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उत्तर प्रदेश की न्याय-व्यवस्था का वर्णन कीजिए।

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उत्तर प्रदेश की न्याय-व्यवस्था उत्तर प्रदेश में भी अन्य राज्यों की भाँति ही स्वतन्त्र न्यायपालिका की व्यवस्था की गयी है। यहाँ के जिला न्यायालय उच्च न्यायालय की अधीनता एवं संरक्षणता में कार्य करते हैं। उत्तर प्रदेश की न्याय व्यवस्था का स्वरूप निम्नलिखित है

1. उच्च न्यायालयउत्तर प्रदेश के इलाहाबाद नगर में उच्च न्यायालय की स्थापना की गयी है। यह राज्य का सबसे बड़ा न्यायालय है। संविधान के अनुसार न्यायाधीशों की संख्या निश्चित नहीं है। यह समय-समय पर बदलती रहती है। राष्ट्रपति इनकी संख्या राज्य के क्षेत्रफल, जनसंख्या तथा कार्यभार के आधार पर निश्चित करता है। उत्तर प्रदेश के उच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश है तथा 160 पद न्यायाधीशों के लिए सृजित हैं। वर्तमान समय में 81 न्यायाधीश कार्यरत हैं। अन्य न्यायाधीश हैं, जिनमें 67 स्थायी तथा 14 अस्थायी हैं। राष्ट्रपति अतिरिक्त व अवकाश-प्राप्त न्यायाधीशों की भी नियुक्ति कर सकता है। यह न्यायालय न्याय की व्यवस्था करता है; अतः राज्य में न्याय के क्षेत्र में इसे महत्त्वपूर्ण अधिकार प्राप्त हैं। संविधान की व्याख्या, मूल अधिकारों की रक्षा, अभिलेख आदि के साथ-साथ यह प्रशासन का भी कार्य करता है। उच्च न्यायालय के अधीन प्रत्येक जिले में तीन प्रकार के न्यायालय-दीवानी, फौजदारी, राजस्व कार्यरत हैं।

2. जनपदीय न्यायालय– जिले की न्याय-व्यवस्था के लिए उच्च न्यायालय के संरक्षण में निम्नलिखित न्यायालयों की व्यवस्था की गयी है

· दीवानी न्यायालय-धनराशि, चल तथा अचल सम्पत्ति से सम्बन्धित मुकदमों के निपटारों के
लिए दीवानी न्यायालयों की व्यवस्था प्रत्येक जिले में की गयी है। यह न्यायालय नीचे के दीवानी न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध अपीलें भी सुनता है। जिले में दीवानी का सबसे बड़ा न्यायालय जिला न्यायाधीश का न्यायालय होता है। इसके पश्चात् एक अतिरिक्त जिला न्यायाधीश होता है। इसके निर्णयों की अपील उच्च न्यायालय में ही की जा सकती है। सिविल जज दीवानी के मामलों में जिला न्यायाधीश के नीचे का न्यायाधीश होता है। सिविल जज न्यायाधीश) के नीचे मुन्सिफ का न्यायालय होता है। मुन्सिफ के न्यायालय के नीचे खफीफा का न्यायालय होता है। दीवानी न्यायालयों में सबसे निचले स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों में न्याय पंचायतें होती हैं। इनके (न्याय पंचायत) निर्णय के विरुद्ध अपील नहीं की जा सकती है।

· फौजदारी न्यायालय-लड़ाई-झगड़े, हत्या, मारपीट आदि के मुकदमों की सुनवाई के लिए प्रत्येक जिले में एक फौजदारी न्यायालय होता है। जिले में फौजदारी का सबसे बड़ा न्यायालय सत्र न्यायाधीश का न्यायालय होता है। ये मृत्यु-दण्ड या आजीवन कारावास का दण्ड देने का अधिकार रखते हैं। ये न्यायालय निचले स्तर के न्यायालयों के निर्णयों की अपील सुनते हैं। सत्र न्यायालय तथा अतिरिक्त सत्र न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध उच्च न्यायालय में ही अपील की जा सकती है। सत्र न्यायाधीश या सेशन जज जब दीवानी के मुकदमे सुनता है तब उसे जिला जज कहते हैं। इसके अतिरिक्त जिले में सहायक सत्र न्यायाधीश, चीफ जुडीशियल मजिस्ट्रेट प्रथम, द्वितीय व तृतीय श्रेणी के भी न्यायालय होते हैं। जिले में न्याय की सबसे छोटी इकाई न्याय पंचायत होती है। ये जुर्माना तो कर सकती हैं, लेकिन कारावास का दण्ड नहीं दे सकतीं। |

· राजस्व न्यायालय–जिले में राजस्व का सबसे बड़ा न्यायालय जिलाधीश का न्यायालय होता है।इसके नीचे उपजिलाधीश, तहसीलदार तथा नायब तहसीलदार के न्यायालय होते हैं। ये न्यायालय भूमि तथा लगान से सम्बन्धित मुकदमों की सुनवाई करते हैं।

उपर्युक्त न्यायालयों के अतिरिक्त कुछ विशेष मुकदमों का फैसला विशेष न्यायालयों में होता है; जैसे-आयकर सम्बन्धी मुकदमों का फैसला आयकर अधिकारी ही कर सकता है। उसके निर्णय के विरुद्ध आयकर आयुक्त और आयकर अधिकरण में अपील की जा सकती है।



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