InterviewSolution
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अधिकार क्या हैं और वे महत्त्वपूर्ण क्यों हैं? अधिकारों का दावा करने के लिए उपयुक्त आधार क्या हो सकते हैं? |
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Answer» ‘अधिकार’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के दो शब्दों ‘अधि’ और ‘कार’ से मिलकर हुई है। जिनका क्रमशः अर्थ है ‘प्रभुत्व’ और ‘कार्य’। इस प्रकार शाब्दिक अर्थ में अधिकार का अभिप्राय उस कार्य से है, जिस पर व्यक्ति का प्रभुत्व है। मानव एक सामाजिक प्राणी होने के नाते समाज के अन्तर्गत ही व्यक्तित्व के विकास के लिए उपलब्ध सुविधाओं का उपभोग करता है। इन सुविधाओं अथवा अधिकारों के उपयोग से ही व्यक्ति, अपने शारीरिक, मानसिक एवं नैतिक विकास का अवसर प्राप्त करता है। संक्षेप में, अधिकार मनुष्य के जीवन की यह अनिवार्य परिस्थिति है, जो विकास के लिए आवश्यक है तथा जिसे राज्य और समाज द्वारा मान्यता प्रदान की जाती है। ⦁ सम्मान और गरिमापूर्ण जीवन बसर करने के लिए अधिकारों का दावा किया जा सकता है। |
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किन्हीं चार राजनीतिक अधिकारों का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» नागरिकों के चार प्रमुख राजनीतिक अधिकार निम्नलिखित हैं ⦁ मतदान का अधिकार- लोकतान्त्रिक शासन-व्यवस्था में नागरिकों को प्रदत्त मतदान का अधिकार अन्य अधिकारों में सबसे महत्त्वपूर्ण है। इस अधिकार द्वारा नागरिक अपने प्रतिनिधियों को निर्वाचित करके विधायिकाओं में भेजते हैं। |
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अधिकारों के अस्तित्व के लिए समाज की स्वीकृति आवश्यक है। इस कथन की समीक्षा कीजिए। |
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Answer» यह बात सर्वमान्य है कि व्यक्ति अपने अधिकारों का प्रयोग सामाजिक पृष्ठभूमि में करता है। अधिकारों की अवधारणा के मूल में यह बात स्पष्टयता परिलक्षित होती है कि व्यक्ति अधिकारों का प्रयोग अपने हित में करने के साथ-साथ सामाजिक हितों में भी करे। जब तक कोई अधिकार समाज द्वारा स्वीकृत नहीं है, तब तक वह अस्तित्वहीन ही रहता है; उदाहरणार्थ-नागरिक को अपनी इच्छानुसार जीवन-यापन करने का अधिकार दिया गया है, लेकिन साथ-ही-साथ उसका यह कर्तव्य भी बन जाता है कि उसकी यह स्वेच्छा सामाजिक एवं नैतिक मानदण्डों को पूरा करती है कि नहीं। यदि आपके अधिकार सामाजिक व नैतिक मर्यादा का उल्लंघन करते हैं, तो इन्हें सामाजिक स्वीकृति नहीं दी जा सकती। इस पर अधिकारों के अस्तित्व के लिए समाज की स्वीकृति आवश्यक है। समाज कभी भी व्यक्ति के जुआ खेलने, मद्यपान करने, वेश्यावृत्ति करने तथा दूसरे का अहित करने के अधिकार को मान्यता प्रदान नहीं करता है। समाज केवल उन्हीं अधिकारों को स्वीकृति प्रदान करता है जो समाज में सहयोग, भाई-चारे तथा सामंजस्य की भावना को सुदृढ़ करते हैं। |
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किन्हीं चार महत्त्वपूर्ण सामाजिक अधिकारों का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» व्यक्ति के चार महत्त्वपूर्ण सामाजिक अधिकार निम्नलिखित हैं ⦁ जीवन-सुरक्षा का अधिकार- प्रत्येक मनुष्य को जीवन का अधिकार है। यह अधिकार | मौलिक तथा आधारभूत है, क्योंकि इसके अभाव में अन्य अधिकारों का अस्तित्व महत्त्वहीन है। |
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राजनीतिक अधिकारों से क्या तात्पर्य है? प्रमुख राजनीतिक अधिकार कौन-से हैं? |
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Answer» राजनीतिक अधिकार ⦁ मत देने का अधिकार- अपने प्रतिनिधियों के निर्वाचन के अधिकार को ही मताधिकार कहते हैं। यह अधिकार लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली के अन्तर्गत प्राप्त होने वाला महत्त्वपूर्ण अधिकार है। और इस अधिकार का प्रयोग करके नागरिक अप्रत्यक्ष रूप से शासन प्रबन्ध में भाग लेते हैं। आधुनिक लोकतान्त्रिक राज्यों में विक्षिप्त, दिवालिये और अपराधियों को छोड़कर अन्य वयस्क नागरिकों को यह अधिकार प्राप्त है। सामान्यतया 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुके भारतीय नागरिकों को मताधिकार प्राप्त है। |
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अधिकारों के तत्त्व अथवा लक्षणों की विवेचना कीजिए। |
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Answer» अधिकार के तत्त्व अथवा लक्षण |
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अधिकार की परिभाषा देते हुए उसका वर्गीकरण कीजिए।याअधिकार से क्या तात्पर्य है? अधिकार के प्रकार लिखिए। |
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Answer» अधिकार मुख्यतया हकदारी अथवा ऐसा दावा है जिसका औचित्य सिद्ध हो। अधिकार की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं ऑस्टिन के अनुसार, “अधिकार व्यक्ति की वह क्षमता है, जिसके द्वारा वह अन्य व्यक्ति अथवा व्यक्तियों से कुछ विशेष प्रकार के कार्य करा लेता है।” उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि- अधिकारों का वर्गीकरण (रूप अथवा प्रकार) साधारण रूप से अधिकारों को निम्नलिखित रूपों अथवा प्रकारों के अन्तर्गत वर्गीकृत किया गया है ⦁ प्राकृतिक अधिकार- प्राकृतिक अधिकार वे अधिकार हैं, जो प्राकृतिक अवस्था में मनुष्यों को प्राप्त थे। परन्तु ग्रीन ने प्राकृतिक अधिकारों को आदर्श अधिकारों के रूप में माना है। उसके | अनुसार, ये वे अधिकार हैं, जो व्यक्ति के नैतिक विकास के लिए आवश्यक हैं और जिनकी प्राप्ति समाज में ही सम्भव है। कानूनी अधिकार दो प्रकार के लेते हैं |
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राज्य के विरुद्ध विद्रोह करने के अधिकार को स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» राज्य के विरुद्ध विद्रोह का अधिकार गांधी जी के अनुसार, “व्यक्ति का सर्वोच्च कर्तव्य अपनी अन्तरात्मा के प्रति होता है।” अत: अन्तरात्मा की आवाज पर राज्य का विरोध भी किया जा सकता है। राज्य के विरुद्ध विद्रोह करने के सम्बन्ध में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि इस अधिकार का प्रयोग राज्य एवं समाज के हित से सम्बन्धित सभी बातों पर विचार करके तथा विशेष परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए। लोकतान्त्रिक राज्यों में नागरिकों को शासन की आलोचना करने एवं अपना दल बनाने का भी अधिकार होता है। लोकतान्त्रिक देशों में राज्य के प्रति विरोध का अधिकार जनता की इस भावना से परिलक्षित होता है कि वह राज्य के प्रति अपना दायित्व निष्ठापूर्वक न निभा रहे प्रतिनिधियों को आगे सत्ती का अवसर प्रदान नहीं करती। |
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अधिकार राज्य की सत्ता पर, कुछ सीमाएँ लगाते हैं। उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए। |
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Answer» अधिकार राज्य को कुछ विशिष्ट तरीकों से कार्य करने के लिए वैधानिक दायित्व सौंपते हैं। प्रत्येक अधिकार निर्देशित करता है कि राज्य के लिए क्या करने योग्य है और क्या नहीं। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति के जीवन जीने का अधिकार राज्य को ऐसे कानून बनाने के लिए बाध्य करता है। जो दूसरों के द्वारा क्षति पहुँचाने से उसे बचा सके। यह अधिकार राज्य से माँग करता है कि वह व्यक्ति को चोट या नुकसान पहुँचाने वालों को दण्डित करे। यदि कोई समाज अनुभव करता है कि जीने के अधिकार को आशय अच्छे स्तर के जीवन का अधिकार है, तो वह राज्य से ऐसी नीतियों के अनुपालन की अपेक्षा करता है, जो स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छ पर्यावरण और अन्य आवश्यक निर्धारकों का प्रावधान करे। अधिकार केवल यह ही नहीं बताते कि राज्य को क्या करना है, वे यह भी बताते हैं कि राज्य को क्या कुछ नहीं करना है। उदाहरणार्थ, किसी व्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार कहता है कि राज्य केवल । अपनी मर्जी से उसे गिरफ्तार नहीं कर सकता। अगर वह गिरफ्तार करना चाहता है तो उसे इस । कार्यवाही को उचित ठहराना पड़ेगा, उसे किसी न्यायालय के समक्ष इस व्यक्ति की स्वतन्त्रता में कटौती करने का कारण स्पष्ट करना होगा। इसलिए किसी व्यक्ति को पकड़ने के लिए पहले गिरफ्तारी का वारण्ट दिखाना पुलिस के लिए आवश्यक होता है, इस प्रकार अधिकार राज्य की सत्ता पर कुछ सीमाएँ लगाते हैं। दूसरों शब्दों में, कहा जाए तो हमारे अधिकार यह सुनिश्चित करते हैं कि राज्य की सत्ता वैयक्तिक जीवन और स्वतन्त्रता की मर्यादा का उल्लंघन किए बिना काम करे। राज्य सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न सत्ता हो सकता है, उसके द्वारा निर्मित कानून बलपूर्वक लागू किए जा सकते हैं, लेकिन सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न राज्य का अस्तित्व अपने लिए नहीं बल्कि व्यक्ति के हित के लिए होता है। इसमें जनता का ही अधिक महत्त्व है औ सत्तात्मक सरकार को उसके ही कल्याण के लिए काम करना होता है। शासक अपनी कार्यवाहियों के लिए जबावदेह है और उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि कानून लोगों की भलाई सुनिश्चित करने के लिए ही होते हैं। |
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“अपने कर्तव्य का पालन करो, अधिकार स्वतः तुम्हें प्राप्त हो जाएँगे।” यह किसका कथन |(क) महात्मा गांधी(ख) बेनीप्रसाद(ग) श्रीनिवास शास्त्री(घ) ग्रीन |
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Answer» सही विकल्प है (क) महात्मा गांधी। |
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अधिकारों का आदर्शवादी सिद्धान्त क्या है? संक्षेप में लिखिए। |
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Answer» अधिकारों का आदर्शवादी सिद्धान्त इस सिद्धान्त की अग्रलिखित मान्यताएँ हैं आलोचना- इस सिद्धान्त के कतिपय दोष निम्नलिखित हैं निष्कर्ष- अध्ययनोपरान्त हम कह सकते हैं कि अधिकारों का आदर्शवादी सिद्धान्त ही सर्वोपयुक्त है, क्योंकि यह इस अवधारणा पर आधारित है कि अधिकारों की उत्पत्ति व्यक्ति के व्यक्तित्व | के सर्वांगीण विकास के लिए है। राज्य तथा समाज तो केवल व्यक्ति के अधिकारों की सुरक्षा तथा व्यवस्था करने के साधन मात्र हैं। व्यक्ति समाज के कल्याण में ही अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकता है। |
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