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प्रत्यक्ष एवं परोक्ष विनिमय के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।यावस्तु विनिमय तथा क्रय-विक्रय में अन्तर बताइए।

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विनिमय के दो रूप होते हैं 

1) प्रत्यक्ष विनिमय या वस्तु विनिमय या अल-बदल प्रणाली। 

(2) अप्रत्यक्ष विनिमय या क्रय-विक्रय प्रणाली।

1. प्रत्यक्ष विनिमय या वस्तु विनिमय प्रणाली – “जब दो व्यक्ति परस्पर अपनी वस्तुओं तथा सेवाओं का प्रत्यक्ष रूप से आदान-प्रदान करते हैं, तब इस प्रकार की क्रिया को हम अर्थशास्त्र में वस्तु विनिमय (Barter) कहते हैं।” वस्तु विनिमय = वस्तु → वस्तु। उदाहरण के लिए–भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी अनाज देकर सब्जी प्राप्त की जाती है तथा नाई, धोबी, बढ़ई आदि को उनकी सेवाओं के बदले में अनाज दिया जाता है।

2. अप्रत्यक्ष विनिमय या क्रय-विक्रय प्रणाली – जब विनिमय का कार्य मुद्रा (द्रव्य) के माध्यम द्वारा किया जाता है तो इस प्रणाली को क्रय-विक्रय अथवा अप्रत्यक्ष विनिमय कहते हैं। दूसरे शब्दों में, जब कोई व्यक्ति मुद्रा देकर किसी वस्तु या सेवा को क्रय करता है या किसी वस्तु या सेवा को देकर मुद्रा प्राप्त की जाती है, तब इस क्रिया को अप्रत्यक्ष विनिमय या क्रय-विक्रय प्रणाली कहते हैं।
अप्रत्यक्ष विनिमय = वस्तु → मुद्रा → वस्तु।
विनिमय के इन दोनों प्रकार के अन्तर को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है

क्र०सं०प्रत्यक्ष विनिमय या वस्तु विनिमय प्रणालीअप्रत्यक्ष विनिमय या क्रय-विक्रय प्रणाली
1.जब कोई व्यक्ति अपनी किसी वस्तु या सेवा के बदले किसी अन्य व्यक्ति से अपनी आवश्यकता की कोई वस्तु या सेवा प्राप्त करता है तो उसे प्रत्यक्ष विनिमय या वस्तु विनिमय कहते हैं।जब वस्तुओं एवं सेवाओं का मुद्रा (द्रव्य) के माध्यम से विनिमय होता है तब इसे अप्रत्यक्ष विनिमय कहते हैं।
2.प्रत्यक्ष विनिमय, विनिमय की एक पूर्ण प्रक्रिया है। इस प्रणाली में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को वस्तुएँ या सेवाएँ देता है तथा बदले में उसी समय वस्तुएँ या सेवाएँ प्राप्त करता है।अप्रत्यक्ष विनिमय में विनिमय प्रक्रिया दो उपविभागों-क्रय तथा विक्रय–में विभक्त की जा सकती है। विक्रय तथा क्रय के पश्चात् ही विनिमय प्रक्रिया पूर्ण होती है।
3.प्रत्यक्ष विनिमय में द्रव्य का प्रयोग नहीं होता है।अप्रत्यक्ष विनिमय में द्रव्य का प्रयोग किया जाता है।
4.प्रत्यक्ष विनिमय में आवश्यकता से अतिरिक्त वस्तुओं एवं सेवाओं के बदले आवश्यकता की वस्तुएँ तथा सेवाएँ प्राप्त की जाती हैं।अप्रत्यक्ष विनिमय में वस्तु या सेवा के बदले पहले द्रव्य प्राप्त किया जाता है तथा फिर द्रव्य के बदले आवश्यकता की वस्तुएँ या सेवाएँ प्राप्त की जाती हैं।
5.वस्तु विनिमय प्रणाली को उपयोग केवल सीमित क्षेत्र में ही सम्भव होता है।अप्रत्यक्ष विनिमय का उपयोग विस्तृत क्षेत्र में किया जा सकता है।
6.वस्तु विनिमय का प्रचलन प्रायः उस अवस्था में होता है, जब कि मनुष्य की आवश्यकताएँ बहुत कम, सरल तथा सीमित होती हैं।मनुष्य की आवश्यकताओं की वृद्धि के कारण ही अप्रत्यक्ष विनिमय के द्वारा अधिकाधिक आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है।
7.वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तु की अदल-बदल एक व्यक्ति के साथ अर्थात् जिसे आप अपनी वस्तु वस्तु देते हैं, बदले में आप उसकी वस्तु को प्राप्त करते हैं, की जाती है।अप्रत्यक्ष विनिमय में वस्तुओं का क्रय-विक्रय एक ही व्यक्ति के साथ नहीं करना पड़ता है। वस्तु का क्रय एक व्यक्ति से तथा विक्रय अन्य व्यक्ति को किया जाता है।
8.वस्तु विनिमय को प्रचलन केवल ऐसे समाज में होता है जो आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा होता है अथवा जिसमें द्रव्य का चलन नहीं होता है।अप्रत्यक्ष विनिमय सभ्य व विकसित समाज में प्रचलित होता है।



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