InterviewSolution
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‘त्यागपथी’ के नायक अथवा प्रमुख पात्र (हर्षवर्द्धन) का चरित्र-चित्रण कीजिए।या‘त्यागपथी’ काव्य के आधार पर हर्षवर्द्धन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए।या” ‘त्यागपथी’ के हर्षवर्द्धन का चरित्र देशप्रेम का प्रखरतम (आदर्श) उदाहरण है।” उपयुक्त उदाहरण देते हुए इस कथन को प्रमाणित कीजिए।या” ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में सम्राट हर्षवर्द्धन का चरित्र ही केन्द्र है और उसी के चारों ओर कथानक का चक्र घूमता है।” इस कथन की समीक्षा कीजिए।या‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के नाम को ध्यान में रखकर हर्षवर्द्धन का चरित्रांकन कीजिए। याहर्षवर्द्धन का चरित्र, आचरण का संवाहक है। सिद्ध कीजिए।या“‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में हर्ष एक इतिहास पुरुष के रूप में चित्रित है।” इस उक्ति के आलोक में हर्ष का चरित्र-चित्रण कीजिए।या‘त्यागपथी’ के हर्षवर्द्धन का चरित्र आज के युवकों पर कितना प्रभावकारी है? या“हर्ष एक सच्चा त्यागपथी था।” उक्ति के आधार पर हर्ष का चरित्र-चित्रण कीजिए। या“शौर्य था साकार नृप में अवतरित था ज्ञान।” कथन के आधार पर ‘त्यागपथी’ के हर्षवर्द्धन के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए। |
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Answer» थानेश्वर के महाराज प्रभाकरवर्द्धन के छोटे पुत्र हर्षवर्द्धन के चरित्र की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- (1) नायक–हर्षवर्द्धन ‘त्यागपथी’ के नायक हैं। इस खण्डकाव्य की सम्पूर्ण कथा का केन्द्र वही हैं। सम्पूर्ण घटनाचक्र उन्हीं के चारों ओर घूमता है। कथा आरम्भ से अन्त तक हर्षवर्द्धन से ही सम्बद्ध रहती है। (2) आदर्श पुत्र एवं भाई-इस खण्डकाव्य में हर्षवर्द्धन एक आदर्श पुत्र एवं आदर्श भ्राता के रूप में पाठकों के समक्ष आते हैं। अपने पिता के रुग्ण होने का समाचार पाकर वे आखेट से तुरन्त लौट आते हैं और यथासामर्थ्य उनकी चिकित्सा करवाते हैं। पिता के स्वस्थ न होने तथा माता द्वारा आत्मदाह करने की बात सुनकर वे भाव-विह्वल हो जाते हैं। वे अपनी माता से कहते हैं- मुझ मन्द पुण्य को छोड़ न माँ तुम भी जाओ। आदर्श पुत्र के समान ही वे आदर्श भाई का कर्तव्य भी पूरा करते हैं। वे अपनी बहन राज्यश्री को अग्निदाह करने एवं संन्यास लेने से रोकते हैं- दोनों करों से घेरकर छोटी बहिन के भाल को। बड़े भाई राज्यवर्द्धन के प्रति भी उनका अपार प्रेम है- बाहर चले जब राज्यवर्द्धन हर्ष पीछे चल पड़े। (3) देश-प्रेमी-हर्षवर्द्धन सच्चे देश-प्रेमी हैं। उन्होंने छोटे राज्यों को एक साथ मिलाकर विशाल राज्य की स्थापना की। देश की एकता एवं रक्षा हेतु वे बड़े-से-बड़ा युद्ध करने से भी नहीं हिचकते थे। उन्होंने एक बड़े राज्य की स्थापना ही नहीं की, वरन् धर्मपूर्वक शासन भी किया। देश सेवा ही उनके जीवन का व्रत है। (4) अजेय योद्धा--हर्षवर्द्धन एक अजेय योद्धा हैं। विद्रोही उनके तेजबल के आगे ठहर नहीं पाता। कोई भी राजा उन्हें पराजित नहीं कर सका। भारत के इतिहास में महाराज हर्षवर्द्धन की दिग्विजय, उनका युद्ध-कौशल और उनकी अनुपम वीरती आज भी स्वर्णाक्षरों में लिखी है। उनकी वीरता एवं कुशल शासन का ही यह परिणाम था कि ”उठा पाया न सिर कोई प्रवंचक।” (5) श्रेष्ठ शासक-महाराज हर्षवर्द्धन एक श्रेष्ठ शासक हैं। उनका सम्पूर्ण जीवन प्रजा के हितार्थ ही समर्पित है। उनका शासन धर्म-शासन है। उनके शासन में सभी जनों को समान न्याय एवं सुख उपलब्ध है- शान्ति शुभता का व्रती था हर्ष का शासन । वे सदैव प्रजा के कल्याण में लगे रहते थे और स्वयं को प्रजा का सेवक समझते थे। उनका मत था- नहीं अधिकार नृप को पास रखे धन प्रजा का, (6) महान् त्यागी-हर्षवर्द्धन महान् त्यागी एवं आत्म-संयमी हैं। आत्म-संयम एवं सर्वस्व त्याग करने के कारण ही कवि ने उन्हें ‘त्यागपथी’ के नाम से पुकारा है। पिता की मृत्यु के पश्चात् वे अपने बड़े भाई के अधिकार को ग्रहण करना नहीं चाहते। इसी प्रकार कन्नौज को राज्य भी वे अपनी बहन के नाम पर चलाते हैं। प्रयाग में छ: बार अपना सर्वस्व प्रजा के लिए दे देना उनके महान् त्याग का प्रमाण है। वे राजकोष को प्रजा की सम्पत्ति मानते हैं। इसीलिए वे उसे प्रजा को ही दान कर देते हैं। वे अपने पहनने के वस्त्र भी अपनी बहन राज्यश्री से माँगकर पहनते हैं- दिये सम्राट् ने निज वस्त्र आभूषण वहाँ परे । (7) धर्मपरायण–हर्षवर्द्धन के जीवन में धर्मपरायणता कूट-कूटकर भरी हुई है। वे जन-सेवा में ही अपना जीवन लगा देते हैं- रहे कल्याण मानवमात्र का ही धर्म मेरा, उन्होंने शैव, शाक्त, वैष्णव और वेद-मत को एक साथ रखा। उन्होंने किसी के प्रति भी भेदभाव नहीं बरता। (8) कर्त्तव्यनिष्ठ एवं दृढनिश्चयी-सम्राट हर्ष ने आजीवन अपने कर्तव्य का पालन किया। प्रारम्भ में इच्छा न होते हुए भी इन्होंने अपने भाई के कहने पर राज्य सँभाला और प्रत्येक संकटापन्न स्थिति में भी अपने कर्तव्य को निभाया। बहन राज्यश्री को वनों में खोजकर वे अपनी कर्तव्यनिष्ठा का परिचय देते हैं- मैं स्वयं जाऊँगा बहिन को ढूँढ़ने वन प्रान्त में, भाई की छल से की गयी हत्या का समाचार सुनकर उन्होंने जो प्रतिज्ञा की थी, उससे उनके दृढ़निश्चय का पता चलता है- लेकर चरण रज आर्य की करता प्रतिज्ञा आज मैं, (9) महादानी—त्यागपथी के हर्षवर्द्धन आत्मसंयमी तथा महादानी हैं। महान् त्यागी होने के कारण ही कवि ने उन्हें ‘त्यागपथी’ नाम से पुकारा है। पिता की मृत्यु के पश्चात् वे अपने बड़े भाई का अधिकार ग्रहण नहीं करना चाहते। कन्नौज विजय के बाद भी वे कन्नौज का सिंहासन राज्यश्री को देना चाहते हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि हर्ष का चरित्र एक महान् राजा, आदर्श भाई, आदर्श पुत्र और महान् त्यागी का चरित्र है, जिसके लिए प्रजा की सुख-सुविधा ही सर्वोपरि है और वह अपने मानवीय कर्तव्यों के प्रति भी निष्ठावान है। |
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