InterviewSolution
This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
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संघटनों के सम्पूर्ण परास में बेन्जीन तथा टॉलूईन आदर्श विलयन बनाते हैं। 300 K पर शुद्ध बेन्जीन तथा टॉलूईन का वाष्प दाब क्रमशः 50.71 mm Hg तथा 32.06 mm Hg है। यदि 80 g बेन्जीन को 100 g टॉलूईन में मिलाया जाए तो वाष्प अवस्था में उपस्थित बेन्जीन के मोल-अंश परिकलित कीजिए। |
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Answer» द्रव अवस्था में nB = 80/78 = 1.026, nT = 100/92 = 1.087 XB = 0.486, XT = 0.514 PB = 50.71 x 0.486 = 24.65 PT = 32.06 x 0.514 = 16.48 बेंजीन का वाष्प अवस्था में मोल प्रभाज = 24.65 / 24.65 + 16.48 = 0.60 |
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| 2. |
किसी विलयन में विलेय तथा विलायक क्या होते हैं? |
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Answer» विलयन का वह अवयव जो द्रव्यमानानुसार अधिक मात्रा में उपस्थित होता है, विलायक कहलाता है जबकि दूसरा अवयव जो कम मात्रा में उपस्थित होता है, विलेय कहलाता है। |
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| 3. |
किसी पदार्थ का 1 मोल 500 मिली जल में घोला गया। विलयन की मोलरता की गणना कीजिए। |
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Answer» मोलरता = 1 x 1000 / 500 = 2 M |
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| 4. |
पहचानिए कि निम्नलिखित यौगिकों में से कौन-से जल में अत्यधिक विलेय, आंशिक रूप से विलेय तथा अविलेय हैं – 1. फीनॉल 2. टॉलूईन 3. फॉर्मिक अम्ल 4. एथिलीन ग्लाइकॉल 5. क्लोरोफॉर्म 6. पेन्टेनॉल। |
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Answer» 1. आंशिक विलेय, 2. अविलेय, 3. अत्यधिक विलेय, 4. अत्यधिक विलेय, 5. अविलेय, 6. आंशिक विलेय। |
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| 5. |
300 K पर 36 g प्रति लीटर सान्द्रता वाले ग्लूकोस के विलयन का परासरण दाब 4.98 bar है। यदि इसी ताप पर विलयन का परासरण दाब 1.52 bar हो तो उसकी सान्द्रता क्या होगी? |
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Answer» प्रश्नानुसार, परासरण दाब = 4.98 bar, w = 36 g, V = 1 L (I मामले में) परासरण दाब = 1.52 bar (II मामले में) I के लिए, πV = RT I के लिए, πV = W/M RT 4.98 × 1 = 36 /108 × R × T II के लिए, 1.52 = c x R x T(c = w / M x V) समीकरण (i) तथा (ii) को हल करने पर, c= 0.061 mol L-1 |
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| 6. |
किसी विलायक में कोई अवाष्पशील पदार्थ घोलने पर विलयन का वाष्पदाब कम हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप विलयन का क्वथनांक बढ़ जाता है। |
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Answer» किसी द्रव में उपस्थित अणु प्रत्येक दिशा में गतिशील रहते हैं। सतह के अणुओं की गतिज ऊर्जा अन्य अणुओं की अपेक्षा अधिक होती है; अतः ये अणु द्रव की सतह से वाष्प के रूप में पृथक् हो जाते हैं। अणुओं की यह प्रवृत्ति निर्गामी प्रवृत्ति कहलाती है। वाष्प के ये अणु सतह पर दाब डालते हैं, जिसको वाष्प दाब कहते हैं। किसी द्रव या विलायक में अवाष्पशील पदार्थ मिलाने पर द्रव के अणुओं की यह निर्गामी प्रवृत्ति घट जाती है; क्योंकि विलेय पदार्थ द्रव के अणुओं पर एक प्रकार का अवरोध उत्पन्न करता है; अत: द्रव का वाष्प दाब घट जाता है; इसलिए विलयन का वाष्प दाब विलायक के वाष्प दाब से सदा कम रहता है। |
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| 7. |
विलेय-विलायक आकर्षण के आधार पर निम्नलिखित को n-ऑक्टेन में विलेयता के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित कीजिए – KCl, CH3OH, CH3CN, साइक्लोहेक्सेन। |
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Answer» KCl < CH3OH < CH3CN < साइक्लोहेक्सेन KCl आयनिक यौगिक,है। अत: यह अध्रुवीय विलायक में नहीं घुलता, अत: यह 2-ऑक्टेन में सबसे कम विलेय है। साइक्लोहेक्सेन अध्रुवीय होने के कारण n-ऑक्टेन में आसानी से विलेय होती है। CH3CN, CH3OH की तुलना में कम ध्रुवीय है, अत: इसकी विलेयता CH3OH से अधिक होती है। |
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| 8. |
ऐसीटिक अम्ल, ट्राइक्लोरोऐसीटिक अम्ल एवं ट्राइफ्लुओरो ऐसीटिक अम्ल की समान मात्रा से जल के हिमांक में अवनमन इनके उपर्युक्त दिए गए क्रम में बढ़ता है। संक्षेप में समझाइए। |
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Answer» हिमांक में अवनमन निम्न क्रम में होता है – ऐसीटिक अम्ल < ट्राइक्लोरोऐसीटिक अम्ल < ट्राइफ्लुओरोऐसीटिक अम्ल फ्लोरीन अधिक ऋणविद्युती होने के कारण उच्चतम इलेक्ट्रॉन निष्कासन प्रेरणिक प्रभाव रखती है। अतः ट्राइफ्लुओरोऐसीटिक अम्ल प्रबल अम्ल है जबकि ऐसीटिक अम्ल दुर्बलतम अम्ल है।। अतः ट्राइफ्लुओरोऐसीटिक अम्ल अत्यधिक आयनित होकर अधिक आयन उत्पन्न करता है जबकि ऐसीटिक अम्ल सबसे कम आयन उत्पन्न करता है। अधिक आर्यन उत्पन्न करने के कारण ट्राइफ्लुओरोऐसीटिक अम्ल हिमांक में अधिक अवनमन करता है एवं ऐसीटिक अम्ल सबसे कम। |
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