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शोभित है सर्वोच्च मुकुट से,जिनके दिव्य देश का मस्तक।पूँज रही हैं सकल दिशाएँ।जिनके जय-गीतों से अब तक ॥जिनकी महिमा का है अविरल,साक्षी सत्य-रूप हिम-गिरिवर।उतरा करते थे विमान-दलजिसके विस्तृत वक्षस्थल पर ।।

Answer»

[ दिव्य = अलौकिक। सकल = सम्पूर्ण अविरल = लगातार, निरन्तर। साक्षी = गवाह। सत्य-रूप हिम-गिरिवर = सत्य स्वरूप वाला श्रेष्ठ हिमालय। वक्षस्थल = सीना।]

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में भारत के गौरवपूर्ण अतीत की झाँकी प्रस्तुत की गयी है।

व्याख्या—कवि त्रिपाठी जी आगे कहते हैं कि यह ‘भारत’  हमारे चिरस्मरणीय पूर्वजों का देश है। इसका मस्तक हिमालयरूपी सर्वोच्च मुकुट से सुशोभित हो रहा है। हमारे पूर्वजों के विजय-गीतों से आज . तक भी सम्पूर्ण दिशाएँ पूँज रही हैं। ये ही तो वे पूर्वज थे, जिनकी महिमा की गवाही आज भी सत्य स्वरूप वाला श्रेष्ठ हिमालय दे रहा है अथवा जिनकी महिमा की गवाही आज भी हिमालय के रूप में प्रत्यक्ष है। इस भारत-भूमि के अति विस्तृत अथवा विशाल वक्षस्थल पर विभिन्न देशों के विमान समूह बना-बनाकर उतरा करते थे।

काव्यगत विशेषताएँ–
⦁    हिमालय के महत्त्व और सौन्दर्य की झाँकी प्रस्तुत की गयी है।
⦁    भाषा-साहित्यिक और बोधगम्य खड़ीबोली।
⦁    शैली-भावात्मक और वर्णनात्मक।
⦁    रसवीर।
⦁    गुण-ओज।
⦁    छन्द-प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राओं वाला मात्रिक छन्द।
⦁    अलंकार , अनुप्रास और रूपक।



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