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Answer» राष्ट्रीय आय का अर्थ एवं परिभाषाएँ ‘राष्ट्रीय आय अथवा लाभांश उत्पादन के साधनों द्वारा किसी एक निश्चित समय में (प्रायः एक वर्ष में) उत्पादन किये गये पदार्थों एवं सेवाओं की शुद्ध मात्रा होती है अर्थात् एक वर्ष की अवधि में किसी देश में जितनी वस्तुओं और सेवाओं का कुल उत्पादन होता है, उसे ही उस देश की वास्तविक राष्ट्रीय आय कहते हैं। राष्ट्रीय आय या राष्ट्रीय लाभांश की परिभाषा भिन्न-भिन्न अर्थशास्त्रियों ने भिन्न प्रकार से दी है, जिनमें से कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं (i) प्रो० मार्शल के अनुसार – ‘किसी देश के श्रम और पूँजी उसके प्राकृतिक साधनों पर कार्य करके, प्रतिवर्ष भौतिक तथा अभौतिक पदार्थों तथा समस्त प्रकार की सेवाओं की एक शुद्ध मात्रा उत्पन्न करते हैं। इसमें विदेशी विनियोग से प्राप्त आय भी जोड़ देनी चाहिए। यही देश की शुद्ध वास्तविक वार्षिक आय या राष्ट्रीय लाभांश है।’ शुद्ध आय से मार्शल का अभिप्राय है, कुल उत्पादन (Gross Product) में से ये राशियाँ घटा देनी चाहिए ⦁ चल पूँजी का प्रतिस्थापना व्यय, ⦁ अचल पूँजी का मूल्य ह्रास, मरम्मत और प्रतिस्थापना के लिए किया गया व्यय, ⦁ कर, ⦁ बीमे की प्रीमियम आदि। गुण – मार्शल की परिभाषा सरल और स्पष्ट है। मार्शल की परिभाषा में निम्नलिखित बातें पायी जाती हैं ⦁ राष्ट्रीय लाभांश देश में उत्पन्न होने वाली वास्तविक उत्पत्ति (Net Product) का योग है। ⦁ इसमें सभी प्रकार की सेवाएँ भी सम्मिलित की जाती हैं। ⦁ इसमें विदेशों से प्राप्त होने वाली निबल आय भी सम्मिलित की जाती है। ⦁ राष्ट्रीय लाभांश की गणना प्रतिवर्ष की जाती है। प्रो० मार्शल की परिभाषा की आलोचनाएँ ⦁ राष्ट्रीय आय की गणना अत्यन्त कठिन है। प्रो० मार्शल ने पदार्थों एवं सेवाओं को राष्ट्रीय आय की गणना का आधार माना है; अत: उनकी गणना करना तथा समस्त पदार्थों का मूल्य ज्ञात करना कठिन होता है। इस कारण राष्ट्रीय आय की गणना ठीक-ठीक नहीं हो सकती।। ⦁ प्रो० मार्शल की परिभाषा सैद्धान्तिक दृष्टि से अत्यन्त श्रेष्ठ होते हुए भी व्यावहारिक दृष्टि से पूर्ण नहीं है। (ii) प्रो० पीगू के विचार – पीगू ने मार्शल की परिभाषा की कमियों को दूर करने का प्रयत्न किया। प्रो० पीगू ने राष्ट्रीय लाभांश की निम्नलिखित परिभाषा दी है-“राष्ट्रीय लाभांश किसी समुदाय की वास्तविक आय (जिसमें विदेशों से प्राप्त आय भी सम्मिलित है) का वह भाग है जो द्रव्य के द्वारा मापा जा सकता है।” प्रो० पीगू ने राष्ट्रीय आय में उत्पत्ति के केवल उसी भाग को सम्मिलित किया है जिसका द्रव्य में मूल्यांकन किया जा सकता है। आलोचनाएँ ⦁ प्रो० पीगू की परिभाषा में संकीर्णता का दोष विद्यमान है, क्योंकि प्रो० पीगू के अनुसार, राष्ट्रीय आय समस्त उत्पादन नहीं, वरन् उसका केवल वह भाग है जिसे द्रव्य में मापा जा सकता है। ⦁ प्रो० पीगू की परिभाषा में विरोधाभास पाया जाता है। यदि कोई कार्य द्रव्य के बदले में किया जाए तब वह राष्ट्रीय आय में सम्मिलित किया जाएगा और यदि वही कार्य सेव-भाव से किया जाए तो राष्ट्रीय आय में सम्मिलित नहीं किया जाएगा। गुण – प्रो० पीगू की परिभाषा में संकीर्णता एवं विरोधाभास के अवगुण होते हुए भी यह अधिक व्यावहारिक है तथा इसके द्वारा राष्ट्रीय लाभांश की गणना सरलतापूर्वक की जा सकती है। प्रो० फिशर के विचार – प्रो० मार्शल तथा प्रो० पीयू ने राष्ट्रीय आय की परिभाषा उत्पादन की दृष्टि से की है, जबकि प्रो० फिशर ने राष्ट्रीय आय की परिभाषा उपभोग की दृष्टि से की है। (iii) प्रो० फिशर के अनुसार, “राष्ट्रीय लाभांश अथवा आय में केवल वे सेवाएँ सम्मिलित की जा सकती हैं जो कि अन्तिम उपभोक्ताओं को प्राप्त होती हैं, चाहे वे सेवाएँ भौतिक परिस्थितियों से उत्पन्न हुई हों या मानवीय परिस्थितियों से। प्रो० फिशर ने अपनी परिभाषा में इस बात पर विशेष बल दिया है कि राष्ट्रीय आय में वर्ष की वास्तविक उत्पत्ति का केवल वह भाग सम्मिलित किया जाता है जिसका प्रत्यक्ष रूप से उपभोग किया जाता है। उन्होंने बताया कि एक पियानो या ओवर कोट जो इस वर्ष मेरे लिए बनाया गया है, इस वर्ष की आय का अंश नहीं है, बल्कि केवल पूँजी में वृद्धि है। केवल वे सेवाएँ जो इस वर्ष के भीतर मुझे प्राप्त हैं, आय में सम्मिलित की जाएँगी। आलोचना प्रो० फिशर का मत तर्कसंगत है, किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से अनुपयुक्त है, क्योंकि इस आधार पर राष्ट्रीय आय की गणना करना असम्भव है। उपर्युक्त तीनों विचारकों की परिभाषाओं का विश्लेषण करने के उपरान्त हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि प्रो० मार्शल की परिभाषा ही अधिक उचित है।
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