InterviewSolution
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भारत में स्थानीय स्व-शासन की प्रकृति की व्याख्या कीजिए। यापंचायती राज व्यवस्था के महत्त्व का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। |
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Answer» स्व-शासन की माँग की. तो ब्रिटिश सरकार ने ग्रामीण क्षेत्र में पंचायत और नगर क्षेत्र में नगरपालिका स्तर पर स्व-शासन की शक्तियाँ देना प्रारम्भ किया। कालान्तर में भारत शासन अधिनियम में प्रान्तीय विधानमण्डलों को स्थानीय स्व-शासन’ की बाबत विधान अधिनियमित करने की शक्ति प्रदान की गयी। परन्तु स्वतन्त्र भारत के संविधान-निर्माता इन विद्यमान अधिनियमों से सन्तुष्ट न थे। इसलिए 1949 के संविधान में अनुच्छेद 40 के रूप में एक निर्देश समाविष्ट किया गया। इसके अनुसार, “राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करने के लिए कदम उठायेगा और उनको ऐसी शक्तियाँ और प्राधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य बनाने के लिए आवश्यक हो।’ संविधान 73वाँ संशोधन और. 74वाँ संशोधन अधिनियम, 1992 ने इस दिशा में एक गति प्रदान की। अब नयी प्रणाली के अन्तर्गत कुछ नयी बातों का समावेश किया गया; जैसे – जनता द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन, महिलाओं के लिए आरक्षण, निर्वाचनों के संचालन के लिए निर्वाचन आयोग तथा वित्त आयोग जिससे ये संस्थाएँ वित्त की दृष्टि से आत्म निर्भर रह सकें। वर्तमान स्थानीय स्व-शासन के ढाँचे के स्वरूप एवं प्रवृत्ति को निम्नलिखित रूप में लिपिबद्ध किया जा सकता है – ⦁ ग्राम स्तर, ग्राम पंचायत, जिला स्तर पर जिला पंचायत। अन्तर्वर्ती पंचायत जो ग्राम और जिला पंचायतों के बीच होगी। |
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पंचायत के अधिकारों का उल्लेख संविधान की किस अनुसूची में किया गया है? |
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Answer» पंचायत के अधिकारों का उल्लेख संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची में किया गया है। |
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पंचायती राज की तीन स्तरीय व्यवस्था क्या है ? |
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Answer» पंचायती राज की तीन स्तरीय व्यवस्था के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों के लिए तीन इकाइयों का प्रावधान किया गया है – ⦁ ग्राम पंचायत |
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संविधान की ग्यारहवीं सूची के अनुसार पंचायतों के क्षेत्राधिकार में कुछ कितने विषयों को रखा गया है(क) 27(ख) 28(ग) 29(घ) 30 |
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Answer» सही विकल्प है (ग) 29 |
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नगरपालिका परिषद् का ऐच्छिक कार्य है –(क) नगरों में रोशनी का प्रबन्ध करना(ख) नगरों में पेयजल की व्यवस्था करना कर(ग) नगरों में स्वच्छता का प्रबन्ध करना(घ) प्रारम्भिक शिक्षा से ऊपर शिक्षा की व्यवस्था करना |
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Answer» (घ) प्रारम्भिक शिक्षा से ऊपर शिक्षा की व्यवस्था करना |
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नगर-निगम की अध्यक्ष कौन होता है ? |
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Answer» नगर-निगम का अध्यक्ष नगर प्रमुख होता है। |
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पंचायती राज के गुण-दोषों का उल्लेख कीजिए।यापंचायती राज की उपलब्धियों तथा दोषों का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» पंचायती राज की उपलब्धियाँ (गुण) – ⦁ पंचायती राज पद्धति के फलस्वरूप ग्रामीण भारत में जागृति आयी है। ⦁ पंचायतों के लिए होने वाले चुनावों में हिंसा, भ्रष्टाचार और जातिवाद का बोलबाला रहता है। यहाँ तक कि निर्वाचित प्रतिनिधि भी इससे परे नहीं होते। |
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नगरपालिका (परिषद्) की रचना तथा उसके कार्यों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।याअपने प्रदेश में (क्षेत्र) नगरपालिका परिषद का गठन किस प्रकार होता है ? नगर के विकास के लिए वे कौन-कौन-से कार्य करती हैं? |
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Answer» उत्तर प्रदेश नगरीय स्वायत्त शासन विधि (संशोधन) अधिनियम, 1994 ई०’ के अनुसार 1 लाख से 5 लाख तक की जनसंख्या वाले नगर को ‘लघुत्तर नगरीय क्षेत्र का नाम दिया गया है। तथा इनके प्रबन्ध के लिए नगरपालिका परिषद् की व्यवस्था का निर्णय लिया गया है। गठन – नगरपालिका परिषद् में एक अध्यक्ष और तीन प्रकार के सदस्य होंगे। ये तीन प्रकार के सदस्य निम्नलिखित हैं – सभासदों का निर्वाचन व निर्वाचन हेतु अर्हताएँ – प्रत्येक ‘लघुत्तर नगरीय क्षेत्र को लगभग समान जनसंख्या वाले ‘प्रादेशिक क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है तथा ऐसे प्रत्येक प्रादेशिक क्षेत्र को ‘कक्ष’ कहा जाता है। प्रत्येक कक्ष ‘एक सदस्य निर्वाचन क्षेत्र’ होता तथा ऐसे प्रत्येक कक्ष के वयस्क मताधिकार और प्रत्यक्ष निर्वाचन के आधार पर एक सभासद निर्वाचित होता है। पदाधिकारी – प्रत्येक नगरपालिका परिषद् में एक अध्यक्ष और एक ‘उपाध्यक्ष’ होगा। अध्यक्ष की अनुपस्थिति में या पद रिक्त होने पर उपाध्यक्ष के द्वारा अध्यक्ष के रूप में कार्य किया जाता है। अध्यक्ष का निर्वाचन 5 वर्ष के लिए समस्त मतदाताओं द्वारा वयस्क मताधिकार तथा प्रत्यक्ष निर्वाचन के आधार पर होता है। उपाध्यक्ष का निर्वाचन नगरपालिका परिषद् के सभासदों द्वारा एक वर्ष की अवधि के लिए किया जाता है। परिषद की समितियाँ – नगरपालिका परिषद अपने कार्यों के सम्पादन के लिए विभिन्न समितियाँ बना लेती है और प्रत्येक समिति को एक विशिष्ट विभाग का कार्य सौंप दिया जाता है। इसकी प्रमुख समितियाँ हैं – |
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नगर-निगम की रचना और उसके कार्यों पर प्रकाश डालिए। |
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Answer» उत्तर प्रदेश नगरीय स्वायत्त शासन-विधि (संशोधन), 1994 के अन्तर्गत 5 लाख से अधिक जनसंख्या वाले प्रत्येक नगर को वृहत्तर नगरीय क्षेत्र घोषित कर दिया गया है तथा ऐसे प्रत्येक नगर में स्वायत्त शासन के अन्तर्गत नगर निगम की स्थापना का प्रावधान किया गया है। उत्तर प्रदेश में लखनऊ, कानपुर, आगरा, वाराणसी, मेरठ, इलाहाबाद, गोरखपुर, मुरादाबाद, अलीगढ़, गाजियाबाद, सहारनपुर, मथुरा, झाँसी व बरेली नगरों में नगर-निगम स्थापित कर दिये गये हैं। उत्तर प्रदेश के दो नगरों-कानपुर और लखनऊ-की जनसंख्या 10 लाख से अधिक है, अत: इन्हें महानगर तथा इनका प्रबन्ध करने वाली संस्था को ‘महानगर निगम’ की संज्ञा दी गयी है। वर्तमान में कुछ और नगर–आगरा, वाराणसी, मेरठ-भी ‘महानगर निगम’ बनाये जाने के लिए प्रस्तावित हैं। गठन – नगर-निगम के गठन हेतु नगर प्रमुख, उप-नगर प्रमुख व तीन प्रकार के सदस्य क्रमश: निर्वाचित सदस्य, मनोनीत सदस्य व पदेन सदस्यों को प्रावधान किया गया है। ये तीन प्रकार के सदस्य इस प्रकार हैं – (I) निर्वाचित अधिकारी निर्वाचित अधिकारी मुख्य रूप से निम्नवत् होते हैं – (II) स्थायी अधिकारी – ये अधिकारी निम्नवत् हैं – अनिवार्य कार्य – इन कार्यों के अन्तर्गत नगर में सफाई की व्यवस्था करना, सड़कों एवं गलियों में प्रकाश की व्यवस्था करना, अस्पतालों एवं औषधालयों का प्रबन्ध करना, इमारतों की देखभाल करना, पेयजल का प्रबन्ध करना, संक्रामक रोगों की रोकथाम की व्यवस्था करना, जन्ममृत्यु का लेखा रखना, प्राथमिक एवं नर्सरी शिक्षा का प्रबन्ध करना, नगर नियोजन एवं नगर सुधार कार्यों की व्यवस्था करना आदि विभिन्न कार्य सम्मिलित किये गये हैं। ऐच्छिक कार्य – इन कार्यों के अन्तर्गत निगम को पुस्तकालय, वाचनालय, अजायबघर आदि की व्यवस्था के साथ-साथ समय-समय पर लगने वाले मेलों और नुमाइशों की व्यवस्था भी करनी होती है। इन ऐच्छिक कार्यों में ट्रक, बस आदि चलाना एवं कुटीर उद्योगों का विकास करना आदि भी सम्मिलित हैं। इस प्रकार नगर-निगम लगभग उन्हीं समस्त कार्यों को बड़े पैमाने पर सम्पादित करता है, जो छोटे नगरों में नगरपालिका करती है। |
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उत्तर प्रदेश में स्थानीय स्वशासन के लिए क्या व्यवस्था की गयी है? संक्षेप में प्रकाश डालिए। |
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Answer» भारतीय संविधान के 74वें संवैधानिक संशोधन के आधार पर उत्तर प्रदेश के राज्य विधानमण्डल ने उत्तर प्रदेश नगरीय स्वायत्त शासन अधिनियम, 1994′ पारित किया था तथा इसी के आधार पर प्रदेश में नगरीय स्वायत्त शासन की व्यवस्था की गयी। 1994 ई० के इस अधिनियम से पूर्व उत्तर प्रदेश राज्य के नगरीय क्षेत्रों हेतु स्थानीय स्वायत्त शासन की पाँच संस्थाएँ थीं, परन्तु इस अधिनियम द्वारा अब केवल निम्नलिखित तीन संस्थाएँ ही शेष रह गयी हैं – ⦁ वृहत्तर नगरीय क्षेत्र के लिए नगर निगम’। |
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भारत में सनीय संस्थाओं का क्या महत्त्व है ? |
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Answer» भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में स्थानीय स्वशासी संस्थाओं का देश की राजनीति और प्रशासन में विशेष महत्व है। किसी भी गाँव या कस्बे की समस्याओं का सबसे अच्छा ज्ञान उस गाँव या कस्बे के निवासियों को ही होता है। इसलिए वे अपनी छोटी सरकार का संचालन करने में समर्थ तथा सर्वोच्च होते हैं। इन संस्थाओं का महत्त्व निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट होता है – ⦁ इनके द्वारा गाँव तथा नगर के निवासियों की प्रशासन में भागीदारी सम्भव होती है। |
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नगर पंचायत के संगठन और उसके कार्यों का वर्णन कीजिए। |
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Answer» उत्तर प्रदेश नगरीय स्वायत्त शासन विधि (संशोधन), 1994 के अनुसार 30 हजार से 1 लाख की जनसंख्या वाले क्षेत्र को ‘संक्रमणशील क्षेत्र घोषित किया गया है, अर्थात् जिन स्थानों पर टाउन एरिया कमेटी’ थी, उन स्थानों को अब ‘टाउन एरिया’ नाम के स्थान पर नगर पंचायत नाम दिया गया है। ये स्थान ऐसे हैं जो ग्राम के स्थान पर नगर बनने की ओर अग्रसर हैं। संरचना – प्रत्येक नगर पंचायत में एक अध्यक्ष व तीन प्रकार के सदस्य होंगे। सदस्य क्रमशः इस प्रकार होंगे |
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नगर-निगम किन नगरों में स्थापित की जाती है ? उत्तर प्रदेश में नगर-निगम का गठन किन-किन स्थानों पर किया गया है ? |
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Answer» पाँच लाख से दस लाख तक की जनसंख्या वाले नगरों में नगर-निगम स्थापित की जाती हैं। उत्तर प्रदेश के आगरा, वाराणसी, इलाहाबाद, बरेली, मेरठ, अलीगढ़, मुरादाबाद, गाजियाबाद, सहारनपुर, झाँसी, मथुरा, लखनऊ, कानपुर तथा गोरखपुर में नगर-निगम कार्यरत हैं। कानपुर तथा लखनऊ में महानगर निगम स्थापित हैं। |
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इस राज्य की आय के चार साधनों का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» उत्तर प्रदेश की आय के चार साधन निम्नलिखित हैं – ⦁ स्थानीय स्वशासन संस्थाओं द्वारा लगाई गई विभिन्न चुंगी व कर। |
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नगर पंचायत के प्रमुख कार्य बताइए। |
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Answer» नगर पंचायत अपने क्षेत्र में वे सभी कार्य करती है जो कार्य नगरपालिका परिषद् द्वारा अपने क्षेत्र में किए जाते हैं। नगर पंचायत के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं – ⦁ सार्वजनिक सड़कों, स्थानों व नालियों की सफाई तथा रोशनी का प्रबन्ध। |
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स्थानीय प्रशासन से आप क्या समझते हैं ? स्थानीय स्वशासन की आवश्यकता तथा महत्त्व बताइए। |
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Answer» भारत में केन्द्र व राज्य सरकारों के अतिरिक्त, तीसरे स्तर पर एक ऐसी सरकार है। जिसके सम्पर्क में नगरों और ग्रामों के निवासी आते हैं। इस स्तर की सरकार को स्थानीय स्वशासन कहा जाता है, क्योंकि यह व्यवस्था स्थानीय निवासियों को अपना शासन-प्रबन्ध करने का अवसर प्रदान करती है। इसके अन्तर्गत मुख्यतया ग्रामवासियों के लिए पंचायत और नगरवासियों के लिए नगरपालिका उल्लेखनीय हैं। इन संस्थाओं द्वारा स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति तथा स्थानीय समस्याओं के समाधान के प्रयास किये जाते हैं। व्यावहारिक रूप में वे सभी कार्य जिनका सम्पादन वर्तमान समय में ग्राम पंचायतों, जिला पंचायतों, नगर पालिकाओं, नगर निगम आदि के द्वारा किया जाता है, वे स्थानीय स्वशासन के अन्तर्गत आते हैं। स्थानीय स्वशासन की आवश्यकता एवं महत्त्व 1, लोकतान्त्रिक परम्पराओं को स्थापित करने में सहायक – भारत में स्वस्थ लोकतान्त्रिक परम्पराओं को स्थापित करने के लिए स्थानीय स्वशासन व्यवस्था ठोस आधार प्रदान करती है। उसके माध्यम से शासन-सत्ता वास्तविक रूप से जनता के हाथ में चली जाती है। इसके अतिरिक्त स्थानीय स्वशासन-व्यवस्था, स्थानीय निवासियों में लोकतान्त्रिक संगठनों के प्रति रुचि उत्पन्न करती है। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि स्थानीय स्वशासन लोकतन्त्र का आधार है। यह लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण (Democratic Decentralisation) की प्रक्रिया पर आधारित है। यदि प्रशासन को जागरूक तथा अधिक कार्यकुशल बनाना है तो उसका प्रबन्ध एवं संचालन स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप स्थानीय संस्थाओं के द्वारा ही सम्पन्न किया जाना चाहिए। |
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न्याय पंचायत के पंचों की नियुक्ति किस प्रकार होती है ? |
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Answer» ग्राम पंचायत के सदस्यों में से विहित प्राधिकारी न्याय पंचायत के उतने ही पंच नियुक्त करता है जितने कि नियत किये जाएँ। ऐसे नियुक्त किये गये व्यक्ति ग्राम पंचायत के सदस्य नहीं रहेंगे। |
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ग्रामीण भारत के विकास में ग्राम पंचायतों की भूमिका बताइए। याग्राम पंचायतों के गठन एवं कार्यों का वर्णन कीजिए। यापंचायती राज-व्यवस्था से आप क्या समझते हैं ? ग्राम पंचायत के कार्यों तथा शक्तियों का वर्णन कीजिए।याभारत में पंचायती राज-व्यवस्था की कार्यप्रणाली का परीक्षण कीजिए। |
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Answer» भारत गाँवों का देश है। ब्रिटिश राज में गाँवों की आर्थिक तथा राजनीतिक व्यवस्था शोचनीय हो गयी थी; अत: स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद देश में पंचायती राज व्यवस्था द्वारा गाँवों में राजनीतिक तथा आर्थिक सत्ता के विकेन्द्रीकरण का प्रयास किया गया। बलवन्त राय मेहता समिति ने पंचायती राज व्यवस्था के लिए त्रि-स्तरीय योजना का परामर्श दिया। इस योजना में सबसे निचले। स्तर पर ग्राम सभा और ग्राम पंचायतें हैं। स्तर पर क्षेत्र समितियाँ तथा उच्च स्तर पर जिला परिषदों की व्यवस्था की गयी थी। ग्राम पंचायत के कार्य तथा शक्तियाँ ग्राम पंचायत के कार्यों तथा शक्तियों की विवेचना निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत की जा सकती है- आय के स्रोत – ग्राम पंचायतों की आय के मुख्य स्रोत हैं-सरकार से मिलने वाले अनुदान, भवनों व गाड़ियाँ आदि पर कर, पशुओं व वस्तुओं पर चुंगी, यात्री कर, वाणिज्यिक फसलों पर कर, सरकार द्वारा अनुमोदित कोई भी राज्य कर, कर्ज, उपहार आदि। पंचायतों को भूमि, तालाब और बाजार से भी कुछ आये हो जाती है। कुछ विशेष प्रकार के कर लगाने के लिए पंचायतों को राज्य सरकार की अनुमति लेनी पड़ती है। | महत्त्व – आज के प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था के युग में ग्राम पंचायतों का बहुत महत्त्व है। ये संस्थाएँ जनता को जनतन्त्र की शिक्षा प्रदान करती हैं। नागरिक गुणों के विकास के लिए ग्राम पंचायतें प्रारम्भिक पाठशालाओं का काम करती हैं और जनता में अपने अधिकारों तथा स्वतन्त्रता की भावना को जाग्रत करने में सहायक होती हैं। ये जनता में सहज बुद्धि, न्यायशीलता, निर्णय-शक्ति और सामाजिकता का भी विकास करती हैं। ग्राम पंचायत स्थानीय स्तर की समस्याओं का समाधान समुचित रूप से कर लेती है। शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई तथा मार्गों का निर्माण कराकर ये संस्थाएँ जनहित के कार्यों में संलग्न रहती हैं। गाँवों के आर्थिक विकास में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। वस्तुतः ग्राम पंचायतें ग्राम सभाओं की कार्यकारिणी के रूप में कार्य करती हैं। |
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किन संविधान संशोधनों द्वारा पंचायतों और नगरपालिकाओं से सम्बन्धित उपबन्धों का संविधान में उल्लेख किया गया ? |
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Answer» ⦁ उत्तर प्रदेश पंचायत विधि (संशोधन) अधिनियम, 1994 द्वारा जिला पंचायत की व्यवस्था। |
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क्षेत्र पंचायत किस प्रकार गठित की जाती है? यह अपने क्षेत्र के विकास के लिए कौन-कौन से कार्य करती है?याक्षेत्र पंचायत (पंचायत समिति के संगठन, कार्यों तथा शक्तियों पर प्रकाश डालिए |
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Answer» उत्तर प्रदेश पंचायत (संशोधन) अधिनियम, 1994′ के सेक्शन 7(1) के द्वारा क्षेत्र समिति का नाम बदलकर क्षेत्र पंचायत कर दिया गया है। यह ग्राम पंचायत के ऊपर के स्तर की इकाई होती है। राज्य सरकार गजट में अधिसूचना द्वारा प्रत्येक खण्ड के लिए एक क्षेत्र पंचायत स्थापित करेगी। पंचायत का नाम खण्ड के नाम पर होगा। पदाधिकारी – क्षेत्र पंचायत में निर्वाचित सदस्यों द्वारा अपने में से ही एक प्रमुख, एक ज्येष्ठ उप-प्रमुख तथा एक कनिष्ठ उप-प्रमुख चुने जाते हैं। राज्य में क्षेत्र पंचायतों के प्रमुखों के पद अनुसूचित जातियों, जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गों तथा महिलाओं के लिए आरक्षित किये गये हैं। |
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जिला पंचायत के चार अनिवार्य कार्य बताइए। |
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Answer» जिला पंचायत के चार अनिवार्य कार्य हैं – ⦁ पीने के पानी की व्यवस्था करना |
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जिला पंचायत का गठन किस प्रकार होता है? इसके प्रमुख कार्य तथा आय के साधन लिखिए। |
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Answer» त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की सर्वोच्च इकाई जिला पंचायत होती है। उत्तर प्रदेश सरकार ने पंचायत विधि (संशोधन) अधिनियम, 1994 पारित करके जिला परिषद् का नाम बदलकर जिला पंचायत कर दिया है। जिला पंचायत का नाम जिले के नाम पर होता है तथा प्रत्येक जिला पंचायत एक नियमित निकाय होती है। यह जिले के सम्पूर्ण ग्रामीण क्षेत्र का प्रबन्ध करती है। गठन – जिला पंचायत के गठन में निम्नलिखित दो प्रकार के सदस्य होते हैं – कार्य – जिले के समस्त ग्रामीण क्षेत्र की व्यवस्था तथा विकास का उत्तरदायित्व जिला पंचायत पर है। इस दायित्व को पूरा करने के लिए जिला परिषद् निम्नलिखित कार्य करती है – आय के साधन – जिला पंचायत अपने कार्यों को पूर्ण करने के लिए इन साधनों से आय प्राप्त करती है – |
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नगरपालिका के अध्यक्ष का चुनाव होता है –(क) एक वर्ष के लिए(ख) पाँच वर्ष के लिए(ग) चार वर्ष के लिए।(घ) तीन वर्ष के लिए |
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Answer» सही विकल्प है (ख) पाँच वर्ष के लिए |
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जिला परिषद् की आय का साधन है –(क) भूमि पर लगान(ख) चुंगी कर(ग) हैसियत एवं सम्पत्ति कर(घ) आयकर |
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Answer» सही विकल्प है (ग) हैसियत एवं सम्पत्ति कर |
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भारतीय संविधान के किस संशोधन ने पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया (क) 71वें संशोधन द्वारा(ख) 72वें संशोधन द्वारा(ग) 73वें संशोधन द्वारा(घ) 74वें संशोधन द्वारा |
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Answer» सही विकल्प है (ग) 73वें संशोधन द्वारा |
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पंचायती राज-व्यवस्था में कितने स्तर होते हैं? |
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Answer» पंचायती राज व्यवस्था में तीन स्तर होते हैं। |
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जिले में शिक्षा विभाग का सर्वोच्च अधिकारी कौन होता है ? |
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Answer» जिले में शिक्षा विभाग का सर्वोच्च अधिकारी जिला विद्यालय निरीक्षक होता है। |
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जिले के विकास-कार्यों से सम्बन्धित जिला स्तरीय अधिकारी का पद नाम लिखिए। |
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Answer» मुख्य विकास अधिकारी। |
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जिले के शिक्षा विभाग का प्रमुख अधिकारी है –(क) जिला विद्यालय निरीक्षक(ख) बेसिक शिक्षा अधिकारी(ग) राजकीय विद्यालय का प्रधानाचार्य(घ) माध्यमिक शिक्षा परिषद् का क्षेत्रीय अध्यक्ष |
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Answer» (क) जिला विद्यालय निरीक्षक। |
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