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“जीवन के और अनेक व्यापारों में भी भीरुता दिखाई देती है।” लेखक के अनुसार वे व्यापार कौन-कौन-से है?

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शुक्ल जी का कहना है कि जीवन के और अनेक व्यापारों में भीरुता दिखाई देती है। धन की हानि होने के भय से बहुत से व्यापारी किसी विशेष व्यापार में हाथ नहीं डालते । हारने तथा अपमानित होने के भय से अनेक पण्डित शास्त्रार्थ से बचने का प्रयास करते हैं। इसमें व्यापारी को अपनी क्षमता तथा व्यापार-कौशल पर विश्वास नहीं रहता। इसी प्रकार पण्डित को अपनी विद्या-बुद्धि पर भरोसा नहीं रहता।



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