| Answer» प्राणीमात्र के जीवित रहने के लिए वायु के बाद सर्वाधिक आवश्यक वस्तु भोजन या आहार है। आहार का हमारे जीवन में बहुपक्षीय महत्त्व है। आहार की आवश्यकता एक नैसर्गिक आवश्यकता है; जिसको आभास भूख लगने से होता है। सामान्य रूप से समझा जाता है कि आहार का केवल यही एक कार्य है। वास्तव में इसके अतिरिक्त भी अन्य विभिन्न कार्य आहार द्वारा सम्पन्न होते हैं। स्वास्थ्य विज्ञान एवं आहार-शास्त्र के विस्तृत अध्ययनों के परिणामस्वरूप निष्कर्ष प्राप्त हुआ है कि आहार के सभी कार्यों को पूरा करने के लिए तथा शरीर की आहार सम्बन्धी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आहार को सन्तुलित (balanced) होना चाहिए। सन्तुलित आहार का अर्थसंक्षेप में हम कह सकते हैं कि जिस आहार द्वारा शरीर की आहार सम्बन्धी समस्त आवश्यकताएँ पूर्ण हो जाएँ, वह आहार सन्तुलित आहार है।” अब प्रश्न उठता है कि शरीर को आहार की आवश्यकता क्यों और किसलिए होती है? वास्तव में शरीर की वृद्धि, तन्तुओं के निर्माण तथा टूट-फूट की मरम्मत आदि शारीरिक कार्यों हेतु आवश्यक ऊर्जा प्राप्त करने तथा रोगों से बचने के लिए हमें आहार की आवश्यकता होती है। अतः जो आहार इन सब आवश्यकताओं को सन्तुलित रूप से पूरा करता है, वह आहार सन्तुलित आहार (balanced food) कहलाता है। शरीर-विज्ञान के अनुसार हमारे आहार में कार्बोज़, वसा, प्रोटीन, विटामिन, खनिज लवण तथा जल की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए। इन्हें आहार का अनिवार्य तत्त्व कहा जाता है। सन्तुलित आहार में आहार के ये अनिवार्य तत्त्व पर्याप्त मात्रा एवं सही अनुपात में होते हैं।
 सन्तुलित आहार सम्बन्धी स्पष्टीकरण सन्तुलित आहार का अर्थ जानने के उपरान्त इसके विषय में कुछ प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जैसे कि-क्या भरपेट आहार ही सन्तुलित आहार है? क्या सन्तुलित आहार काफी महँगा होता है? क्या स्वादिष्ट आहार सन्तुलित होता है? क्या ऊर्जादायक एवं वृद्धिकारक आहार ही सन्तुलित होता है? इन प्रश्नों का समुचित स्पष्टीकरण निम्नवर्णित है । (1) क्या भरपेट आहार सन्तुलित आहार है?सामान्य रूप से गरीब देशों में लोगों के सामने भरपेट आहार प्राप्त करने की विकट समस्या रहा करती है। ऐसी स्थिति में यदि व्यक्ति को भरपेट आहार मिल जाए, तो वह सन्तुष्ट हो जाएगा तथा भ्रमवश अपने आहार को सन्तुलित आहार समझने लगेगा, परन्तु वास्तव में यह अनिवार्य नहीं है कि भरपेट या मात्रा में अधिक आहार सन्तुलित भी हो। यदि आहार में अनिवार्य तत्त्व, उचित मात्रा तथा उचित अनुपात में नहीं होते, तो कितनी भी अधिक मात्रा में आहार ग्रहण कर लेने से आहार सन्तुलित आहार नहीं कहला सकता; ऐसा आहार पेट भर सकता है अर्थात् भूख को शान्त कर सकता है, परन्तु अनिवार्य रूप से स्वास्थ्यवर्द्धक एवं शक्तिदायक नहीं हो सकता; उदाहरण के लिए–पर्याप्त मात्रा में चावल तथा मीट खा लेने से पेट तो भर जाएगा, परन्तु शरीर की अन्य आवश्यकताएँ जैसे कि विटामिन, लवण आदि का तो अभाव बना ही रहेगा। साथ ही यह भी सम्भव है कि शरीर में विभिन्न रोग पैदा हो जाए। सन्तुलित आहार सदैव स्वास्थ्यवर्द्धक तथा शरीर को नीरोग रखने में सहायक होता है।
 (2) क्या महँगा आहार सन्तुलित आहार है?भ्रमवश अनेक लोग महँगे एवं दुर्लभ आहार को अच्छा, सन्तुलित एवं उपयोगी आहार मान लेते हैं। परन्तु वास्तव में आहार की कीमत तथा उसके गुणों और उपयोगिता में कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है। महँगे से महँगा आहार भी असन्तुलित आहार हो सकता है, यदि उसमें आहार के अनिवार्य तत्त्व सही मात्रा एवं अनुपात में न हों। इसके विपरीत सस्ते से सस्ता आहार भी सन्तुलित आहार हो सकता है, यदि उसमें सभी आवश्यक तत्त्व अभीष्ट मात्रा में उपस्थित हों; उदाहरण के लिए—हमारे देश में मेवे एवं मीट महँगे खाद्य-पदार्थ हैं, परन्तु यदि हमारे आहार में केवल इन्हीं पदार्थों को ही ग्रहण किया जाए और शाक-सब्जियों, ताजे फलों, अनाज, दूध आदि की अवहेलना की जाए, तो हमारा आहार अधिक महँगा होने पर भी सन्तुलित आहार की श्रेणी में नहीं आ सकता। इस तथ्य को जान लेने के उपरान्त यह समझ लेना चाहिए कि कम आय एवं सीमित आर्थिक साधनों वाले व्यक्ति भी सन्तुलित आहार ग्रहण कर सकते हैं। सन्तुलित आहार प्राप्त करने के लिए सन्तुलित आहार के अनिवार्य तत्त्वों एवं उसके संगठन को जानना आवश्यक है, न कि अधिक धन व्यय करने की आवश्यकता है। गरीब व्यक्ति भी सन्तुलित आहार ग्रहण कर सकता है।
 (3) क्या स्वादिष्ट आहार सन्तुलित आहार है?आहार का एक उद्देश्य विभिन्न वस्तुओं का स्वाद ग्रहण करके आनन्द प्राप्त करना भी है। कुछ खाद्य-पदार्थ अपने आप में काफी स्वादिष्ट एवं रुचिकर होते हैं। कुछ व्यक्ति इन स्वादिष्ट पदार्थों को अधिक-से-अधिक मात्रा में खाना चाहते हैं। ऐसे व्यक्ति भ्रमवश स्वादिष्ट आहार को ही सन्तुलित आहार मान सकते हैं, परन्तु यह धारणा बिल्कुल गलत है। यह उचित है कि हमारे आहार को स्वादिष्ट भी होना चाहिए, परन्तु स्वादिष्ट आहार तथा सन्तुलित आहार में कोई प्रत्यक्ष एवं अनिवार्य सम्बन्ध नहीं है। स्वादिष्ट आहार के लिए अनिवार्य रूप से सन्तुलित होना आवश्यक नहीं तथा इसके विपरीत यह भी आवश्यक नहीं है कि सन्तुलित आहार अस्वादिष्ट ही हो; उदाहरण के लिए—कुछ लड़कियों को चटपटे तथा मसालेदार व्यंजन बहुत रुचिकर प्रतीत होते हैं, परन्तु इन व्यंजनों को सन्तुलित आहार की श्रेणी में नहीं गिना जा सकता।
 (4) क्या वृद्धिकारक आहार सन्तुलित आहार है?शारीरिक वृद्धि के लिए भी आहार ग्रहण किया जाता है। हमारे आहार में कुछ तत्त्व ऐसे होते हैं। जो शरीर की वृद्धि में सहायक होते हैं, परन्तु शरीर की वृद्धि करने वाले आहार को हम सन्तुलित आहार नहीं कह सकते, यदि उसमें अन्य आवश्यक तत्त्वों की कमी या अभाव हो। ऐसे आहार को ग्रहण करने से व्यक्ति के शरीर की तो वृद्धि हो जाती है, परन्तु शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति तथा चुस्ती एवं मानसिक-शक्ति का पर्याप्त विकास नहीं हो पाता तथा व्यक्ति विभिन्न रोगों का शिकार हो जाता है; उदाहरण के लिए केवल प्रोटीनयुक्त खाद्य-सामग्री को ही ग्रहण करने से हमारा शरीर सुचारु रूप से न तो विकसित हो सकता है और न ही कार्य कर सकता है; अतः हम कह सकते हैं कि शारीरिक वृद्धिकारक आहार अपने आप में सन्तुलित आहार नहीं होता। सन्तुलित आहार शरीर की वृद्धि के साथ-साथं अन्य सभी आवश्यकताओं को भी पूरा करने में सहायक होता है।
 (5) क्या ऊर्जादायक आहार सन्तुलित आहार है?हम ऊर्जा प्राप्त करने के लिए अर्थात् शारीरिक परिश्रम करने के लिए आवश्यक शक्ति प्राप्त करने हेतु भी आहार ग्रहण करते हैं। कुछ खाद्य-पदार्थ शरीर को भरपूर ऊर्जा प्रदान करते हैं, परन्तु इन ऊर्जा प्रदान करने वाले भोज्य पदार्थों को हम सन्तुलित आहार नहीं कह सकते। वास्तव में ऊर्जा प्रदान करने के अतिरिक्त अन्य उद्देश्य भी आहार द्वारा पूरे किए जाते हैं, जैसे कि रोगों से लड़ने की क्षमता, शरीर की वृद्धि तथा चुस्ती आदि प्राप्त करना। ये सब बातें ऊर्जादायक आहार से पूरी नहीं हो सकतीं।
 स्पष्टीकरण पर आधारित निष्कर्षउपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट हो जाता है कि सन्तुलित आहार की धारणा वास्तव में बहुपक्षीय धारणा है। सन्तुलित आहार से विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति होती है। वास्तव में उसी आहार को सन्तुलित आहार कहा जाएगा, जिससे व्यक्ति की आहार या आहार सम्बन्धी समस्त आवश्यकताएँ पूरी हो जाएँ। सन्तुलित आहार की मात्रा पर्याप्त होती है, जिससे कि हमारी भूख शान्त हो जाती है। सन्तुलित आहार ऊर्जादायक होती है, ताकि हम पर्याप्त शारीरिक परिश्रम कर सकें तथा हमें थकान या कमजोरी महसूस न हो। सन्तुलित आहार शारीरिक वृद्धि एवं विकास में सहायक होता है तथा इससे शरीर की कोशिकाओं में होने नरन्तर टूट-फूट की मरम्मत होती रहती है। सन्तुलित आहार हमारे शरीर को सम्भावित रोगों से लड़ने के लिए शक्ति प्रदान करता है तथा व्यक्ति में समुचित उत्साह एवं उल्लास बनाए रखता है। इन सबके अतिरिक्त सन्तुलित आहार शरीर में कुछ अतिरिक्त शक्ति . भी संचित करता है जो कि आपातकाल में काम आती है। सन्तुलित आहार ग्रहण करने वाला व्यक्ति सदैव स्वस्थ एवं नीरोग रहता है।
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