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स्थानीय संस्थाओं से आप क्या समझते हैं? स्थानीय संस्थाओं के महत्त्व को भी स्पष्ट कीजिए।

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आज के युग में किसी भी राष्ट्र की केन्द्रीय या राज्य सरकार के पास स्थानीय (अर्थात् क्षेत्र विशेष की) समस्याओं के समाधान हेतु समय नहीं होता। ग्राम, कस्बे और नगर की स्थानीय समस्याओं का समाधान स्थानीय संस्थाओं; जैसे—ग्राम पंचायत, टाउन एरिया या नोटीफाइड एरिया कमेटी, जिला परिषद् या नग़रमहापालिका आदि के माध्यम से किया जाता है। स्थानीय संस्थाएँ अन्य मामलों के साथ-साथ अपने क्षेत्र से जुड़े शिक्षा सम्बन्धी मामलों के विषय में स्वविवेकानुसार निर्णय लेने तथा कार्य करने की पूर्ण स्वतन्त्रता रखती हैं।

स्थानीय संस्थाओं का अर्थ (Meaning of Local Bodies)

स्थानीय संस्थाओं का तात्पर्य ऐसी संस्थाओं से है जिनका सम्बन्ध किसी स्थान (या क्षेत्र) विशेष से हो और जिनका प्रबन्धं उस स्थान विशेष के निवासियों द्वारा ही किया जाए। स्थानीय संस्थाएँ स्थानीय स्वशासन (Local Self-Government) के अन्तर्गत आती हैं। स्थानीय स्वशासन में स्थानीय जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों को क्षेत्र के शासन-प्रबन्ध में भाग लेने का अवसर मिलता है। इस शासन द्वारा नगर, कस्बे या ग्राम में रहने वाले लोगों को अपने स्थानीय मामलों को अपनी आवश्यकता तथा इच्छा के अनुसार प्रबन्ध करने की स्वतन्त्रता होती है।

स्थानीय संस्थाओं का महत्त्व (Importance of Local Bodies)

स्थानीय संस्थाओं के महत्त्व का वर्णन निम्नलिखित आधारों पर किया जा सकता है

⦁    स्थानीय लोगों का शासन से सम्बन्ध-आधुनिक समय में विश्व के अधिकांश देशों में प्रतिनिध्यात्मक लोकतान्त्रिक शासन-पद्धति प्रचलित है। इस पद्धति के अन्तर्गत स्थानीय लोगों का शासन से सीधा सम्बन्ध नहीं होता। वे स्थानीय संस्थाओं के माध्यम से समस्याओं का कार्यभार हल्का शासन से सम्बन्ध रखते हैं।
⦁    समस्याओं का कार्यभार हल्का स्थानीय संस्थाएँ, केन्द्र और राज्य सरकारों से सम्बद्ध छोटी-छोटी समस्याओं की जिम्मेदारी स्वयं अपने ऊपर लेकर उनका कार्यभार हल्का कर देती हैं।
⦁    शक्ति का विकेन्द्रीकरण-उत्तम ढंग से शासन-कार्य चलाने के लिए शासन-शक्ति का अधिकाधिक विकेन्द्रीकरण होना चाहिए। यह विकेन्द्रीकरण सिर्फ स्थानीय संस्थाओं द्वारा ही किया जा सकता
⦁    स्थानीय विषयों का कुशल प्रबन्ध-केन्द्र या प्रान्त की सरकारों को न तो स्थानीय विषयों/समस्याओं की जानकारी होती है और न ही वे इनमें खास दिलचस्पी रखती हैं। यही कारण है कि वे स्थानीय विषयों का प्रबन्ध कुशलता से नहीं कर पातीं। स्थानीय व्यक्ति एक तो उस क्षेत्र विशेष के वातावरण तथा समस्याओं से भली-प्रकार परिचित होते हैं और साथ ही वहाँ के विकास में रुचि भी रखते हैं। अत: स्थानीय मामलों का प्रबन्ध स्थानीय संस्थाओं के हाथ में ही रहना श्रेयस्कर है।
⦁    शिक्षा साधन के रूप में-शिक्षा साधन के रूप में स्थानीय संस्थाएँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे अपने-अपने क्षेत्रों में बालक-बालिकाओं की शिक्षा का दायित्व सँभालती हैं। स्थानीय निकायों द्वारा प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक की व्यवस्था की जाती है। इसके लिए उन्हें राज्य सरकार से आर्थिक सहायता प्राप्त होती है।

टॉकविल ने स्थानीय संस्थाओं का महत्त्व बताते हुए लिखा है, “नागरिकों की स्थानीय संस्थाएँ स्वतन्त्र राष्ट्रों की शक्ति का निर्माण करती हैं। जो महत्त्व विज्ञान की शिक्षा के लिए प्रयोगशालाओं का है वही स्वतन्त्रता का पाठ पढ़ाने के लिए नगर सभाओं का है। एक राष्ट्र स्वतन्त्र सरकार की पद्धति भले ही स्थापित कर ले, किन्तु स्थानीय संस्थाओं के बिना उसमें स्वतन्त्रता की भावना नहीं आ सकती।



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