1.

‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर गाँधी जी की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। या‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के नायक का चरित्र-चित्रण (चरित्रांकन) कीजिए। या‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के नायक (प्रमुख पात्र) गाँधी जी का चरित्र-चित्रण कीजिए। या‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के नायक की (चारित्रिक) विशेषताएँ लिखिए। या‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर महात्मा गाँधी के जीवन व राष्ट्रीय आदर्शों पर प्रकाश डालिए।या“‘आलोकवृत्त’ में गाँधी जी का कृतित्व ही नहीं उनका जीवन-दर्शन और चिन्तन भी अभिव्यक्त हुआ है।” इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए। या‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर गाँधी जी के व्यक्तित्व की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। 

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‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर गाँधी जी के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार है।

(1) सामान्य मानवीय दुर्बलताएँ–गाँधी जी का आरम्भिक जीवन एक साधारण मनुष्य की भाँति मानवीय दुर्बलताओं वाला रहा है। उन्होंने एक बार अपने गुरु से छुपकर मांस-भक्षण किया था; उदाहरणार्थ–

करने लगे मांस-भक्षण, गुरुजन की आँख बचाकर।

किन्तु बाद में उन्होंने अपनी इन दुर्बलताओं पर अपनी आत्मिक शक्ति के बल पर पूर्ण विजय पा ली।

(2) देश-प्रेमी-‘आलोकवृत्त’ में गाँधी जी के चरित्र की सर्वप्रथम विशेषता उनका देशप्रेम है। वे देशप्रेम के कारण अनेक बार कारागार जाते हैं, जहाँ उन्हें अंग्रेजों के अपमान-अत्याचार सहने पड़ते हैं। उन्होंने अपना सर्वस्व देश के लिए न्यौछावर कर दिया। भारत के लिए उनका कहना था–

तू चिर प्रशान्त, तू चिर अजेय
सुर-मुनि-वन्दित, स्थित, अप्रमेय
हे सगुण ब्रह्म, वेदादि-गेय
हे चिर अनादि, हे चिर अशेष
मेरे भारत, मेरे स्वदेश ।

(3) सत्य और अहिंसा के प्रबल समर्थक–गाँधी जी देश की स्वतन्त्रता केवल सत्य और अहिंसा के द्वारा ही प्राप्त करना चाहते हैं। असत्य और हिंसा का मार्ग उन्हें अच्छा नहीं लगता। वे कहते हैं-

पशुबल के सम्मुख आत्मा की, शक्ति जगानी होगी।
मुझे अहिंसा से हिंसा की, आग बुझानी होगी।

अहिंसा व्रत का पूर्ण रूप से पालन उनके जैसी कोई बिरला व्यक्ति ही कर सकता है।

(4) दृढ़ आस्तिक-गाँधी जी पुरुषार्थी हैं तो भी वे ईश्वर की सत्ता में अटूट विश्वास रखते हैं। उनका मानना है कि साधन पवित्र होने चाहिए और परिणाम ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए। वे प्रत्येक कार्य ईश्वर को साक्षी मानकर करते हैं। यही कारण है कि वे मात्र पवित्र साधनों को प्रयोग ही उचित समझते हैं-

क्या होगा परिणाम सोच लें, पर क्यों सोचूं, वह तो।
मेरा क्षेत्र नहीं, स्रष्टा का, जो प्रभु करे वही हो ।

(5) स्वतन्त्रता-प्रेमी-गाँधी जी के जीवन का मूल उद्देश्य भारत को स्वतन्त्र करवाना है। वे भारतमाता की स्वतन्त्रता के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। देशवासियों को परतन्त्रता की बेड़ियाँ काटने के लिए प्रेरित करते हुए वे कहते हैं-

जाग तुझे तेरी अतीत, स्मृतियाँ धिक्कार रही हैं।
जाग-जाग तुझे भावी, पीढ़ियाँ पुकार रही हैं ।

(6) मानवतावादी-गाँधी जी मानव-मानव में अन्तर नहीं मानते। वे सबके लिए समानता के सिद्धान्त में विश्वास करते हैं। उन्होंने जीवन-भर ऊँच-नीच, जाति-पाँति और रंग-भेद का डटकर विरोध किया। अछूत कहे जाने वाले भारतीयों के उद्धार के लिए वे सतत प्रयत्नशील रहे। इस भेदभाव से उन्हें बहुत दु:ख होता था-

जिसने मारा मुझे, कौन वह, हाथ नहीं क्या मेरा।
मानवता तो एक, भिन्न, बस उसका मेरा घेरा ।।

(7) भावात्मक, राष्ट्रीय और हिन्दू-मुस्लिम एकता के समर्थक–गाँधी जी ‘विश्वबन्धुत्व’ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना से ओत-प्रोत थे। वे सभी को सुखी व समृद्ध देखना चाहते थे। इन्होंने भारत की समग्र जनता को एकता के सूत्र में बाँधने के लिए जीवन-पर्यन्त प्रयास किया और हिन्दू-मुसलमानों को भाई-भाई की तरह रहने की प्रेरणा दी। उनका कहना था–

यदि मिलकर इस राष्ट्रयज्ञ में सब कर्त्तव्य निभायें अपना,
एक वर्ष में ही पूरा हो मेरा रामराज्य का सपना ।

(8) आत्मविश्वासी-गाँधी जी आत्मविश्वास से परिपूर्ण थे, उन्होंने जो कुछ भी किया पूर्ण आत्मविश्वास के साथ किया और उसमें वे सफल भी हुए। उनका मानना था-

शासित की स्वीकृति न मिले तो शासक क्या कर लेगा
यदि आधार मिटे भय का तो एकतन्त्र ठहरेगा।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि एक श्रेष्ठ मानव में जितने भी मानवोचित गुण हो सकते हैं वे सभी महात्मा गाँधी में विद्यमान थे।



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