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1.

अंतर्राष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा की जाने वाली बाध्यकारी कार्यवाही की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।

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बाध्यकारी कार्यवाही
संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अध्याय 7 में यह व्यवस्था की गई है कि यदि विश्व-शांति तथा सुरक्षा के लिए संकट उत्पन्न हो या शांति भंग से अथवा विश्व के किसी भी क्षेत्र में सशस्त्र आक्रमण होने की स्थिति उत्पन्न हो या हो गई हो तो संयुक्त राष्ट्र संघ शांति स्थापनार्थ बल प्रयोग कर सकता है। वह प्रतिरोधात्मक उपायों का आश्रय भी ले सकता है। यह बल प्रयोग संघ दो प्रकार से करता है-
⦁     जिसमें सशस्त्र सेना के प्रयोग की आवश्यकता नहीं होती एवं
⦁     जिसमें सशस्त्र सैन्य बल का प्रयोग आवश्यक हो जाता है।

अनुच्छेद 39 के अनुसार सुरक्षा परिषद् ही यह निर्णय करती है कि किन कार्यों द्वारा शांति भंग की दशा में आक्रमण की संक्रिया की जा सकती है। इस अनुच्छेद के अनुसार परिषद् सिफारिश तथा निर्णय दोनों प्रकार के कार्य करती है। अनुच्छेद 40 में यह व्यवस्था है कि किसी स्थिति को बिगड़ने से बचाने के लिए सुरक्षा परिषद् अपनी सिफारिशें करने अथवा किसी कार्यवाही का निश्चय करने से पूर्व विवादी पक्षों से ऐसे अस्थायी कदम उठाने की माँग करेगी, जिन्हें वह आवश्यक समझती हो। इन अस्थायी कार्यों से विवादी पक्ष के अधिकारों, दावों या उनकी हैसियत को किसी प्रकार की हानि नहीं होगी। यदि कोई पक्ष इस प्रकार के अस्थायी कदम नहीं उठाता है तो सुरक्षा परिषद् इसकी ओर भी ध्यान रखेगी।

बल प्रयोग के दोनों उपाय सुरक्षा परिषद् के निर्णय के अनुसार संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्यों को मानने पड़ते हैं। इसका संचालन भी सुरक्षा परिषद् ही करती है। चार्टर में कहीं ‘आक्रमण’, ‘शांति भंग’, ‘शांति का संकट’, ‘घरेलू मामला’ आदि वाक्यों को स्पष्ट नहीं किया गया है। यदि एक राष्ट्र की दृष्टि । में कोई आक्रमण होता है तो दूसरे राष्ट्र की दृष्टि में वही ‘घरेलू मामला हो सकता है। इस प्रकार के सभी मामलों के निर्णय के लिए परिषद् के 5 स्थायी सदस्यों के मतों सहित कुल 9 सदस्यों के स्वीकारात्मक मत आवश्यक होते हैं। परन्तु राजनीतिक गुटबन्दी के कारण इस प्रकार का निर्णय लेना कठिन कार्य हो जाता है। यही कारण है कि सुरक्षा परिषद् ऐसे मामलों में तत्क्षण कोई निर्णय नहीं ले पाती है।

एक बार यह निश्चित हो जाने पर कि किसी देश के लिए युद्ध जैसी परिस्थितियाँ या किसी देश पर हुआ आक्रमण विश्व शांति के लिए संकट है तो इस स्थिति में सुरक्षा परिषद् तुरंत कार्यवाही कर सकती है। इस प्रकार की कार्यवाही में सैनिक तथा असैनिक दोनों प्रकार की अनुशास्तियाँ निहित हैं। और संघ के सभी सदस्य परिषद् के निर्णय पर अमल करने के लिए, संघ के विधानानुसार बाध्य हैं। जब विवाद में,सशस्त्र संघर्ष उत्पन्न हो जाता है तो संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन के सामने गंभीर चुनौती उत्पन्न हो जाती है। सिद्धांततः चार्टर के अनुच्छेद 7 के अनुसार विवादी पक्षों पर अनुशास्तियाँ स्थापित करने की व्यवस्था है, तथापि संयुक्त राष्ट्र संघ सामान्यतया दमनकारी या प्रतिरोध के उपायों से दूर रहने का प्रयत्न करता है तथा कूटनीतिक, राजनीतिक या वैधानिक उपायों से समस्या को सुलझाने का प्रयास करता है। सशस्त्र संघर्ष को विराम देने के लिए वैसे तो चार्टर में स्पष्टतः युद्ध विराम आदेश के विषय में कुछ नहीं कहा गया है, तथापि अनुच्छेद 40 के बारे में विस्तार से लिखा गया है।

अनेक मामलों में विवादी पक्ष युद्ध विराम के लिए तैयार हो जाते हैं। परन्तु इस बात की भी प्रबल सम्भावना रहती है कि विवादी राष्ट्रों द्वारा सुरक्षा के आदेशों या सिफारिशों को ठुकरा दिया जाए। इण्डोनेशिया और डचों, यहूदियों और अरबों, साइप्रस के यूनानियों तथा तुर्को और दो अवसरों पर भारतीयों तथा पाकिस्तानियों के बीच युद्ध रोकने में सुरक्षा परिषद् की युद्ध विराम की आज्ञाएँ प्रभावी मानी गईं।

अनुच्छेद 41 के अंतर्गत यह व्यवस्था है कि सुरक्षा परिषद् अपने निर्णयों पर अमल करने के लिए कोई भी कार्यवाही कर सकती है, जिसमें सशस्त्र सेना का प्रयोग न हो। यह संघ-सदस्यों में इस प्रकार की कार्यवाही करने की माँग कर सकती है। इन कार्यवाहियों के अनुसार आर्थिक संबंध पूर्णरूपेण या आंशिक रूप से समाप्त किए जा सकते हैं। समुद्र, वायु, डाक-तार, रेडियो और यातायात के अन्य साधनों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है और कूटनीतिक संबंधों को समाप्त किया जा सकता है।

अनुच्छेद 42 में चर्चा की गई है कि शांति तथा सुरक्षा के लिए की जाने वाली कार्यवाहियाँ यदि अपर्याप्त सिद्ध हो गई हों तो जल, थल और वायु सेनाओं द्वारा आवश्यक कार्यवाही की जा सकती है। इस कार्यवाही में विरोध प्रदर्शन माकेबन्दी तथा संघ के सदस्य राष्ट्रों की जल, थल तथा वायु सेनाओं द्वारा की जाने वाली कोई भी कार्यवाही सम्मिलित है।

अनुच्छेद 43 के अनुसार परिषद् इस बात को निश्चित करती है कि उपयुक्त कार्यवाही संघ के कुछ सदस्यों द्वारा की जाए या सभी सदस्यों द्वारा। जो कार्य किया जाए वह स्वतन्त्र रूप से हो या प्रत्यक्ष हो या फिर उसे क्रियान्वित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की सहायता ली जाए। सदस्य राष्ट्रों को यह कर्तव्य है कि वे सुरक्षा परिषद् के माँगने पर तथा विशेष समझौते के अनुसार अपनी सशस्त्र सेनाएँ, सहायता तथा अन्य सुविधा उपलब्ध कराएँगे। संघ की व्यवस्था के अनुसार जिस प्रकार के समझौतों द्वारा यह निश्चिय किया जाना था कि संघ का प्रत्येक सदस्य कितनी सहायता देगा, सेनाओं की उपलब्धता क्या होगी, ये अविलम्ब कार्यवाही करने के लिए कैसे तैयार होंगी तथा प्रत्येक सदस्य किस प्रकार अन्य सुविधाएँ प्रदान करेगा-परन्तु ऐसे समझौते अभी तक हुए नहीं हैं। उस दशा में अनुच्छेद में यह कहा गया है-“जब सुरक्षा परिषद् बल प्रयोग करने का निश्चय कर ले तो किसी ऐसे सदस्य से, जिसे इसमें प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है, सशस्त्र सेनाएँ जुटाने के लिए कहने से पूर्व वह उस देश को, यदि संबंधित देश चाहे तो उसकी सशस्त्र सेनाओं के प्रयोग से संबंधित निर्णयों में भाग लेने को आमंत्रित करेगी।”

2.

नीत्शे और पैरेटो के शांति संबंधी विचार लिखिए।

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अतीत के अनेक महत्त्वपूर्ण विचारकों ने शांति के बारे में नकारात्मक ढंग से लिखा है। जर्मन दार्शनिक फेड्रिक नीत्शे युद्ध को महिमामण्डित करने वाले विचारक थे। नीत्शे ने शांति का महत्त्व नहीं दिया, क्योंकि उसको मानना था कि केवल संघर्ष ही सभ्यता की उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। इसी प्रकार अन्य अनेक विचारकों ने शांति को व्यर्थ बताया है और संघर्ष की प्रशंसा. व्यक्तिगत बहादुरी और सामाजिक जीवंतता के वाहक के रूप में की है। इटली के समाज सिद्धांतकार विल्फ्रेडो पैरेटो (1843-1923) का दावा था कि अधिकांश समाजों में शासक वर्ग का निर्माण सक्षम और अपने लक्ष्यों को पाने के लिए शक्ति का प्रयोग करने के लिए तैयार लोगों से होता है। उसने ऐसे लोगों का वर्णन शेर के रूप में किया है।

3.

शान्तिवाद के विषय में आप क्या जानते हैं? संक्षेप में लिखिए।

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‘शान्तिवाद’ विवादों को सुलझाने के हथियार के रूप में युद्ध अथवा हिंसा के बजाय शान्ति का उपदेश देता है। इसमें विचारों की अनेक छवियाँ सम्मिलित हैं। इसके क्षेत्र में कूटनीति को अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का समाधान करने में प्राथमिकता देने से लेकर किसी भी हालत में हिंसा और शक्ति के प्रयोग के पूर्ण निषेध तक आते हैं। शान्तिवाद सिद्धान्तों पर भी आधारित हो सकती है और व्यावहारिकता पर भी।

सैद्धान्तिक शान्तिवाद का जन्म इस विश्वास से होता है कि युद्ध सुविचारित घातक हथियार, हिंसा या किसी प्रकार की जोर-जबरदस्ती नैतिक रूप से गलत है। व्यावहारिक शान्तिवाद ऐसे किसी चरम सिद्धान्त का अनुसरण नहीं करता है। व्यावहारिक शान्तिवाद मानता है कि विवादों के समाधान में युद्ध से बेहतर तरीके भी हैं या फिर यह समझता है कि युद्ध पर लागत अधिक आती है, लाभ कम होते हैं। युद्ध से बचने के पक्षधर लोगों के लिए ‘श्वेत कपोत’ जैसे अनौपचारिक शब्दों का प्रयोग होता है। शब्द सुलह-समझौते के पक्षधरों की सौम्य प्रकृति की ओर इशारा करते हैं। कुछ लोग सुलह-समझौते के पक्षधरों को शान्तिवादी के वर्ग में नहीं रखते, क्योंकि वे कतिपय परिस्थितियों में युद्ध को औचित्यपूर्ण मान सकते हैं।

‘बाज’ या युद्ध-पिपासु लोग कपोत प्रकृति के विपरीत होते हैं। युद्ध का विरोध करने वाले कुछ शान्तिवादी सभी प्रकार की जोर-जबरदस्ती जैसे शारीरिक बल प्रयोग या सम्पत्ति की बरबादी के विरोधी नहीं होते। उदाहरणस्वरूप, असैन्यवादी साधारणतया हिंसा के बजाय आधुनिक राष्ट्र-राज्यों की सैनिक संस्थाओं के विशेष रूप से विरोधी होते हैं। अन्य शान्तिवादी अंहिसा के सिद्धान्तों का अनुसरण करते हैं, क्योंकि वे केवल अहिंसक कार्यवाही के स्वीकार्य होने का विश्वास करते हैं।

4.

शान्ति स्थापित करने के विभिन्न तरीकों की विवेचना कीजिए।

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शान्ति स्थापित करने और बनाए रखने के लिए विभिन्न रणनीतियाँ अपनाई गई हैं। इन रणनीतियों को आकार देने के लिए तीन तरीकों ने सहायता दी है जो निम्नलिखित हैं-

1. प्रथम तरीका राष्ट्रों को केन्द्रीय स्थान प्रदान करता है, उनकी सम्प्रभुता का सम्मान करता है। उनके बीच प्रतिद्वन्द्विता को जीवन्त सत्य मानता है। उसकी प्रमुख प्रतिद्वन्द्विता के उपयुक्त प्रबन्धन तथा संघर्ष की आशंका का शमन सत्ता-सन्तुलन की पारस्परिक व्यवस्था के माध्यम से करने की होती है। कहा जाता है कि वैसा एक सन्तुलन 19वीं सदी में प्रचलित था, जब प्रमुख यूरोपीय देशों ने सम्भावित आक्रमण को रोकने और बड़े पैमाने पर युद्ध से बचने के लिए अपने सत्ता संघर्षों में गठबन्धन बनाते हुए तालमेल किया।

2. दूसरा तरीका भी राष्ट्रों की गहराई तक जमी आपसी प्रतिद्वन्द्विता की प्रकृति को स्वीकार करता है, लेकिन इसका जोर सकारात्मक उपस्थिति और परस्पर निर्भरता की सम्भावनाओं पर है। यह विभिन्न देशों के बीच विकासमान सामाजिक आर्थिक सहयोग को रेखांकित करता है। अपेक्षा रहती है कि वैसे सहयोग राष्ट्र की सम्प्रभुता को नरम करेंगे और अन्तर्राष्ट्रीय समझदारी को प्रोत्साहित करेंगे। परिणामस्वरूप वैश्विक संघर्ष कम होंगे, जिससे शान्ति की अच्छी सम्भावनाएँ। बनेंगी। इस पद्धति के पक्षकारों द्वारा अक्सर दिया जाने वाला एक उदाहरण द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् के यूरोप का है, जो आर्थिक एकीकरण से राजनीतिक एकीकरण की ओर बढ़ता गया है।

3. तीसरी पद्धति राष्ट्र आधारित व्यवस्था को मानव इतिहास की समाप्तप्राय अवस्था स्वीकारती है। यह अधिराष्ट्रीय व्यवस्था को मनोचित्र बनाती है और वैश्विक समुदाय के अभ्युदय को शान्ति की विश्वसनीय गारण्टी मानती है। वैसे समुदाय के बीज राष्ट्रों की सीमाओं के आर-पार बढ़ती आपसी अन्त:क्रियाओं और संश्रयों में दिखते हैं जिसमें बहुराष्ट्रीय निगम और जनान्दोलन जैसे विविध गैर-सरकारी कर्ता सम्मिलित हैं। इस तरीके के प्रस्तावक और समर्थक तर्क देते हैं कि वैश्वीकरण की चल रही प्रक्रिया राष्ट्रों को पहले से ही घट गई प्रधानता और सम्प्रभुता को और अधिक क्षीण कर रही है, जिसके फलस्वरूप विश्व-शान्ति स्थापित होने की परिस्थितियाँ बन रही हैं।

यह कहा जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र तीनों की पद्धतियों के प्रमुख तत्त्वों को साकार कर सकता है। सुरक्षा परिषद्, जो स्थायी सदस्यता और पाँच प्रमुख राष्ट्रों को निषेधाधिकार (अन्य सदस्यों द्वारा समर्थित प्रस्ताव को भी गिरा देने का अधिकार) देता है, प्रचलित अन्तर्राष्ट्रीय श्रेणीबद्धता को ही व्यक्त करता है। आर्थिक-सामाजिक परिषद् अनेक क्षेत्रों में राष्ट्रों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करता है। मानवाधिकार आयोग अन्तर्राष्ट्रीय मानदण्डों को आकार देना और लागू करना चाहता है।

5.

फिलिस्तीनी संघर्ष किसके विरुद्ध है?(क) इजराइल के(ख) ईरान के(ग) इराक के(घ) संयुक्त अरब अमीरात के

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सही विकल्प है (क) इजराइल के।

6.

टिकाऊ शांति किस प्रकार प्राप्त की जा सकती है?

Answer»

न्यायपूर्ण और टिकाऊ शांति अप्रकट शिकायतों और संघर्षों के कारणों को साफ-साफ व्यक्त करने और बातचीत द्वारा हल करने के माध्यम से ही प्राप्त की जा सकती है।

7.

शांति के विषय में नकारात्मक विचार रखने वाले दो विचारकों के नाम लिखिए।

Answer»

⦁     फेड्रिक नीत्शे,
⦁     विल्फ्रेडो पैरेटो।

8.

क्यूबाई मिसाइल संकट का समाधान कैसे हुआ?

Answer»

क्यूबाई मिसाइल संकट का समाधान सोवियत संघ द्वारा अपनी मिसाइलें क्यूबा से हटा लेने के बाद हुआ।

9.

द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका द्वारा जापान के किन नगरों पर परमाणु बम गिराए गए थे?

Answer»

⦁     हिरोशिमा,
⦁     नागासाकी।