InterviewSolution
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‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर दशरथ का चरित्र-चित्रण कीजिए। |
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Answer» रघुवंशी राजा अज के पुत्र दशरथ ‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य में आरम्भ से अन्त तक विद्यमान हैं। मूल रूप से दशरथ इस खण्डकाव्य के प्राण हैं। दशरथ की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- (1) उत्तम-कुलोत्पन्न–राजा दशरथ उत्तम-कुलोत्पन्न हैं। उनका वंश ‘इक्ष्वाकु’ नाम से प्रसिद्ध है। पृथु, त्रिशंकु, सगर, दिलीप, रघु, हरिश्चन्द्र और अज; दशरथ के इतिहासप्रसिद्ध पूर्वज रहे हैं। उन्हें अपने वंश पर गर्व है क्षत्रिय हूँ मम शिरा जाल में रघुवंशी है रक्त प्रवाह ।। (2) लोकप्रिय-शासक-राजा दशरथ प्रजावत्सल एवं योग्य शासक हैं। उनके राज्य में सबको न्याय मिलता है, चोरी कहीं नहीं होती है, प्रजा सब प्रकार से सुखी व सन्तुष्ट है तथा विद्वज्जनों का यथोचित सत्कार होता है– सुख समृद्धि आमोदपूर्ण था कौशलेश का शुभ शासन। (3) धनुर्विद्या में निपुण कुमार दशरथ धनुर्विद्या में निपुण और शब्दभेदी बाण चलाने में पारंगत हैं। आखेट में उनकी विशेष रुचि है शब्द-भेद के निपुण अहेरी, रविकुल के भावी भूपाल । इसीलिए श्रावण मास में वर्षा के अनन्तर जब चारों ओर हरियाली छाई रहती है, तब वे आखेट का निश्चय करते हैं। (4) विनम्र एवं दयालु–दशरथ में तनिक भी अहंकार नहीं है। दूसरे का दुःख देखकर वे बहुत अधिक व्याकुल हो जाते हैं। स्वप्न में मृग-शावक के वध से ही वे दु:खी हो उठते हैं- करने को गये समुद्यत, ढाढ भार करके रोदने । (5) संवेदनशील एवं पश्चात्ताप करने वाले–दशरथ अपने किये अनुचित कार्य पर आत्मग्लानि से भर उठते हैं तथा उसका प्रायश्चित्त करते रहते हैं। श्रवणकुमार की हत्या पर उनके प्रायश्चित्त एवं आत्मग्लानि उनके सच्चे पश्चात्ताप पर किया गया आर्तनाद है- मलहम कौन भयंकर व्रण पर जिसका लेप करू जाकर। अपने इस कुकृत्य पर उन्हें अपने नहीं, अपने कुल के अपयश का दुःख सता रहा है- हाय चलेगी युग युगान्त तक अब मेरी यह पाप कथा। अपने द्वारा किये गये कर्म पर दु:खी होकर वे अन्ततः धरती माता से ही कह उठते हैं- फटो धरणि, मैं समा सकुँ तुम करो ग्रहण, मम भाग्य जगे। (6) आत्म-तपस्वी-दशरथ न्यायप्रिय होने के साथ-साथ आत्म-तपस्वी भी हैं। वे अपने अपराध को स्वयं अक्षम्य मानते हैं- करें मुनीश क्षमा वे होंगे, निस्पृह करुणा सिंन्धु अगाध । (7) अपराध-बोध से ग्रसित-श्रवणकुमार के पिता द्वारा शाप दिये जाने पर दशरथ काँप उठते हैं। वे अयोध्या लौटकर यद्यपि लोकनिन्दा के भय से किसी को भी यह दुर्घटना नहीं बताते, किन्तु अपने अपराध की वेदना उनके हृदय में कसकती ही रहती है। वे जानते हैं कि समस्त प्राणियों को अपने कर्म का फल तो भोगना ही पड़ता है। इसलिए वे किसी से कुछ कहे बिना भी अपना अपराध स्वीकार कर लेते हैं। कवि कहता है– रही खरकती हाय शूल-सी पीड़ा उर में दशरथ के। (8) तेजस्वी-दशरथ एक तेजस्वी राजकुमार हैं। जब वह श्रवणकुमार के पास पहुँचते हैं तो वह उनके रूप से प्रभावित हो उठता है। उनके प्रत्येक अंग से तेज मानो फूटा पड़ता है। श्रवण उनसे निवेदन करता है- रूपवान् है तेज आपका, अंग-अंग से फूट रहा। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि दशरथ का चरित्र महान् गुणों से विभूषित है जो कि प्रायश्चित्त और आत्म-ग्लानि की अग्नि में तपकर और भी शुद्ध हो गया है। कवि दशरथ को चरित्र-चित्रण करने में पूर्ण सफल रहा है। |
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