InterviewSolution
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अर्थशास्त्र में विनिमय से आप क्या समझते हैं ? विनिमय से होने वाले लाभों एवं हानियों का विवेचन कीजिए। |
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Answer» प्रो० मार्शल के अनुसार, “दो पक्षों के बीच होने वाले धन के ऐच्छिक, वैधानिक तथा पारस्परिक हस्तान्तरण को ही विनिमय कहते हैं।” विनिमय से लाभ 1. आवश्यकता की वस्तुओं की प्राप्ति – आवश्यकताओं में वृद्धि के कारण ही विनिमय का जन्म हुआ। आज व्यक्ति अपनी सभी आवश्यकताओं की वस्तुएँ स्वयं उत्पादित नहीं कर सकता। आवश्यकताओं की वृद्धि के कारण पारस्परिक निर्भरता बढ़ गयी है। विनिमय के माध्यम से व्यक्ति अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ प्राप्त कर सकता है। विनिमय के कारण ही आयात-निर्यात होता है। 2. प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण दोहन – ज्ञान व सभ्यता के विकास के साथ-साथ आवश्यकताओं में भी तीव्र गति से वृद्धि हुई है तथा वस्तुओं की माँग बढ़ी है। इसीलिए वस्तुओं के . अधिक उत्पादन की आवश्यकता हुई। अधिक उत्पादन संसाधनों के कुशलतम दोहन पर ही निर्भर करता है। विनिमय के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम उपयोग किया जाता है। 3. बड़े पैमाने पर उत्पादन – वर्तमान प्रतियोगिता व फैशन के युग में वस्तुओं का उत्पादन केवल अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही नहीं, वरन् देश-विदेश के व्यक्तियों की माँग को भी ध्यान में रखकर बड़े पैमाने पर मशीनों द्वारा किया जाता है, जिससे वस्तुओं की बढ़ती हुई माँग को पूरा किया जा सके। 4. बाजार का विस्तार – विनिमय के कारण ही वस्तुओं का आयात-निर्यात सम्भव हो सका है। विनिमय के क्षेत्र में वृद्धि के साथ-साथ वस्तुओं का बाजार भी विस्तृत होता जाता है। बड़े पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन होने से बढ़े हुए उत्पादन को निर्यात करके बाजार का क्षेत्र विस्तृत किया जा सकता है। 5. जीवन – स्तर में सुधार विनिमय द्वारा आवश्यकता की वस्तुएँ सरलतापूर्वक कम कीमत पर उपलब्ध हो जाने से लोगों के जीवन-स्तर में सुधार होता है। अपने देश में अप्राप्त वस्तुएँ विदेशों से मँगाई जा सकती हैं। अत: विनिमय के माध्यम से लोगों का जीवन-स्तर ऊँचा होता है। 6. कार्य-कुशलता में वृद्धि – विनिमय द्वारा लोगों की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है। इसका मुख्य कारण आवश्यक वस्तुओं का सरलता से मिलना तथा उन वस्तुओं का उत्पादन करना है, जिनमें कोई व्यक्ति या राष्ट्र निपुणता प्राप्त कर लेता है। एक कार्य को निरन्तर करने से कार्य-निपुणता में वृद्धि होती है। 7. ज्ञान में वृद्धि – विनिमय द्वारा मनुष्यों का परस्पर सम्पर्क बढ़ता है। फलस्वरूप व्यक्ति को विभिन्न प्रकार के धर्म, रहन-सहन, भाषा, रीति-रिवाजों आदि का ज्ञान प्राप्त होता है। इस प्रकार विनिमय द्वारा ज्ञान व सभ्यता में वृद्धि होती है। 8. राष्ट्रों में पारस्परिक मैत्री व सद्भावना – विनिमय के कारण ही वस्तुओं का आयात-निर्यात सम्भव हो सका है; फलस्वरूप विश्व के विभिन्न राष्ट्र परस्पर निकट आये हैं। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर वस्तुओं की प्राप्ति हेतु निर्भर हो गया है। परिणामस्वरूप विभिन्न राष्ट्रों में मित्रता व सद्भावना बलवती हुई है। 9. विपत्तिकाल में सहायता – विनिमय द्वारा प्राकृतिक प्रकोप; जैसे – अकाल, बाढ़, भूकम्प, सूखा आदि के समय एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र की सहायता करता है। इस प्रकार विनिमय के कारण परस्पर पास आये राष्ट्र विपत्तिकाल में सहायक सिद्ध होते हैं। 10. विनिमय से दोनों पक्षों को लाभ – विनिमय द्वारा दोनों पक्षों को कम आवश्यक वस्तुओं के स्थान पर अधिक आवश्यक वस्तुओं की प्राप्ति हो जाती है। इस प्रकार विनिमय से दो व्यक्तियों या दो राष्ट्रों को लाभ मिलता है। विनिमय से हानियाँ 2. राजनीतिक पराधीनता – विनिमय के कारण विस्तारवादी नीति का प्रसार होता है। औद्योगिक दृष्टि से सबल राष्ट्र, निर्बल राष्ट्रों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लेते हैं। उदाहरणस्वरूप-इंग्लैण्ड भारत में विनिमय (व्यापार) करने के लिए आया था, लेकिन उसने धीरे-धीरे भारत पर अपना अधिकार कर लिया। इस प्रकार विनिमय से राजनीतिक दासता की भय बना रहता है। 3. प्राकृतिक साधनों का अनुचित उपयोग – विनिमय के कारण विनिमय क्रिया बलवती होती जाती है। आयात-निर्यात अधिक मात्रा में होने लगते हैं। शक्तिशाली राष्ट्र निर्बल राष्ट्रों के प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग अपने हित में करना प्रारम्भ कर देते हैं, जिससे उनका विकास अवरुद्ध होता जाता है। 4. अनुचित प्रतियोगिता – विनिमय के कारण प्रत्येक राष्ट्र अपनी अतिरिक्त वस्तुओं को विश्व के बाजार में बेचना चाहता है। प्रत्येक राष्ट्र अपने निर्यात में वृद्धि कर अधिक लाभ प्राप्त करना चाहता है। इस प्रकार एक अनुचित व हानिकारक प्रतियोगिता प्रारम्भ हो जाती है और निर्बल राष्ट्रों को अधिक आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। 5. युद्ध की सम्भावना – शक्तिशाली राष्ट्र अपनी आर्थिक उन्नति हेतु बाजार की प्राप्ति तथा कच्चे माल की आपूर्ति हेतु संघर्ष करता है, जिसके कारण युद्ध की सम्भावना बनी रहती है। 6. असन्तुलित आर्थिक विकास – विनिमय के कारण प्रत्येक देश उन वस्तुओं का अधिक उत्पादन करता है, जिनकी विदेशों में अधिक माँग होती है। इस प्रकार देश का आर्थिक विकास असन्तुलित रूप में होने लगता है। यह आर्थिक संकट में अनेक कठिनाइयाँ उत्पन्न कर देता है जिससे क्षेत्रीय विषमताएँ भी बढ़ने लगती हैं। पर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि विनिमय में दोषों की अपेक्षा गुण अधिक हैं। विनिमय प्रक्रिया में जो दोष दृष्टिगत होते हैं वे मात्र गलत आर्थिक नीतियों के कारण हैं। यदि आर्थिक नीति विश्व-हित को ध्यान में रखकर निर्मित की जाए तो उक्त दोष दूर किये जा सकते हैं। विनिमय एक आवश्यक प्रक्रिया भी है, जिसके अभाव में विश्व की सम्पूर्ण प्रगति की कल्पना नहीं की जा सकती। |
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