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राजनीतिक सिद्धान्त का विषय-क्षेत्र और उद्देश्य लिखिए।

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मनुष्य दो मामलों में अद्वितीय है-उसके पास विवेक होता है और उसमें गतिविधियों द्वारा उसे व्यक्त करने की योग्यता होती है। मनुष्य के पास भाषा का प्रयोग और एक-दूसरे से संवाद करने की क्षमता भी होती है। अन्य प्राणियों से अलग मनुष्य अपनी अन्तरतम भावनाओं और आकांक्षाओं को व्यक्त कर सकता है; वह जिन्हें अच्छा और वांछनीय मानता है, अपने उन विचारों को वह दूसरों के साथ बाँट सकता है और उन पर चर्चा कर सकता है। राजनीतिक सिद्धान्त की जड़े मानव अस्मिता के इन जुड़वाँ पहलुओं में होती है। यह कुछ विशिष्ट बुनियादी प्रश्नों का विश्लेषण करता है; जैसेसमाज को किस प्रकार संगठित होना चाहिए? हमें सरकार की आवश्यकता क्यों है? सरकार का सर्वश्रेष्ठ रूप कौन-सा है? क्या कानून व्यक्ति की आजादी को सीमित करता है? राजसत्ता की अपने नागरिकों के प्रति क्या देनदारी होती है? नागरिक के रूप में एक-दूसरे के प्रति हमारी क्या देनदारी होती है?

राजनीतिक सिद्धान्त इस तरह के प्रश्नों की जाँच करता है और राजनीतिक जीवन को अनुप्राणित करने वाले स्वतन्त्रता, समानता और न्याय जैसे मूल्यों के विषय में सुव्यवस्थित रूप में विचार करता है। यह इनके और अन्य सम्बद्ध अवधारणाओं के अर्थ और महत्त्व की विवेचना भी करता है। यह अतीत और वर्तमान के कुछ प्रमुख राजनीतिक चिन्तकों को केन्द्र में रखकर इन अवधारणाओं की वर्तमान परिभाषाओं को स्पष्ट करता है। यह विद्यालय, दुकान, बस, ट्रेन या सरकारी कार्यालय जैसे दैनिक जीवन से जुड़ी संस्थाओं में स्वतन्त्रता या समानता के विस्तार की वास्तविकता की जाँच भी करता है। और आगे जाकर, यह देखता है कि वर्तमान परिभाषाएँ कितनी उपयुक्त हैं और कैसे वर्तमान संस्थाओं (सरकार, नौकरशाही) और नीतियों के अनुपालन को अधिक लोकतान्त्रिक बनाने के लिए उनका परिमार्जन किया जा सकता है। राजनीतिक सिद्धान्त का उद्देश्य नागरिकों को राजनीतिक प्रश्नों के बारे में तर्कसंगत ढंग से सोचने और सामयिक राजनीतिक घटनाओं को सही तरीके से आँकने का प्रशिक्षण देना है।



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