InterviewSolution
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मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली का तटस्थ मूल्यांकन प्रस्तुत कीजिए।यामॉण्टेसरी प्रणाली की विशेषताएँ बताइए। |
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Answer» यह सत्य है कि अन्य विभिन्न शिक्षा- प्रणालियों के ही समान मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली के भी अपने गुण-दोष हैं, परन्तु इस शिक्षा प्रणाली की अपनी कुछ मौलिक विशेषताएँ हैं जिनके कारण इस शिक्षा-प्रणाली को सारे विश्व में पर्याप्त लोकप्रियता प्राप्त हुई है। मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली को शिक्षा-जगत की एक महत्त्वपूर्ण शिक्षा-प्रणाली माना जाता है। इस शिक्षा-प्रणाली का तटस्थ मूल्यांकन मेयर्स ने इन शब्दों में प्रस्तुत किया है, “मॉण्टेसरी की सफलता ने इस धारणा को नवजीवन प्रदान किया है कि परम्परागत सामूहिक रटाई पद्धति केवल बालकों को कूपमण्डूक ही नहीं बनाती थी, बल्कि एक वर्ग के सदस्यों के विकास को बाधा पहुँचाती थी। मॉण्टेसरी के वैयक्तिक शिक्षा पर जोर देने के कारण शिक्षाशास्त्री फिर से । अधिक उत्तम पद्धति की खोज में लग गए, जिसमें वे छात्रों की वैयक्तिक आवश्यकताओं एवं योग्यताओं पर ध्यान दे सकें। |
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मॉण्टेसरी शिक्षा-पद्धति के मुख्य गुणों का विवरण प्रस्तुत कीजिए। |
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Answer» मॉण्टेसरी पद्धति के गुण मॉण्टेसरी पद्धति की सफलता उसके अनेक गुणों पर आधारित है। इन गुणों का संक्षिप्त विवेचन निम्नलिखित 1. शिशु-शिक्षा के लिए उपयुक्त- मॉण्टेसरी पद्धति का पहला प्रमुख गुण यह है कि यह पद्धति अल्प आयु के शिशुओं के लिए अत्यन्त उपयोगी और उपयुक्त है। शिशुओं को छोटे-छोटे विभिन्न शिक्षा उपकरणों के साथ खेलने में बहुत आनन्द मिलता है और वस्तुओं के प्रयोग से | मॉण्टेसरी पद्धति के गुण उनकी ज्ञानेन्द्रियाँ भी प्रशिक्षित हो जाती हैं। वे इनसे थोड़ी देर के लिए भी अलग नहीं होना चाहते। इस आयु के बालकों को क्रिया एवं खेल। के द्वारा ज्ञान देना उपयुक्त भी है। |
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मैडम मारिया मॉण्टेसरी का सामान्य परिचय दीजिए। |
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Answer» मैडम मारिया मॉण्टेसरी का सामान्य परिचय डॉ० मॉण्टेसरी की गणना विश्व के महाम् शिक्षाशास्त्रियों में की जाती है। उन्होंने अपना जीवन एक डॉक्टर के रूप में आरम्भ किया और बाल शिक्षा के क्षेत्र में अपनी मौलिक देन देकर अपना नाम अमर कर लिया। डॉ० मॉण्टेसरी इटली की मूल निवासी थीं। 24 वर्ष की आयु में उन्होंने रोम विश्वविद्यालय से डॉक्टरी पास करके अपाहिज और मन्दबुद्धि के बालकों की चिकित्सा करनी आरम्भ की। उन्होंने अपाहिज और मन्दबुद्धि के बालकों की दयनीय दशा देखकर निर्णय किया कि ऐसे बालकों की शिक्षा की कोई नई व्यवस्था होनी चाहिए। उन्होंने अपने अनुभवों से यह निष्कर्ष निकाला कि मन्दबुद्धि वाला बालक भी बुद्धिमान बन सकता है, यदि उसकी शिक्षा-पद्धति पूर्ण मनोवैज्ञानिक हो। इसीलिए उन्होंने प्रयोगात्मक मनोविज्ञान तथा सामाजिक मानवशास्त्र का गहन अध्ययन करके बालकों के लिए एक नवीन शिक्षा-पद्धति को जन्म दिया, जिसे ‘मॉण्टेसरी पद्धति’ के रूप में विश्वभर में ख्याति प्राप्त हुई। |
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मॉण्टेसरी शिक्षा-पद्धति के मुख्य दोषों का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए। |
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Answer» मॉण्टेसरी पद्धति के दोष यद्यपि मॉण्टेसरी शिक्षा-पद्धति बालकों की शिक्षा के लिए बड़ी उपयोगी है, तथापि इसमें कुछ दोष और कमियाँ भी हैं, जिनका विवेचन निम्नवत् किया जा सकता है| 1. अमनोवैज्ञानिक- किलपैट्रिक तथा स्टर्न ने मॉण्टेसरी पद्धति को अमनोवैज्ञानिक बताया है, क्योंकि इसमें बालकों से कुछ ऐसे कार्य कराए जाते हैं, जो उनके स्तर से ऊँचे हैं। कुछ शिक्षाशास्त्रियों का मत है कि चार वर्षीय बालक को अधिक लिखना-पढ़ना सिखाना लाभदायक नहीं है। |
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मॉण्टेसरी प्रणाली और किण्डरगार्टन प्रणाली के संस्थापक कौन थे तथा इन दोनों में क्या अन्तर है? |
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Answer» मॉण्टेसरी प्रणाली की संस्थापिका मैडम मारिया मॉण्टेसरी थी तथा किण्डरगार्टन प्रणाली के संस्थापक फ्रॉबेल थे। इन दोनों शिक्षा-प्रणालियों में पर्याप्त समानता होते हुए भी निम्नलिखित अन्तर हैं ⦁ मॉण्टेसरी प्रणाली का आधार वैज्ञानिक है, जब कि किण्डरगार्टन प्रणाली का आधार मनोवैज्ञानिक तथा दार्शनिक है। |
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मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली के अन्तर्गत कर्मेन्द्रियों की शिक्षा-व्यवस्था का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» कर्मेन्द्रियों की शिक्षा (Education of Action-Sense) मॉण्टेसरी ने अपनी शिक्षण-पद्धति में बालक की कर्मेन्द्रियों की शिक्षा पर विशेष बल दिया है। मॉण्टेसरी स्कूलों का वातावरण ऐसा होता है और बालकों के सम्मुख ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दी जाती हैं कि बालक चलने-फिरने के साधारण कार्य से लेकर अपने से सम्बन्धित सभी कार्यों को स्वयं कर लेता है। हाथ-मुँह धोना, कपड़े पहनना और उतारना, मेज तथा कुर्सी को ठीक स्थान पर रखना, कमरा सजाना, चीजों को सँभालकर रखना, भोजन बनाना और परोसना, बर्तन धोना आदि काम बालक स्वयं कर लेते हैं। ऐसे कार्यों को अपने आप करने से बालक प्रसन्नता का अनुभव प्राप्त करता है तथा अन्य कार्यों के लिए उत्साहित होता है। इस प्रकार के शिक्षण का उद्देश्य बालकों में अच्छी आदतों का निर्माण करना एवं उनका जीवन सफल बनाना है। इसके द्वारा बालक दैनिक जीवन के सभी आवश्यक कार्यों की शिक्षा प्राप्त कर लेता है। वह शिष्ट तथा सभ्य हो जाता है। |
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मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली के विद्यालयों का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए। |
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Answer» मॉण्टेसरी विद्यालय (Montessori Schools) मॉण्टेसरी पद्धति में बच्चों को विद्यालय में घर के समान ही वातावरण मिलता है, इसीलिए मॉण्टेसरी ने विद्यालय को ‘बच्चों का घर’ (Children’s Home) कहा है। मॉण्टेसरी स्कूलों का वातावरण बालकों के अनुकूल तथा स्वतन्त्र होता है और उसमें उन्हें खेलने-कूदने तथा अपने व्यक्तित्व को विकसित करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है। बालघर में एक बड़ा कमरा तथा कई छोटे-छोटे कमरे होते हैं। बड़े कमरे में बालक उपकरणों की सहायता से सीखता है तथा छोटे-छोटे कमरे भोजन, व्यायाम, विश्राम, गोष्ठी आदि कार्यो के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं। बालकों को घूमने तथा खेलने के लिए छोटे-छोटे पार्क तथा उद्यान होते हैं, जिनमें बालक स्वच्छन्दतापूर्वक खेलता है तथा उसके भूलने-भटकने का भी डर नहीं रहता है। बालक पूर्ण स्वतन्त्र होता है। कि वह चाहे बाग में जाकर सीखे या कमरे में बैठकर सीखें। विद्यालय में नीचे कमरे, नीची खिड़कियाँ, नीची अलमारियाँ एवं छोटी-छोटी मेज-कुर्सियों का प्रबन्ध होता है। खिड़कियों के खोलने, बन्द करने एवं अलमारियों के उपयोग में बालक स्वतन्त्र होता है। आवश्यकतानुसार बालक स्वयं ही अपनी कुर्सी को यत्र-तत्र ले जाता है। छोटे-छोटे प्याले, चम्मच एवं अन्य बर्तन होते हैं, जिन्हें वह अपना समझता है और वास्तविक आनन्द एवं तृप्ति पाता है। |
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मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली के अन्तर्गत भाषा की शिक्षा-व्यवस्था का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» भाषा की शिक्षा-व्यवस्था(Education Systems of Language) बालक की ज्ञानेन्द्रियों को विकसित और प्रशिक्षित करने के बाद उन्हें लिखने, पढ़ने तथा अंकगणित की शिक्षा दी जाती है। भाषा, जीवन के लिए आवश्यक और उपयोगी है। भाषा को वातावरण के माध्यम से अधिक जल्दी सिखाया जा सकता है। मॉण्टेसरी का कथन है कि बालक को पहले लिखना सिखाना चाहिए। और लिखना सीखते-सीखते वे स्वयं पढ़ना सीख जाएँगे। मॉण्टेसरी का सिद्धान्त है कि पढ़ने से लिखना . सरल है, इसलिए बालक की भाषा की शिक्षा लिखने से प्रारम्भ होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त उच्चारण में लय तथा गति पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए। लिखना सिखाने के लिए उँगली फेरते-फेरते बालक की उँगलियाँ सध जाती हैं। वह अक्षर के स्वरूप का ज्ञान सरलता से कर लेता है। इससे बालक में सफलता की भावना बड़ी जल्दी आती है और वह उत्साहित होकर अधिक सीखने का प्रयत्न करता है। इससे उसमें आत्म-गौरव की भावना आती है। |
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मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली के अन्तर्गत ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा-व्यवस्था का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा (Education of Senses) ज्ञानेन्द्रियाँ ही हमारे बाह्य संसार के ज्ञान के द्वार हैं तथा ये ही आन्तरिक एवं बाह्य संसार से सम्बन्ध स्थापित करती हैं। इसलिए मॉण्टेसरी ने ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा पर विशेष बल दिया है। उनके अनुसार बालकों को सूक्ष्म विचारों का ज्ञान देना व्यर्थ है, क्योंकि बालकों में इतनी क्षमता नहीं होती कि वे सूक्ष्म विचारों को समझ सकें। उनका कहना है कि जितने अधिक ज्ञानेन्द्रिय अनुभव बालकों को कराए जाएँ, उतनी ही बालक अधिक शिक्षा ग्रहण कर सकेगा। विभिन्न ज्ञानेन्द्रियों को प्रशिक्षित करने के लिए मॉण्टेसरी ने विभिन्न शिक्षा उपकरणों का निर्माण किया है। इनकी विशेषता यह है कि एक उपकरण से केवल एक ही काम हो सकता है। इन उपकरणों से खेलते-खेलते बिना शिक्षक की सहायता के बालक स्वयं समझ जाते हैं कि उन्हें क्या करना है। ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा पर बल देते हुए मॉण्टेसरी ने लिखा है, “ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा सम्बन्धी क्रियाओं का यह ध्येय नहीं है कि बालकों को विभिन्न वस्तुओं के रूप, वर्ण और गुण का ज्ञान हो जाए, वरन् उनसे हम उनकी ज्ञानेन्द्रियों को परिष्कृत करना चाहते हैं। इससे उनकी बुद्धि का विकास होता है। उनसे बुद्धि के विकास में वैसी ही सहायता मिलती है, जैसी व्यायाम से शारीरिक विकास में। अतएव ज्ञानेन्द्रियों की साधना एक प्रकार । का बौद्धिक व्यायाम है।” |
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मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली में शिक्षक की भूमिका को स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» मॉण्टेसरी पद्धति की सफलता शिक्षक की योग्यता पर निर्भर करती है। अत: मॉण्टेसरी स्कूलों में प्रशिक्षित शिक्षक का होना अनिवार्य है। शिक्षक को बालकों के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और उनकी आवश्यकतानुसार उनकी यथोचित सहायता करनी चाहिए। शिक्षक को तानाशाह न होकर एक योग्य निर्देशक एवं पथ-प्रदर्शक होना चाहिए। बालकों की आवश्यकताओं को समझकर उन्हें स्वतन्त्र वातावरण देना चाहिए, जिससे वह अपनी इच्छानुसार प्राकृतिक शक्तियों का विकास कर सके। शिक्षक को बाल-मनोविज्ञान का ज्ञान होना आवश्यक है। रॉबर्ट रस्क (Robert Rusk) के अनुसार, “मॉण्टेसरी पद्धति के शिक्षक के लिए उन शिक्षकों की ही नियुक्ति करनी चाहिए जिन्होंने बाल-मनोविज्ञान तथा उनके प्रयोग का प्रशिक्षण लिया हो।’ |
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छोटे बच्चों को शिक्षा प्रदात करने वाली मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली को किसने लागू किया था? |
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Answer» छोटे बच्चों को शिक्षा प्रदान करने वाली मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली को लागू करने का श्रेय मैडम मारिया मॉण्टेसरी को था। |
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मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली का सिद्धान्त है(क) आत्माभिव्यक्ति का सिद्धान्त(ख) पूर्ण स्वतन्त्रता का सिद्धान्त(ग) विकास के लिए शिक्षा का सिद्धान्त(घ) उपर्युक्त सभी सिद्धान्त |
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Answer» सही विकल्प है (घ) उपर्युक्त सभी सिद्धान्त |
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मॉण्टेसरी शिक्षा में ज्ञानेन्द्रिय प्रशिक्षण क्या है? |
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Answer» मॉण्टेसरी शिक्षा प्रणाली में ज्ञानेन्द्रियों को ज्ञान का द्वार माना गया है। इस प्रणाली का मानना है। कि यदि ज्ञानेन्द्रियाँ निर्बल रहती हैं तो व्यक्ति का ज्ञान अस्पष्ट तथा अपूर्ण रहता है। अत: इस प्रणाली में विभिन्न शैक्षिक उपकरणों द्वारा बालक की ज्ञानेन्द्रियों को प्रशिक्षित किया जाता है। |
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मारिया मॉण्टेसरी किस देश की निवासी थीं?(क) इटली(ख) फ्रांस(ग) जर्मनी(घ) स्वीडन |
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Answer» सही विकल्प है (क) इटली |
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मॉण्टेसरी प्रणाली की प्रणेता हैं(क) एनी बेसेण्टं(ख) मारिया मॉण्टेसरी(ग) हरबर्ट(घ) पेस्टालॉजी |
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Answer» सही विकल्प है (ख) मारिया मॉण्टेसरी |
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निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य⦁ मॉण्टेसरी शिक्षा प्रणाली को मिस हेलेन पार्कहर्ट ने प्रारम्भ किया था।⦁ मैडम मॉण्टेसरी जर्मनी की मूल निवासी थीं।⦁ मॉण्टेसरी शिक्षा प्रणाली में सैद्धान्तिक एवं पुस्तकीय शिक्षा को प्राथमिकता प्रदान की जाती⦁ मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली में शिक्षिका की भूमिका कठोर नियन्त्रक की है।⦁ मॉण्टेसरी शिक्षा-प्रणाली में विभिन्न शिक्षण उपकरणों को अपनाया जाता है। |
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Answer» ⦁ असत्य, ⦁ असत्य, ⦁ असत्य, ⦁ असत्य, ⦁ सत्य। |
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