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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

1.

व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले चार मुख्य जैवकीय कारकों का उल्लेख कीजिए।

Answer»

व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले चार मुख्य जैवकीय कारक हैं-

⦁    शरीर रचना

⦁    स्नायु संस्थान

⦁    ग्रन्थि रचना तथा

⦁    संवेग एवं आन्तरिक स्वभाव।।

2.

टिप्पणी लिखिए-आस्था-उपचार।

Answer»

अति प्राचीनकाल से मानसिक रोगों तथा व्यक्ति की असामान्यता के निवारण के लिए आस्था-उपचार विधि को अपनाया जाता रहा है। आस्था-उपचार प्रणाली अपने आप में कोई वैज्ञानिक उपचार पद्धति नहीं है। इसका आधार आस्था तथा विश्वास ही है। इस प्रणाली के अन्तर्गत सम्बन्धित व्यक्ति द्वारा किसी महान् व्यक्ति या ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा एवं विश्वास निर्मित किया जाता है तथा माना जाता है कि उसी की कृपा से व्यक्ति की असामान्यता या रोग निवारण हो जाता है। आस्था-उपचार पद्धति में समर्पण का भाव निहित होता है।

3.

सामाजिकता पर आधारित व्यक्तित्व का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।टिप्पणी लिखिए-बहिर्मुखी व्यक्तित्व।याटिप्पणी लिखिए-अन्तर्मुखी व्यक्तित्व।याअन्र्तमुखी व्यक्तित्व की विशेषताएँ बताइए। अन्तर्मुखी एवं बहिर्मुखी व्यक्तित्व में अन्तर स्पष्ट करें। 

Answer»

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जंग (Jung) ने व्यक्तित्व के वर्गीकरण के लिए सामाजिकता को आधार स्वरूप स्वीकार किया तथा इस आधार पर मानवीय व्यक्तित्व के दो मुख्य वर्ग निर्धारित किये, जिन्हें क्रमश: बहिर्मुखी व्यक्तित्व तथा अन्तर्मुखी व्यक्तित्व कहा गया। व्यक्तित्व के इन दोनों वर्गों या प्रकारों का सामान्य परिचय निम्नलिखित है–

(A) बहिर्मुखी (Extrovert)- बहिर्मुखी व्यक्तियों की रुचि बाह्य जगत् में होती है। इनमें सामाजिकता की प्रबल भावना होती है और ये सामाजिक कार्यों में लगे रहते हैं। इनकी अन्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

⦁    बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाले लोगों का ध्यान सदा बाह्य समाज की ओर लगा रहता है। यही कारण है कि इनका आन्तरिक जीवन कष्टमय होता है।

⦁    ऐसे व्यक्तियों में कार्य करने की दृढ़ इच्छा होती है और ये वीरता के कार्यों में अधिक रुचि रखते हैं।

⦁    इनमें समाज के लोगों से शीघ्र मेल-जोल बढ़ा लेने की प्रवृत्ति होती है। समाज की दशा पर विचार करना इन्हें भाता है तथा ये उसमें सुधार लाने के लिए भी प्रवृत्त होते हैं।

⦁    अपनी अस्वस्थता एवं पीड़ा की ये बहुत कम परवाह करते। हैं।

⦁    ये चिन्तामुक्त होते हैं।

⦁    ये आक्रामक, अहंवादी तथा अनियन्त्रित प्रकृति के होते हैं।

⦁    ये प्रॉय: प्राचीन विचारधारा के पोषक होते हैं।

⦁    ये धारा प्रवाह बोलने वाले तथा मित्रवत् व्यवहार करने वाले होते हैं।

⦁    ये शान्त एवं आशावादी होते हैं।

⦁    परिस्थिति और आवश्यकताओं के अनुसार ये स्वयं को व्यवस्थित कर लेते हैं।

⦁    ऐसे व्यक्ति शासन करने तथा नेतृत्व करने की इच्छा रखते हैं। ये जल्दी से घबराते भी नहीं हैं।

⦁    बहिर्मुखी व्यक्तित्व के लोगों में अधिकतर समाज-सुधारक, राजनीतिक नेता, शासक व प्रबन्धक, खिलाड़ी, व्यापारी और अभिनेता सम्मिलित होते हैं।

⦁    ये ऐसे भावप्रधान व्यक्ति होते हैं जो जल्दी ही भावनाओं के वशीभूत हो जाते हैं। इनमें स्त्रियाँ मुख्य स्थान रखती हैं और ऐसे पुरुष भी जो दूसरों का दु:ख-दर्द देखकर जल्दी ही पिघल जाते हैं।

(B) अन्तर्मुखी (Introvert)- अन्तर्मुखी व्यक्तियों की रुचि स्वयं में होती है। इनकी सामाजिक कार्यों में रुचि न के बराबर होती है। स्वयं अपने तक ही सीमित रहने वाले ऐसे लोग संकोची तथा एकान्तप्रिय होते हैं। इनकी अन्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
⦁    अन्तर्मुखी व्यक्तित्व के लोग कम बोलने वाले, लज्जाशील तथा पुस्तक-पत्रिकाओं को पढ़ने में गहरी रुचि रखते हैं।

⦁    ये चिन्तनशील तथा चिन्ताओं से ग्रस्त रहते हैं।

⦁    सन्देही प्रवृत्ति के कारण ये अपने कार्य में अत्यन्त सावधान रहते हैं।

⦁    ये अधिक लोकप्रिय नहीं होते।

⦁    इनका व्यवहार आज्ञाकारी होता है लेकिन ये जल्दी ही घबरा जाते हैं।

⦁    ये आत्मकेन्द्रित और एकान्तप्रिय होते हैं।

⦁    इनमें लचीलापन नहीं पाया जाता और क्रोध करने वाले होते हैं।

⦁    ये चुपचाप रहते हैं।

⦁    ये अच्छे लेखक तो होते हैं किन्तु अच्छे वक्ता नहीं होते।

⦁    समाज से दूर रहकर धार्मिक, सामाजिक तथा राजनीतिक आदि समस्याओं के विषय में ये चिन्तनरत तो रहते हैं लेकिन समाज में सामने आकर व्यावहारिक कार्य नहीं कर पाते।

बहिर्मुखी तथा अन्तर्मुखी व्यक्तित्व के व्यक्तियों की विभिन्न विशेषताओं का अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि ऐसे व्यक्ति समाज में शायद ही कुछ हों जिन्हें विशुद्धतः बहिर्मुखी या अन्तर्मुखी का नाम दिया जा सके। अधिकांश व्यक्तियों का व्यक्तित्व ‘मिश्रित प्रकार का होता है जिसमें बहिर्मुखी तथा अन्तर्मुखी दोनों व्यक्तित्वों की विशेषताएँ निहित होती हैं। ऐसे व्यक्तित्व को उभयमुखी व्यक्तित्व अथवा विकासोन्मुख व्यक्तित्व (Ambivert Personality) की संज्ञा प्रदान की जाती है।

4.

अन्तर्मुखी और बहिर्मुखी व्यक्तित्व के बीच कोई दो अन्तर स्पष्ट कीजिए।

Answer»

अन्तर्मुखी व्यक्तित्व वाले व्यक्तियों की रुचि स्वयं में होती है तथा सामाजिक कार्यों में इनकी रुचि न के बराबर होती है। इससे भिन्न बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाले व्यक्तियों की रुचि बाह्य जगत् में होती है। इनमें सामाजिकता की प्रबल भावना होती है और ये सामाजिक कार्यों में लगे रहते हैं। अन्तर्मुखी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति प्राय: शर्मीले होते हैं तथा अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं करना पसन्द करते हैं। इससे भिन्न बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति अन्य व्यक्तियों से मिलने में शर्म अनुभव नहीं करते तथा अपनी समस्याओं का समाधान अन्य व्यक्तियों से बातचीत करके ही करते हैं।

5.

अन्तर्मुखी-बहिर्मुखी-(क) सामाजिक परिस्थितियाँ हैं ।(ख) तनाव-दबाव के सूचक हैं।(ग) व्यक्तित्व के शीलगुण हैं ।(घ) व्यक्तित्व के दोष हैं ।

Answer»

(ग) व्यक्तित्व के शीलगुण हैं ।

6.

विद्यालय में बालक के व्यक्तित्व पर मुख्य रूप से किस-किसका प्रभाव पड़ता है?

Answer»

विद्यालय में बालक के व्यक्तित्व पर पड़ने वाले मुख्य प्रभाव हैं

⦁    अध्यापक का प्रभाव

⦁    सहपाठियों का प्रभाव तथा

⦁    समूह का प्रभाव।

7.

शारीरिक संरचना के आधार पर क्रैशमर ने व्यक्तित्व के किन-किन प्रकारों का उल्लेख किया है?

Answer»

शारीरिक संरचना के आधार पर क्रैशमर ने व्यक्तित्व के मुख्य रूप से दो प्रकारों अर्थात् साइक्लॉयड तथा शाइजॉएड का उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त उसने व्यक्तित्व के चार अन्य प्रकारों का भी उल्लेख किया है—

⦁    सुडौलकाय

⦁    निर्बल

⦁    गोलकाय तथा

⦁    स्थिर-बुद्धि।

8.

टिप्पणी लिखिए-मनोविश्लेषण विधि।

Answer»

व्यक्तित्व की असामान्यता एवं विघटन के निवारण के लिए अपनायी जाने वाली एक विधि को मनोविश्लेषण विधि के नाम से जाना जाता है। इस विधि को प्रारम्भ करने का श्रेय मुख्य रूप से फ्रॉयड नामक मनोवैज्ञानिक को है। इस विधि के अन्तर्गत सर्वप्रथम सम्बन्धित व्यक्ति की व्यक्तित्व सम्बन्धी असामान्यता के मूल कारण को ज्ञात किया जाता है। इसके लिए मुक्त-साहचर्य तथा स्वप्न-विश्लेषण विधियों को अपनाया जाता है। सामान्य रूप से व्यक्ति के अधिकांश असामान्य व्यवहारों का मुख्य कारण किसी इच्छा का अनावश्यक दमन हुआ करता है। असामान्य व्यवहार के मूल कारण को ज्ञात करके सम्बन्धित दमित इच्छा को किसी उचित एवं समाज-सम्मत ढंग से पूरा करने का सुझाव दिया जाता है। दमित इच्छाओं के सन्तुष्ट हो जाने से व्यक्तित्व की असामान्यता का निवारण हो जाता है तथा व्यक्ति का व्यक्तित्व क्रमशः सामान्य एवं संगठित होने लगता है।

9.

मिलनसार, सामाजिक क्रियाशील तथा यथार्थवादी व्यक्ति के व्यक्तित्व को कहा जाता है(क) अन्तर्मुखी व्यक्तित्व(ख) बहिर्मुखी व्यक्तित्व(ग) उभयमुखी व्यक्तित्व(घ) इनमें से कोई नहीं

Answer»

(ख) बहिर्मुखी व्यक्तित्व

10.

व्यक्ति के व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति मुख्य रूप से किस माध्यम से होती है?

Answer»

व्यक्ति के व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति मुख्य रूप से उसके व्यवहार के माध्यम से होती है।

11.

“व्यक्तित्व में सम्पूर्ण व्यक्ति का समावेश होता है। व्यक्तित्व व्यक्ति के गठन, रुचि के प्रकारों, अभिवृत्तियों, व्यवहार, क्षमताओं, योग्यताओं तथा प्रवणताओं का सबसे निराला संगठन है।”-यह कथन किसका है?(क) मन(ख) म्यूरहेड(ग) आलपोर्ट(घ) फ्रॉयड

Answer»

सही विकल्प है (ख) म्यूरहेड

12.

व्यक्तित्व के विघटन का कारण नहीं होता(क) व्यक्ति की संकल्प शक्ति का दुर्बल होना(ख) बौद्धिक न्यूनता(ग) इच्छाओं का दमन ।(घ) शारीरिक एवं मानसिक रूप से पूर्ण स्वस्थ होना

Answer»

(घ) शारीरिक एवं मानसिक रूप से पूर्ण स्वस्थ होना

13.

व्यक्तित्व की असामान्यता के उपचार के लिए अपनायी जाती है(क) सम्मोहन विधि(ख) मनोविश्लेषण विधि(ग) सुझाव विधि(घ) ये सभी विधियाँ

Answer»

सही विकल्प है (घ) ये सभी विधियाँ

14.

व्यक्ति के व्यक्तित्व में आनुवशिकता के वाहक कहलाते हैं(क) गुणसूत्र,(ख) जीन्स(ग) रक्त कोशिकाएँ(घ) ये सभी

Answer»

सही विकल्प है (ख) जीन्स

15.

निम्नलिखित में किसको ‘मास्टर ग्रन्थि’ कहते हैं?(क) थायरॉड्ड(ख) पैराथायरॉइड(ग) एड्रीनल(घ) पिट्यूटरी

Answer»

सही विकल्प है (घ) पिट्यूटरी

16.

सन्तुलित व्यक्तित्व का लक्षण नहीं है (क) सुरक्षा की भावना(ख) उपयुक्त स्व-मूल्यांकन(ग) दिवास्वप्न ।(घ) यथार्थ आत्म-ज्ञान

Answer»

सही विकल्प है (ग) दिवास्वप्न

17.

निम्नलिखित में से कौन नलिकाविहीन ग्रन्थि नहीं हैं?(क) गल ग्रन्थि(ख) पीयूष ग्रन्थि(ग) लार ग्रन्थि(घ) शीर्ष ग्रन्थि

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सही विकल्प है (ग) लार ग्रन्थि

18.

वार्नर द्वारा निर्धारित किया गया व्यक्तित्व का वर्गीकरण स्पष्ट कीजिए।

Answer»

वार्नर (Warner) ने शारीरिक आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण प्रस्तुत किया तथा इस वर्गीकरण के अन्तर्गत उसने दस प्रकार के व्यक्तित्वों का उल्लेख किया है।

व्यक्तित्व के ये दस प्रकार हैं-

⦁    सामान्य व्यक्तित्व

⦁    असामान्य बुद्धि वाला व्यक्तित्व

⦁    मन्द बुद्धि वाला व्यक्तित्व

⦁    अविकसित शरीर का व्यक्तित्व

⦁    स्नायविक व्यक्तित्व

⦁    स्नायु रोगी व्यक्तित्व

⦁    अपरिपुष्ट व्यक्तित्व

⦁    सुस्त और पिछड़ा हुआ व्यक्तित्व

⦁    अंगरहित व्यक्ति का व्यक्तित्व तथा

⦁    मिर्गी ग्रस्त व्यक्तित्व

19.

पारम्परिक भारतीय दृष्टिकोण के अनुसार व्यक्तित्व के वर्गीकरण को स्पष्ट कीजिए।

Answer»

भारतीय पारम्परिक विचारधारा के अनुसार व्यक्तित्व के वर्गीकरण का एक मुख्य आधार गुण, स्वभाव एवं कर्म स्वीकार किया गया है। इस आधार पर व्यक्तित्व के तीन वर्ग निर्धारित किये गये हैं। जिन्हें क्रमशः सात्विक, राजसिक तथा तामसिक कहा गया है। इस वर्गीकरण के अन्तर्गत सात्विक व्यक्ति के मुख्य लक्षण–शुद्ध आहार ग्रहण करना, धर्म एवं अध्यात्म में रुचि रखना तथा बुद्धि की प्रधानता हैं। राजसिक व्यक्तित्व के लक्षण हैं-अधिक उत्साह, पराक्रम, वीरता, युद्धप्रियता तथा शान-शौकत से परिपूर्ण जीवन। तामसिक व्यक्तित्व के लक्षण पाये गये हैं—समुचित बौद्धिक विकास न होना तथा कौशलपूर्ण कार्यों को करने की क्षमता न होना। इस वर्ग के व्यक्ति प्राय: आलस्य, प्रमाद आदि दुर्गुणों से युक्त होते हैं। तामसिक प्रवृत्ति के व्यक्तियों का आचरण निम्न स्तर का होता है तथा ये प्रायः मद-व्यसन तथा गरिष्ठ आहार ग्रहण करना पसन्द करते हैं। वर्ण-व्यवस्था के अनुसार, ब्राह्मण वर्ण सात्विक, क्षत्रिय वर्ण राजसिक, वैश्य वर्ण राजसिक-तामसिक तथा शूद्र वर्ण तामसिक प्रवृत्ति वाले होते हैं।

20.

फ्रॉयड के अनुसार व्यक्तित्व-विकास की प्रक्रिया का स्वरूप स्पष्ट कीजिए।

Answer»

फ्रॉयड ने अपने मनोविश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से व्यक्तित्व के विकास की प्रक्रिया को स्पष्ट किया है। फ्रॉयड की मान्यता है कि व्यक्तित्व की संरचना तीन तत्त्वों या इकाइयों से हुई है। इन्हें फ्रॉयड ने क्रमशः इड, इगो तथा सुपर इगो के रूप में वर्णित किया है। यदि इन तीनों इकाइयों में सन्तुलन बना रहता है तो व्यक्तित्व सन्तुलित रहता है। यदि इन इकाइयों में सन्तुलन बिगड़ जाता है तो व्यक्तित्व के सन्तुलन के बिगड़ने की आशंका रहती है। व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि यदि व्यक्ति का इड प्रबल हो जाये तो वह व्यक्ति प्रायः स्वार्थी, सुखवादी तथा अनियन्त्रित प्रकार का हो जाता है। इससे भिन्न यदि किसी व्यक्ति में इगो या अहम् प्रबल हो जाये तो व्यक्ति में मैं भाव’ हावी हो जाता है। यदि व्यक्ति में सुपर इगो या पराहम् प्रबल हो तो वह व्यक्ति आदर्शवादी बन जाता है। इस स्थिति में स्पष्ट है कि व्यक्तित्व के सन्तुलन के लिए इड, इगो तथा सुपर इगो में समन्वय आवश्यक है।