 
                 
                InterviewSolution
This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
| 1. | लैटेराइट मिट्टी किस राज्य में अधिक मिलती है?(क) कर्नाटक में(ख) असोम में(ग) मेघालय में(घ) उत्तर प्रदेश में | 
| Answer» सही विकल्प है (ग) मेघालय में | |
| 2. | लैटेराइट मिट्टियाँ कहाँ पायी जाती हैं ? | 
| Answer» भारत में पश्चिमी घाट, छोटा नागपुर के पठार, मेघालय तथा तमिलनाडु की पहाड़ियों, केरल तथा पूर्वी घाट के क्षेत्रों में लैटेराइट मिट्टियाँ पायी जाती हैं। | |
| 3. | ऐसे दो राज्यों के नाम लिखिए जहाँ काली मिट्टी पायी जाती है। | 
| Answer» महाराष्ट्र तथा गुजरात ऐसे दो राज्य हैं, जहाँ काली मिट्टी बहुतायत से पायी जाती है। | |
| 4. | वन हमारी सहायता करते हैं(क) मिट्टी का कटाव रोककर(ख) बाढ़ रोककर(ग) वर्षा की मात्रा बढ़ाकर(घ) इन सभी प्रकार से | 
| Answer» सही विकल्प है (घ) इन सभी प्रकार से | |
| 5. | निम्नलिखित में से कौन-सी मिट्टी कपास उत्पादन के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है? याकपास की खेती के लिए सबसे उत्तम मिट्टी है(क) जलोढ़ मिट्टी(ख) लाल मिट्टी(ग) काली मिट्टी(घ) लैटेराइट मिट्टी | 
| Answer» सही विकल्प है (ग) काली मिट्टी | |
| 6. | कौन-सी मिट्टी वर्षा से चिपचिपी हो जाती है?(क) लाल(ख) काली(ग) जलोढ़(घ) पर्वतीय | 
| Answer» सही विकल्प है (ख) काली | |
| 7. | ‘भू-क्षरण के प्रकारों का उल्लेख कीजिए। | 
| Answer» सामान्यतया भू-क्षरण निम्नलिखित दो प्रकार का होता है 
 | |
| 8. | ‘भू-क्षरण’ अथवा ‘भू-अपरदन’ के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए। | 
| Answer» ‘भू-क्षरण’ अथवा ‘भू-अपरदन’ के प्रमुख कारक हैं— 
 | |
| 9. | ‘बाँगर’ से आप क्या समझते हैं? | 
| Answer» बाँगर एक प्रकार की मिट्टी है, जो उत्तरी मैदान में नदियों की पुरानी काँप द्वारा निर्मित होती है। | |
| 10. | भारत की मिट्टी में किन तत्त्वों की कमी पायी जाती है ? | 
| Answer» भारत की मिट्टी में नाइट्रोजन, जीवांश, वनस्पति अंश और खनिज लवणों की कमी पायी जाती है। | |
| 11. | भारतीय मिट्टियों की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। | 
| Answer» भारतीय संसाधनों में मिट्टियों का भूमि संसाधन के रूप में बड़ा महत्त्व है, क्योंकि इन्हीं पर देश का सम्पूर्ण कृषि उत्पादन एवं जैव-जगत् निर्भर करता है। अमेरिकी भूमि विशेषज्ञ डॉ० बेनेट के अनुसार, ‘मिट्टी भू-पृष्ठ पर मिलने वाले असंगठित पदार्थों की वह ऊपरी परत है, जो मूल शैलों, जलवायु एवं जैव क्रिया से बनती है।” भारतीय मिट्टियों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं 
 | |
| 12. | भूमि संसाधन का क्या तात्पर्य है? भूमि संसाधन के कोई तीन महत्त्व लिखिए।याभूमि से आप क्या समझते हैं ? | 
| Answer» किसी देश या प्रदेश के अन्तर्गत सम्मिलित भूमि को भूमि संसाधन कहते हैं। इसके अन्तर्गत कृष्य भूमि, चरागाह भूमि, कृषि-योग्य भूमि, बेकार भूमि, वन भूमि, बंजर भूमि, परती भूमि आदि सम्मिलित की जाती हैं। मनुष्य इस उपलब्ध भूमि पर विविध प्रकार से क्रिया-कलाप करता है। कृषि, पशुपालन, वनोद्योग, खनन, निर्माण उद्योग, परिवहन, व्यापार, संचार आदि सभी का सम्बन्ध भूमि संसाधन से होता है। भूमि संसाधन जल-संसाधनों को आधार प्रदान करते हैं तथा मनुष्य विभिन्न रूपों में इनका उपयोग अपने क्रिया-कलापों की पूर्ति में करता है। | |
| 13. | ‘भू-क्षरण’ या ‘मृदा-अपरदन’ से आप क्या समझते हैं ? इनके कारण तथा निवारण के उपायों पर विस्तार से प्रकाश डालिए।यामृदा-अपरदन किसे कहते हैं ? मृदा-अपरदन के चार कारण लिखिए।यामृदा-संरक्षण के दो उपाय बताइए।यामृदा-संरक्षण नियन्त्रण हेतु चार सुझाव सुझाइए।याभूमि-क्षरण के किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए।याभारतीय मिट्टी के संरक्षण हेतु पाँच सुझाव दीजिए।यामृदा संरक्षण से आप क्या समझते हैं। मृदा संरक्षण के कोई छः उपाय बताइए। | 
| Answer» भू-क्षरण या मृदा-अपरदन भू-क्षरण या मृदा-अपरदन से अभिप्राय प्राकृतिक साधनों (जल या वर्षा, पवन आदि) के द्वारा भूमि की ऊपरी परत या आवरण के नष्ट होने से है। भूमि-अपरदन से भौतिक हानि के अलावा आर्थिक हानि भी होती है, क्योंकि इससे भूमि की ऊपरी परत में मौजूद उर्वर पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं तथा भूमि अनुर्वर हो जाती है। ऐसा कहा जाता है कि भू-क्षरण वास्तव में मिट्टी के विनाश के लिए रेंगती हुई मृत्यु के समान है। भू-क्षरण के कारण मृदा-अपरदन अथवा भू-क्षरण के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं 1. पवन-अपरदन- मरुस्थलों और अर्द्ध-मरुस्थलों में पवन मिट्टी के महीन कणों को उड़ाकर ले जाती . है, जिससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति नष्ट हो जाती है। 2. अत्यधिक चराई- पहाड़ी ढालों पर पशुओं और विशेषकर बकरियों द्वारा अत्यधिक चराई के फलस्वरूप मिट्टी का अपरदन होता है। 3. प्राकृतिक वनस्पति का विनाश- वृक्षों की जड़ें मिट्टी के कणों को बाँधे रहती हैं और उन्हें बह जाने से रोकती हैं। किन्तु जिन स्थानों पर वृक्षों को अन्धाधुन्ध काट दिया जाता है, वहाँ पानी के बहाव की गति तेज हो जाती है और मिट्टी का अपरदन बढ़ जाता है। 4. मूसलाधार वर्षा- मूसलाधार वर्षा अपने साथ मृदा को बहाकर ले जाती है, जिससे अत्यधिक भूमि-अपरदन होता है। 5.     मिट्टी के प्रकार- जिन क्षेत्रों में मिट्टी ढीली, असंगठित या तीव्र ढाल वाली होती है, वहाँ मिट्टी का अपरदन भी अधिक या शीघ्र होता है। अधिक तीव्र ढालों पर बहता हुआ जल अधिक अपरदन करता संक्षेप में कहा जा सकता है कि भारत में भू-क्षरण के लिए तीव्र एवं मूसलाधार वर्षा का होना, नदियों में प्रतिवर्ष बाढ़ों का आना, वनों का अधिकाधिक विनाश, खेतों को खाली एवं परती छोड़ देना, तीव्र पवनप्रवाह का होना, कृषि-भूमि पर पशुओं की अनियमित एवं अनियन्त्रित चराई, खेतों की उचित मेड़बन्दी न किया जाना, भूमि का अधिक ढालूपन, जल निकास की उचित व्यवस्था का न होना आदि कारक उत्तरदायी हैं। निवारण (मृदा संरक्षण) के उपाय भू-क्षरण की समस्या के निवारण के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक हैं 1. वृक्षारोपण- जिन प्रदेशों में बढ़े अधिक आती हैं, वहाँ जल की गति को नियन्त्रित करने के लिए वृक्षारोपण किया जाना चाहिए। वृक्षों से गिरने वाली पत्तियाँ खेतों में जीवांश की वृद्धि कर उसकी उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में भी कारगर सिद्ध होती हैं। 2. नदियों पर बाँधों का निर्माण- नदियों पर बाँधों का निर्माण कर दिये जाने से जल-गति नियन्त्रित होती है तथा बाढ़ के प्रकोप में भी कमी आती है। बाढ़ में कमी आने से भू-क्षरण भी स्वत: ही कम होता है। 3. खेतों की मेड़बन्दी करना- भू-क्षरण में कमी लाने के लिए खेतों में ऊँची-ऊँची मेड़बन्दी करना अति आवश्यक है। 4. पशुचारण पर नियन्त्रण- पशुओं द्वारा खाली या जोती हुई भूमि पर चराई नहीं करानी चाहिए, क्योंकि पशुओं के खुरों से मिट्टी टूटती है। अत: चरागाहों पर ही पशुचारण किया जाना उचित होता है। 5. ढाल के विपरीत दिशा में जुताई करना- भू-क्षरण रोकने के लिए भूमि के ढाल की विपरीत दिशा में जुताई करनी चाहिए। इससे निर्मित नालियाँ जल की गति को कम कर भू-क्षरण को रोकने में कारगर सिद्ध हो सकती हैं। 6. जल के निकास की उचित व्यवस्था- ढालू खेतों में वर्षा के जल के निकास की उचित व्यवस्था कर भू-क्षरण को कुछ सीमा तक रोका जा सकता है। पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ीदार खेतों का ही निर्माण किया जाना चाहिए, अन्यथा भू-क्षरण अत्यधिक होगा। 7. खेतों में हरी खाद वाली फसलें उगाना- वर्षा ऋतु में खेतों को खुला नहीं छोड़ना चाहिए, वरन् उनमें हरी खाद वाली फसलें—लैंचा, सनई, मूंग नं० 1 आदि बोनी चाहिए। ऐसा करने से मिट्टी को पोषक तत्त्वों की प्राप्ति होगी तथा भू-क्षरण भी रुक सकेगा। 8: नाली एवं गड्ढों को एक सम बनाना- वर्षा के आधिक्य के कारण जल-प्रवाह द्वारा निर्मित गड्ढों एवं नालियों को मिट्टी से भरकर भूमि को समतल बना देना चाहिए। इससे भूमि का कटाव स्वत: ही रुक जाएगा। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार का ध्यान भू-क्षरण की ओर गया है तथा इस समस्या के निवारण हेतु सन् 1953 ई० में केन्द्रीय भू-क्षरण बोर्ड की स्थापना की गयी है, जिसका मुख्य कार्य सरकार को इस समस्या के सम्बन्ध में सुझाव देना है। वर्तमान समय तक 180 लाख हेक्टेयर कृषि- भूमि का संरक्षण किया जा चुका है तथा 110 लाख हेक्टेयर भूमि पर वृक्षारोपण का कार्य पूरा किया जा चुका है। | |