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सम्राट अशोक ने शिशुपाल को अपने दरबार में बुलाया। उन्होंने शिशुपाल से कहा कि, मैं आपको न्याय करने का अवसर देना चाहता हूँ। शिशुपाल भी इस अवसर के लिए तैयार था। यह जानकर सम्राट ने उन्हें न्यायमंत्री बनाया और पहचानने के लिए उसे राजमुद्रा दी।

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सम्राट अशोक ने शिशुपाल को न्याय का असली रूप दिखाने का अवसर दिया था। उन्होंने देखा कि शिशुपाल न्याय की कसौटी पर खरा उतरा था। हत्यारे सम्राट के प्रति उसने जरा भी नरम रुख नहीं अपनाया। उसने अपराधी सम्राट को मृत्युदंड देने की घोषणा की। दंड देते समय शिशुपाल ने जरा भी हिचकिचाहट नहीं दिखाई। अपने साहसपूर्ण और निष्पक्ष व्यवहार से उसने सम्राट का दिल जीत लिया। इस प्रकार न्यायमंत्री के रूप में शिशुपाल को सफल होते देखकर सम्राट अशोक गद्गद हो गए।



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