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समानता के मार्क्सवादी दृष्टिकोण को संक्षेप में समझाइए।

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समानता के सन्दर्भ में मार्क्सवादी दृष्टिकोण इस बात का प्रतिपादन करता है कि जब तक समाज में विरोधी वर्गों का अस्तित्व रहेगा तब तक किसी भी रूप में समानता की स्थापना नहीं की जा सकती है। आर्थिक समानता को तब तक लागू नहीं किया जा सकता जब तक कि पूँजीवादी व्यवस्था पर आधारित व्यक्तिगत पूँजी को समाप्त करके उत्पादन, वितरण विनिमय के साधनों को समाज के सभी वर्गों में विभक्त न कर दिया जाए। अत: मार्क्सवादी आर्थिक असमानता को भी समाज में एक वर्ग के द्वारा दूसरे वर्ग के शोषण एवं उत्पीड़न के लिए उत्तरदायी मानता है। माक्र्स को यह भी मत है कि पूँजीवादी राज्यों में राजनीतिक एवं सामाजिक समानता का जो आडम्बर रचा जा रहा है उसने पूर्णतया भ्रमपूर्ण स्थिति उत्पन्न कर दी है। क्योंकि आर्थिक समानता के अभाव में किसी प्रकार की भी समानता स्थापित नहीं की जा सकती है।



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