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विचारिए तो क्या शान आपकी इस देश में थी और अब क्या हो गयी। कितने ऊँचे होकर आप कितने नीचे गिरे ! आशय स्पष्ट कीजिए।

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प्रस्तुत पंक्तियों बालमुकुंद गुप्त द्वारा लिखित शिवशंभु के चिट्ठे के विदाई-संभाषण में से ली गई हैं। जिसमें लॉर्ड कर्जन को भारत में जितना सम्मान और शान-शौकत भोगने मिली, वैसी किसी अन्य शासक को नहीं मिली। राजा के दाहिनी ओर कर्जन और उसकी लेडी को सोने की कुर्सी पर बैठाया जाता। सभी रईस उन्हें सलाम ठोकते। राजा एक इशारे पर हाजिर हो जाते। जुलुस में सबसे ऊँचा हाथी और सबसे आगे होता था।

हौदा, चेवट, छत्र सबसे बढ़-चढ़कर थे। इनके एक इशारे पर देश के धनीमानी लोग हाथ बांधे खड़े रहते थे। ईश्वर और महाराज एडवर्ड के बाद इस देश में इन्हीं का एक दर्जा था, परंतु इस्तीफा देने के बाद सब कुछ खत्म हो गया। लार्ड कर्जन की सिफारिश पर एक आदमी भी नहीं रखा गया। जिद के कारण इतना सारा वैभव नष्ट हो गया। इस प्रकार कहा गया कि आप विचारिए तो क्या शान आपकी इस देश में थी और अब क्या हो गयी। कितने ऊँचे होकर आप कितने नीचे गिरे।



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