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“सार्वभौम वणिग्वृत्ति” से लेखक का क्या आशय है?

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वणिक व्यापारी को कहते हैं। आजकल विश्व के समस्त देश व्यापारी बन चुके हैं। वे अपने यहाँ के कल-कारखानों में तैयार माल को दूसरे देशों के बाजारों में बेचते हैं। इसके कारण उनमें गहरी स्पर्धा होती है तथा वे निर्बल देशों का शोषण करते हैं। इसी को “सार्वभौम वणिग्वृत्ति” कहा गया है।



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