख भागों तक पहुँचते-पहुँचते वायुराशियों की आर्द्रता समाप्त हो जाती है। इन प्रदेशों को वृष्टि-छाया प्रदेश के नाम से पुकारा जाता है। उदाहरण के लिए भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी पवनों की अरब सागरीय शाखा द्वारा पश्चिमी घाट के वायु अभिमुख ढाल पर 640 सेमी (महाबलेश्वर में) वर्षा हो जाती है, जबकि इसके विमुख ढाल पर पुणे में मात्रा 50 सेमी या उससे भी कम वर्षा होती है। अत: दक्षिण भारत का यह क्षेत्र वृष्टि-छाया प्रदेश कहलाता है।



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