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Answer» भारत में राष्ट्रीय आय की गणना सम्बन्धी कठिनाइयाँ भारत में राष्ट्रीय आय को ज्ञात करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना होता है। इनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं 1. वस्तुओं व सेवाओं का मूल्य मुद्रा में जानने में कठिनाई – राष्ट्रीय आय की गणना मुद्रा या द्रव्य में की जाती है। परन्तु हम अपने दैनिक जीवन में देखते हैं कि अनेक वस्तुएँ तथा सेवाएँ ऐसी होती । हैं जिनके मूल्य को द्रव्य में नहीं मापा जा सकता; जैसे-माँ व स्त्री की सेवाएँ, प्रेम, दया, अपने द्वारा उत्पादित वस्तुओं को स्वयं उपभोग करना आदि। राष्ट्रीय आय की गणना के लिए समस्त उत्पादित वस्तुओं का द्राव्यिक मूल्य ज्ञात करना अनिवार्य है। भारत में कृषक स्व-उत्पादित वस्तुओं का एक बड़ा भाग स्वयं ही उपभोग कर लेते हैं। अत: भारत में कृषि क्षेत्र में उत्पादित वस्तुओं का ठीक-ठीक द्राव्यिक मूल्य ज्ञात करना अत्यन्त कठिन कार्य है। 2. आँकड़ों का विश्वसनीय न होना – राष्ट्रीय आय का अनुमान तभी ठीक प्रकार से लगाया जा सकता है, जबकि उत्पादन आय से सम्बन्धित प्राप्त होने वाले आँकड़े ठीक एवं विश्वसनीय हों। परन्तु भारत की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग अशिक्षित है। अत: वह अपने आय-व्यय का हिसाब ठीक प्रकार से नहीं रख पाता है, जिसके कारण राष्ट्रीय आय की गणना करने में कठिनाई आती है। 3. व्यावसायिक विशिष्टीकरण का अभाव – हम जानते हैं कि देश में जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग कृषि कार्य में लगा हुआ है। कृषि पर जनसंख्या का भार इतना अधिक है कि कृषकों की जीविका केवल कृषि से नहीं चल पाती है। अतः अपनी जीविका को चलाने के लिए कुटीर उद्योग चलाने पड़ते हैं या लघु उद्योगों में कार्य करना होता है। इस कथन से स्पष्ट हो जाता है कि देश में व्यावसायिक विशिष्टीकरण का अत्यन्त अभाव है जिससे देश की राष्ट्रीय आय को अनुमान करना अत्यन्त कठिन कार्य हो जाता है। 4. विभिन्न क्षेत्रों की भिन्न-भिन्न परिस्थितियाँ – भारत में विभिन्न क्षेत्रों की परिस्थितियाँ भिन्न-भिन्न हैं। अत: किसी क्षेत्र विशेष सम्बन्धी जानकारी को अन्य क्षेत्रों में प्रयोग में नहीं लाया जा सकता। इसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आय की गणना में अनेक व्यावसायिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। 5. दोहरी गणना की सम्भावना बनी रहना – राष्ट्रीय आय में प्राय: दोहरी गणना की सम्भावना बनी रहती है। 6. अविकसित देशों में राष्ट्रीय आय की उचित गणना का न होना – प्रायः अविकसित देशों में राष्ट्रीय आय की उचित गणना नहीं हो पाती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि अविकसित देशों की अर्थव्यवस्था में अनेक वस्तुओं व सेवाओं का आदान-प्रदान द्रव्य के माध्यम से नहीं होता है। 7. मूल्य ह्रास का सही अनुमान न होना – मूल्य ह्रास वे प्रतिस्थापन का अनुमान सही ने लगा पाना, क्योंकि ये अनुमानित समय के पूर्व ही घटित हो सकते हैं; अतः सही राष्ट्रीय आय की गणना कठिन है। 8. मूल्यांकन की समस्या – उत्पादन गणना विधि के अनुसार उत्पादित वस्तुओं की मात्राओं को मूल्यों से गुणा करके विभिन्न गुणनफलों के योग को राष्ट्रीय आय कहा जाता है। परन्तु इसमें यह कठिनाई है कि गणना करते समय थोक या फुटकर कौन-सी कीमत से गणना करनी चाहिए, स्पष्ट नहीं होता। 9. हस्तान्तरण आय और उत्पादक आय में भेद करना कठिन – जबे सरकार बाजार से ऋण लेकर उनका प्रयोग अनुत्पादक कार्यों में करती है, तब ऐसे ऋणों पर ब्याज ‘हस्तान्तरण आय कहलाती है। परन्तु जब उनको प्रयोग उत्पादक कार्यों में होता हैं तो उन ऋणों पर ब्याज उत्पादक आय’ कहलाती है। राष्ट्रीय आय में हस्तान्तरण आय को नहीं जोड़ा जाता, जबकि उत्पादक आय को जोड़ा जाता है। यह ज्ञात करना कठिन है कि ऋण का कितना भाग उत्पादक है और कितना अनुत्पादक, जिससे राष्ट्रीय आय का अनुमान सही नहीं होता है। 10. कुटीर उद्योगों का उत्पादन – कुटीर उद्योग प्रायः अशिक्षित व्यक्तियों द्वारा संचालित होते हैं जो कि अपने व्यवसाय के ठीक-ठीक आँकड़े रखने में असमर्थ होते हैं। अत: इस क्षेत्र के उत्पादक आँकड़े अविश्वसनीय होते हैं। 11. वस्तुओं और सेवाओं का चुनाव – वस्तुओं और सेवाओं के चुनाव के सम्बन्ध में यह निर्णय करना अत्यधिक कठिन हो जाता है कि अमुक वस्तु अर्द्धनिर्मित है या अन्तिम।
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