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सामाजिक या नागरिक अधिकारों को संक्षेप में लिखिए।

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सामाजिक या नागरिक अधिकार
सामाजिक या नागरिक अधिकार राज्य के प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के प्राप्त होते हैं। मुख्य सामाजिक अधिकार निम्नलिखित हैं

⦁     जीवन-रक्षा का अधिकार- प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन की सुरक्षा चाहता है। यदि व्यक्ति को जीने का अधिकार प्राप्त न हो या उसके जीवन की सुरक्षा न हो, तो उस दशा में उसका सामाजिक जीवन कष्टदायी हो जाएगा। वह प्रत्येक क्षण अपने जीवन की सुरक्षा के लिए चिन्तित रहेगा और समाज के किसी भी कार्य में अपना योगदान नहीं कर सकेगा। भारत के परिप्रेक्ष्य में इस अधिकार को मौलिक अधिकारों (अनु० 21) के अन्तर्गत विशेष महत्त्व की स्थिति प्रदान की गई है।
⦁     सम्पत्ति का अधिकार- सम्पत्ति व्यक्ति की आवश्यकताओं की पूर्ति का एक प्रमुख साधन है, . | इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार उसका उपभोग करने का अधिकार प्राप्त होना। चाहिए। इस अधिकार के अन्तर्गत व्यक्ति को सम्पत्ति अर्जित करने, खरीदने, बेचने और उसका उपभोग करने का अधिकार है। यूनानी विचारक अरस्तू का मत था कि सम्पत्ति व्यक्ति के लिए उतनी ही आवश्यक है, जितनी कि परिवार या कुटुम्ब की आवश्यकता। इसके विपरीत कुछ विद्वानों का मत है कि सम्पत्ति ही सब कष्टों की जननी है। उनके अनुसार सम्पत्ति पूँजीवादी व्यवस्था को जन्म देती है और समाज में वर्ग-संघर्ष उत्पन्न करती है। अत: समाज में सम्पत्ति का न्यायपूर्ण वितरण होना आवश्यक है। सम्भवतः इसी दृष्टिकोण को देखते हुए भारत के संविधान में सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की श्रेणी से पृथक् कर दिया गया है।
⦁     शिक्षा का अधिकार- शिक्षा मानवे व्यक्तित्व के विकास की आधारशिला है। समाज और राष्ट्र का विकास शिक्षित व्यक्तियों पर ही आधारित है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार होना चाहिए।
⦁     धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार- मनुष्य की आध्यात्मिक प्रगति के लिए धर्म जीवन का एक अनिवार्य तत्त्व है। प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी धर्म का अनुयायी होता है। अतः राज्य को धर्मनिरपेक्ष रहकर प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार प्रदान करना चाहिए। जैसा कि रूसो को कथन है, “जब तक उनके सिद्धान्त नागरिकता के कर्तव्यों के प्रतिकूल न हों, व्यक्ति को उन सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु होना चाहिए, जो दूसरों के प्रति सहिष्णु है।”
⦁     लेखन एवं विचाराभिव्यक्ति को अधिकार- राज्य को चाहिए कि वह प्रत्येक व्यक्ति को लेखन, भाषण और विचाराभिव्यक्ति का अधिकार प्रदान करे। इस अधिकार द्वारा व्यक्ति का मानसिक विकास सम्भव होता है, लेकिन मनुष्य को यह अधिकार कानून की सीमा के अन्तर्गत ही प्रदान किया जाना चाहिए।
⦁     सभा करने व संगठन बनाने का अधिकार- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह एकाकी जीवन व्यतीत नहीं कर सकता है; अतः उसे सभा करने या समुदाय बनाने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए। लेकिन इस अधिकार का उपभोग राज्य के कानूनों की सीमा के अन्तर्गत ही होना चाहिए।
⦁     आवागमन का अधिकार- इस अधिकार के अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति को राज्य की सीमा के अन्तर्गत स्वतन्त्रतापूर्वक ऐक स्थान से दूसरे स्थान को जाने की सुविधा प्राप्त होनी चाहिए। गिलक्राइस्ट के अनुसार, स्वतन्त्रतापूर्वक घूमने के अधिकार के अभाव में जीवन का कोई भी अर्थ नहीं है।
⦁     पारिवारिक जीवन व्यतीत करने का अधिकार- परिवार सामाजिक जीवन की आधारशिला है; अतः प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार पारिवारिक जीवन व्यतीत करने को अधिकार भी प्राप्त होना चाहिए। परन्तु इस अधिकार का यह अर्थ कदापि नहीं है। कि परिवार समाज की नैतिक सीमाओं का उल्लंघन करे और परिवार के सदस्यों को दुराचार की शिक्षा दे। ऐसी स्थिति में किसी व्यक्ति के पारिवारिक जीवन में भी राज्य द्वारा हस्तक्षेप किया जा सकता है।
⦁     मनोरंजन का अधिकार- प्रत्येक व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक श्रम करने के उपरान्त मनोरंजन की आवश्यकता होती है। अत: व्यक्ति को अवकाश के समय मनोरंजन का अधिकार भी प्राप्त होना चाहिए।
⦁     सांस्कृतिक अधिकार- इस अधिकार के अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार प्राप्त है कि वह अपनी भाषा एवं साहित्य को अध्ययन व विकास कर सके। अल्पसंख्यकों के लिए यह अधिकार बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
⦁     व्यवसाय की स्वतन्त्रता का अधिकार- व्यवसाय की स्वतन्त्रता का अभिप्राय है कि प्रत्येक व्यक्ति को इस बात की स्वतन्त्रता हो कि वह अपनी इच्छा तथा योग्यतानुसार व्यवसाय का चयन कर सके।



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