InterviewSolution
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क्या आपको लगता है पिछले 50 वर्षों में भारत में रोजगार के सृजन में भी सकल घरेलू उत्पाद के अनुरूप वृद्धि हुई है? कैसे? |
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Answer» सकल घरेलू उत्पाद (G.D.P.) एक वर्ष की अवधि में देश में हुए सभी वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन का बाजार मूल्य होता है। 1960-2000 ई० की अवधि में सकल घरेलू उत्पाद में सकारात्मक वृद्धि हुई है और यह संवृद्धि दर रोजगार वृद्धि दर से अधिक रही है। सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में कुछ उतार-चढ़ाव भी आते रहे हैं परन्तु इस अवधि में रोजगार की वृद्धि लगभग 2 प्रतिशत बनी रही। परन्तु 1990 ई० के अन्तिम वर्षों में रोजगार वृद्धि दर कम होकर उसी स्तर पर पहुँच गई जहाँ योजनाकाल के प्रथम चरणों में थी। इस अवधि में सकल घरेलू उत्पाद एवं रोजगार बढ़ोतरी की दरों में अन्तर रहा है। इस प्रकार हम भारतीय अर्थव्यवस्था में रोजगार सृजन के बिना ही अधिक वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करने में सक्षम रहे हैं। |
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सरकार रोजगार सृजन के लिए क्या प्रयास करती है? |
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Answer» केन्द्र एवं राज्य सरकारें रोजगार सृजन हेतु अवसरों की रचना करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती आ रही हैं। इनके प्रयासों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है—प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष। प्रत्यक्ष रूप से सरकार अपने विभिन्न विभागों में प्रशासकीय कार्यों के लिए नियुक्तियाँ करती है। सरकार अनेक उद्योग, होटल और परिवहन कम्पनियाँ भी चला रही है। इन सब में वह प्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान करती है। सरकारी उद्यमों में उत्पादकता के स्तर में वृद्धि अन्य उद्यमों के विस्तार को प्रोत्साहित करती है जिससे रोजगार के नए-नए अवसर सृजित होते हैं।देश में निर्धनता निवारण के लिए चलाए ज रहे विभिन्न कार्यक्रम रोजगार सृजन कार्यक्रम ही हैं। से कार्यक्रम केवल रोजगार ही उपलब्ध नहीं कराते अपितु इनके सहारे प्राथमिक, जनस्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, ग्रामीण आवास, ग्रामीण जलापूर्ति, पोषण, लोगों की आय तथा रोजगार सृजन करने वाली परिसम्पत्तियाँ खरीदने में सहायता, दिहाड़ी रोजगार के सृजन के माध्यम से सामुदायिक परिसम्पत्तियों का विकास, गृह और स्वच्छता सुविधाओं का निर्माण, गृहनिर्माण के लिए सहायता, ग्रामीण सड़कों का निर्माण और बंजर भूमि आदि के विकास के कार्य पूरे किए जाते हैं। |
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क्या औपचारिक क्षेत्रक में ही रोजगार का सृजन आवश्यक है? अनौपचारिक में नहीं? कारण बताइए। |
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Answer» सार्वजनिक क्षेत्रक की सभी इकाइयाँ एवं 10 या अधिक कर्मचारियों को रोजगार देने वाले निजी क्षेत्रक की इकाइयाँ औपचारिक क्षेत्रक माने जाते हैं। इन इकाइयों में काम करने वाले को औपचारिक क्षेत्र के कर्मचारी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी इकाइयाँ और उनमें कार्य कर रहे श्रमिक, अनौपचारिक श्रमिक कहलाते हैं। औपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था के लाभ मिलते हैं। इनकी आमदनी भी अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों से अधिक होती है। इसके विपरीत अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों की आय नियमित नहीं होती है तथा उनके काम में भी निश्चितता एवं नियमितता नहीं होती। किन्तु दोनों ही क्षेत्रक रोजगार देते हैं, अत: दोनों को ही विकास आवश्यक है। साथ ही अनौपचारिक क्षेत्र को नियमित एवं नियन्त्रित करना भी आवश्यक है। |
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