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1.

उचित रूप से श्वास का योग पर क्या प्रभाव पड़ता है? 

Answer»

योग श्वसन तन्त्र का एक विशेष व्यायाम है, जो फेफड़ों को मजबूत बनाने और रक्तसंचार बढ़ाने में मदद करता है। फिजियोलॉजी के अनुसार, जो वायु हम श्वसन क्रिया के दौरान भीतर खींचते हैं, वह हमारे फेफड़ों में जाती है और फिर पूरे शरीर में फैल जाती है।

इस तरह शरीर को जरूरी ऑक्सीजन मिलती है। यदि श्वसन कार्य नियमित और सुचारु रूप से चलता रहे, तो फेफड़े स्वस्थ रहते हैं, लेकिन सामान्यतः लोग गहरी साँस नहीं लेते, जिसके चलते फेफड़े का एक चौथाई हिस्सा ही काम करता है और बाकि का तीन चौथाई हिस्सा स्थिर रहता है। मधुमक्खी के छत्ते के समान फेफड़े लगभग 75 मिलियन कोशिकाओं से बने होते हैं।

इनकी संरचना स्पंज के समान होती है। सामान्य श्वास जो हम सभी आमतौर पर लेते हैं, उससे फेफड़ों के मात्र 20 मिलियन छिद्रों तक ही ऑक्सीजन पहुँचती है, जबकि 55 मिलियन छिद्र इसके लाभ से वंचित रह जाते हैं। इस कारण से फेफड़ों से सम्बन्धी कई बीमारियाँ; जैसे-ट्यूबरक्युलोसिस, रेस्पिरेटरी डिजीज (श्वसन सम्बन्धी रोग) खाँसी और ब्रॉन्काइटिस आदि पैदा हो जाती हैं।

फेफड़ों के सही तरीके से काम न करने से रक्त शुद्धिकरण की प्रक्रिया प्रभावित होती है। इस कारण हृदय भी कमजोर हो जाता है और असमय मृत्यु की आशंका बढ़ जाती है, इसलिए लम्बे एवं स्वस्थ जीवन के लिए योग बहुत जरूरी है। नियमित योग से बहुत-सी बीमारियों से छुटकारा मिल सकता है।

व्यायाम मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है, जो मनुष्य के शरीर को स्वस्थ एवं सुदृढ़ बनाता है। व्यायाम से श्वसन क्रिया पर पड़ने वाले प्रभावों का विवरण निम्नलिखित हैं।

1. श्वास का गहरा होना व्यायाम से साँस तेजी से चलती हैं, जिसके कारण ऑक्सीजन अधिक मात्रा में तीव्रता से फेफड़े में पहुँचती है, जिससे उसी मात्रा में रक्त भी शुद्ध होता है। अतः यह मानव स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।

2. रक्त प्रवाह की गति को तीव्र होना तीव्र गति से रक्त प्रवाहित होने से शरीर के विभिन्न भागों में उचित मात्रा में ऊर्जा का संचरण होता है और कार्बन डाइऑक्साइड भी जल्दी बाहर निकल जाती है।

3. कोशिकाओं का अधिक क्रियाशील होना व्यायाम से शरीर की विभिन्न कोशिकाएँ अधिक क्रियाशील हो जाती हैं, जिसके फलस्वरूप शरीर से यूरिया, यूरिक एसिड, लवण आदि पसीने के साथ बाहर निकलने से शरीर चुस्त एवं स्वस्थ होता है।

4. अधिक भूख लगना व्यायाम से शरीर की ऊर्जा का ह्रास होता है, जिसके बाद मनुष्य को पर्याप्त भूख लगती है, तत्पश्चात् सन्तुलित भोजन ग्रहण करने के पश्चात् शरीर को आवश्यक पोषक तत्त्व एवं ऊर्जा पुनः प्राप्त होते हैं।

5. स्फूर्ति व्यायाम से अधिक मात्रा में शरीर में प्राण वायु (ऑक्सीजन) का प्रवेश होता है, जिससे मनुष्य का रक्त उचित अनुपात में शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचता है, जिससे मस्तिष्क तो सुचारु रूप से कार्य करता ही है तथा साथ ही मनुष्य भी स्फूर्ति महसूस करता है।
 

2.

श्वासोच्छ्वास किसे कहते हैं?

Answer»

वायुमण्डल ‘ से ऑक्सीजन ग्रहण करना और शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालने की क्रिया को श्वासोच्छ्वास कहते हैं।

3.

व्यायाम से श्वसन क्रिया होती है(a) गहरी(b) उथली(c) तीव्र(d) स्फूर्ति

Answer»

सही विकल्प है (a) गहरी

4.

श्वसन तन्त्र का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है(a) वायु(b) प्रश्वसन(c) स्नायुतन्त्र(d) फेफड़े

Answer»

सही विकल्प है (d) फेफड़े

5.

ग्रसनी में भोजन निगलने वाला द्वार कहलाता है(a) नासाद्वार(b) अवटु(c) कण्ठद्वार(d) ये सभी

Answer»

सही विकल्प है (c) कण्ठद्वार

6.

श्वसन क्रिया की उपक्रियाएँ या चरण की प्रक्रिया समझाइए।

Answer»

श्वसन क्रिया की दो उपक्रियाएँ निम्न प्रकार हैं।

1. अन्त:श्वास (Inspiration) इस प्रक्रिया में वायु अन्दर ली जाती है, जिससे डायाफ्राम की पेशियाँ संकुचित होती हैं एवं डायाफ्राम समतल (Flattened) हो जाता हैं। निचली पसलियाँ बाहर एवं ऊपर की ओर फैलती हैं तथा छाती फूल जाती है। फेफड़ों में वायु का दाब कम हो जाता है और वायु फेफड़ों में प्रवेश कर जाती है।।

2. नि:श्वसन/उच्छ्वास (Expiration) नि:श्वसन की क्रिया में वायु फेफड़ों से बाहर निकाली जाती है। इसमें डायाफ्राम एवं पसलियों की पेशियाँ शिथिल हो जाती हैं तथा डायाफ्राम फिर से गुम्बद आकार (Dome-Shaped) का हो जाता है। छाती संकुचित होती है तथा वायु बाहर की ओर नाक एवं वायुनाल द्वारा निकलती है। मनुष्य एक मिनट में 12-15 बार साँस लेता हैं, जबकि नवजात शिशु एक मिनट में लगभग 40 बार साँस लेता है। सोते समय श्वसन की दर सबसे कम होती है।
मनुष्य में वायु का मार्ग इस प्रकार होता हैं।

नासारन्ध्र + ग्रसनी ने कण्ठ + श्वासनाल —- श्वसनी
कोशिका — रुधिर – वायुकोष्ठक — श्वसनिकाएँ

7.

उचित श्वसन क्रिया के लिए आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगी?  

Answer»

श्वसन क्रिया, मानवीय स्वास्थ्य एवं शरीर के लिए लाभकारी होती है, जो मानवीय कार्यक्षमता के साथ-साथ कार्यक्षमता को भी व्यापक रूप से प्रभावित करती हैं। इस प्रकार से सामान्य श्वसन एक आवश्यक क्रिया होती है।
इसके लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता हैं।

1. हमेशा शुद्ध वायु का उपयोग श्वसन क्रिया में हो, इसके लिए शुद्ध वायु में श्वास लेनी चाहिए, जिसमें ऑक्सीजन की मात्रा अधिक तथा कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा कम होती है। ऐसा वातावरण अधिकांशतः गाँवों, पार्को एवं उद्यानों में मिलता है।

2. श्वास सदैव गहरी लेनी चाहिए, क्योंकि इससे फेफड़े एवं श्वसन अंगों की क्रियाशीलता बढ़ती है, जो स्वास्थ्य के लाभकारी होती है, इसलिए दिन में कई बार गहरी श्वास लेनी चाहिए।

3. श्वास सदैव नाक से ही लेनी चाहिए, क्योंकि श्वास लेने की यह एक उचित विधि है। नाक से श्वास लेने पर अशुद्धियाँ नाक के रोएँ एवं नाक की नम झिल्ली में फंसकर रह जाती हैं और शुद्ध वायु आन्तरिक भाग तक पहुँचती है।

4. धूल के कणों आदि में श्वास हल्की लेनी चाहिए, अन्यथा अशुद्ध वायु का प्रवेश अधिक मात्रा में श्वास के द्वारा शरीर में हो जाता है।

5. बैठने एवं चलने के समय शरीर की उचित स्थिति होनी चाहिए, क्योकि इससे श्वसन क्रिया प्रभावित होती है।

8.

श्वसन तन्त्र में श्वासोच्छ्वास का क्या प्रयोजन है?

Answer»

मनुष्य में फुफ्फुसीय वायु आयतन और क्षमता को निम्नलिखित रूपों में समझाया जा सकता है

1. अवरीय या प्रवाही आयतन (Tidal Volume or TV) सामान्य श्वसन के दौरान एक बार में ली गई या निकाली गई वायु का आयतन प्रवाहीआयतन कहलाता है। यह लगभग 500 मिली होता है।

2. उच्छ्व सन आरक्षित आयतन (Expiratory Reserve Volume or ERV) उच्छ्व सन के बाद फेफड़ों में कुछ वायु रह जाती है, उसमें से बलपूर्वक निकाली गई वायु के आयतन को उच्छ्व सन आरक्षित आयतन (ERV) कहते हैं। इसका आयतन लगभग 1000 मिली होता है।

3. नि:श्वसन आरक्षित आयतन (Inspiratory Reserve Volume or IRV) एक सामान्य नि:श्वसन के बाद बलपूर्वक फेफड़ों के द्वारा ली जाने वाली वायु के आयतन को नि:श्वसन आरक्षित आयतन (IRV) कहते हैं। इसका आयतन लगभग 2500-3000 मिली होता है।

4. अवशेषी आयतन (Residual Volume or RV) पूरे प्रयास से फेफड़ों से वायु निकालने के बाद फेफड़ों में शेष बची वायु का आयतन अवशेष आयतन (RV) कहलाता है। यह लगभग 1500 मिली होता है।

5. निःश्वसन क्षमता (Inspiratory Capacity or IC) प्रवाही आयतन के अतिरिक्त अभ्यास द्वारा फेफड़ों में अधिक-से-अधिक ली जा सकने वाली वायु की मात्रा को नि:श्वसन क्षमता कहते हैं।
IC = TV + IRV= 500 मिली + 3000 मिली = 3500 मिली

9.

नाक के छिद्र को कहा जाता है(a) नथुने(b) कुपिकाएँ(c) कण्ठद्वार(d) श्वसनी

Answer»

सही विकल्प है (a) नथुने

10.

मानव शरीर में श्वसन का अंग नहीं है(a) नासिका(b) कण्ठ(c) श्वासनली(d) पटेला

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सही विकल्प है (d) पटेला

11.

मानव के श्वसन तन्त्र में सहायक अंगों के नाम लिखिए।

Answer»

मानव श्वसन तन्त्र के निम्नलिखित अंग हैं- नासिका, कण्ठ, श्वासनली, श्वसनी तथा फेफड़े।

12.

श्वासनली कितने भागों में विभाजित होती है?

Answer»

श्वासनली वक्ष में जाकर दो भागों में विभाजित होती है – श्वसनी तथा ब्रॉन्कस।

13.

श्वसन क्रिया पूर्ण होती है।(a) एक चरण में(b) दो चरण में(c) चार चरण(d) ये सभी

Answer»

(b) दो चरण में
 

14.

नासाद्वार किसे कहते हैं?

Answer»

वायु के आवागमन के लिए नाक में जो छिद्र होता है, उसे नासाद्वार कहते हैं।

15.

स्वर यन्त्र से आप क्या समझते हैं?

Answer»

कण्ठ को ही स्वर यन्त्र कहते हैं। कण्ठ उपास्थि का बना हुआ एक ढक्कन होता है, जो कण्ठद्वार पर स्थित होता है।