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शुक्ल जी के कथन “इस सार्वभौम वणिग्वृत्ति से उसका अनर्थ कभी न होता, यदि क्षात्रवृत्ति उसके लक्ष्य से अपना लक्ष्य अलग रखती।” का आशय क्या है? क्षात्रवृत्ति से क्या तात्पर्य है?

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क्षात्रवृत्ति से तात्पर्य है क्षत्रिय का धर्म अर्थात् सुशासन । अनुचित प्रवृत्तियों के नियन्त्रण में रखना ही शासन-सत्ता का कर्तव्य है। यदि देशों की शासन-सत्ताएँ विभिन्न देशों में व्याप्त आर्थिक स्पर्द्ध तथा शोषण में सहयोग न करतीं और उनको नियन्त्रण में रखतीं तो संसार में होने वाले निर्धन देशों के शोषण, उत्पीड़न तथा उनमें व्याप्त निर्धनता को रोका जा सकता था।



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