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वस्तु विनिमय प्रणाली क्या है ? इसके गुण व दोषों का वर्णन कीजिए। यावस्तु विनिमय प्रणाली क्या है ? इसकी कठिनाइयों का उल्लेख कीजिए।याविनिमय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। यावस्तु विनिमय प्रणाली क्या है? वस्तु विनिमय प्रणाली के लाभों (गुणों) का वर्णन कीजिए।यासंक्षेप में विनिमय में लाभ एवं हानियों का वर्णन कीजिए।

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आवश्यकता आविष्कारों की जननी है। अतः मनुष्य की आवश्यकताओं में वृद्धि के कारण ही ‘विनिमय’ का आविष्कार (जन्म) हुआ। यह विनिमय अब तक दो रूपों में प्रचलित है
⦁     प्रत्यक्ष विनिमय अथवा वस्तु विनिमय तथा
⦁    परोक्ष विनिमय अथवा क्रय-विक्रय प्रणाली।
वस्तु विनिमय प्रणाली वस्तु विनिमय प्रणाली को अदला-बदली की प्रणाली भी कहते हैं जो कि विनिमय की प्राचीन पद्धति है। इस प्रणाली में वस्तुओं तथा सेवाओं को प्रत्यक्ष रूप से आदान-प्रदान किया जाता है अर्थात् जब कोई व्यक्ति अपनी किसी वस्तु या सेवा के बदले किसी अन्य व्यक्ति से अपनी आवश्यकता की कोई वस्तु या सेवा प्राप्त करता है तो इस क्रिया को अदल-बदल या वस्तु विनिमय या प्रत्यक्ष विनिमय कहते हैं। इस प्रणाली के अन्तर्गत मुद्रा (द्रव्य) का प्रयोग नहीं होता बल्कि वस्तुओं तथा सेवाओं का आदान-प्रदान होता है। भारत के ग्रामों में आज भी अनाज के बदले सब्जी ली जाती है या ग्रामों में नाई, बढ़ई, धोबी आदि को उनकी सेवाओं के बदले अनाज दिया जाता है।

वस्तु विनिमय की परिभाषा
प्रो० थॉमस के अनुसार-“एक वस्तु से दूसरी वस्तु के प्रत्यक्ष विनिमय को ही वस्तु विनिमय कहते हैं।”
प्रो० जेवेन्स के अनुसार, “अपेक्षाकृत कम आवश्यक वस्तु से अधिक आवश्यक वस्तुओं का आदान-प्रदान ही वस्तु विनिमय है।”

वस्तु विनिमय प्रणाली के गुण/लाभ
वस्तु विनिमय प्रणाली में निम्नलिखित गुण (लाभ) विद्यमान हैं

1. सरलता – वस्तु विनिमय प्रणाली एक सरल प्रक्रिया है, क्योंकि इसमें वस्तु के बदले वस्तु का लेन-देन होता है। एक व्यक्ति अपनी अतिरिक्त वस्तु दूसरे जरूरतमन्द व्यक्ति को देकर उसके बदले अपनी आवश्यकता की वस्तु उस व्यक्ति से प्राप्त कर लेता है।

2. पारस्परिक सहयोग – वस्तु विनिमय प्रणाली से आपसी सहयोग में वृद्धि होती है, क्योंकि मनुष्य अपनी अतिरिक्त वस्तुओं को अपने समीप के व्यक्ति को देकर उससे अपनी आवश्यकता की वस्तु प्राप्त कर लेता है, जिससे उनमें पारस्परिक सहयोग की भावना बलवती होती है।

3. धन का विकेन्द्रीकरण – वस्तु विनिमय प्रणाली में मुद्रा पद्धति के अभाव के कारण धन का केन्द्रीकरण कुछ ही हाथों में न होकर समाज के सीमित क्षेत्र के लोगों में बँट जाता है। वस्तुओं के शीघ्र नष्ट होने के भय के कारण वे वस्तुओं का संग्रहण अधिक मात्रा में नहीं कर पाते हैं। अत: वस्तु विनिमय प्रणाली में सभी पारस्परिक सहयोग की भावना से मानव-हित को सर्वोपरि मानकर कार्य करते हैं।

4. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए उपयुक्त – विभिन्न देशों की मुद्राओं में भिन्नता के कारण अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के भुगतान की समस्या बनी रहती है, जबकि
वस्तुओं के माध्यम से भुगतान सरलता से हो जाता है। वस्तु विनिमय द्वारा इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकती है।

5. मौद्रिक पद्धति के दोषों से मुक्ति – वस्तु विनिमय प्रणाली मुद्रा-प्रसार व मुद्रा-संकुचन के दोषों से मुक्त है, क्योंकि इसमें वस्तुएँ मुद्रा से नहीं बल्कि वस्तुओं के पारस्परिक आदान-प्रदान से ही प्राप्त की जाती हैं। इससे वस्तुओं के सस्ते या महँगे होने का भय नहीं रहता। परिणामस्वरूप मुद्रा की मात्रा की वस्तुओं के मूल्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

6. दोनों पक्षों को उपयोगिता का लाभ – वस्तु-विनिमय की क्रिया उन्हीं व्यक्तियों द्वारा की जाती है, जिनके पास वस्तुओं का आधिक्य होता है, जबकि सम्बन्धित वस्तु की उपयोगिता उस व्यक्ति के लिए अपेक्षाकृत कम होती है। यह सर्वमान्य है कि व्यक्ति कम उपयोगी वस्तु को देकर अधिक उपयोगी वस्तुएँ प्राप्त करना चाहता है। इस प्रकार वस्तु विनिमय की क्रिया में दोनों पक्षों को ही उपयोगिता का लाभ प्राप्त होता है।

वस्तु विनिमय की असुविधाएँ या कठिनाइयाँ या दोष
वस्तु विनिमय प्रणाली की प्रमुख कठिनाइयाँ निम्नवत् हैं

1. दोहरे संयोग का अभाव – वस्तु विनिमय प्रणाली की सबसे बड़ी कठिनाई दोहरे संयोग का अभाव है। इस प्रणाली के अन्तर्गत मनुष्य को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु ऐसे व्यक्ति की खोज में भटकना पड़ता है जिसके पास उसकी आवश्यकता की वस्तु हो और वह व्यक्ति अपनी वस्तु देने के लिए तत्पर हो तथा वह बदले में स्वयं की उस मनुष्य की वस्तु लेने के लिए तत्पर हो। उदाहरण के लिए-योगेश के पास गेहूँ हैं और वह गेहूं के बदले चावल प्राप्त करना चाहता है, तो योगेश को ऐसा व्यक्ति खोजना पड़ेगा जिसके पास चावल हों और साथ-ही-साथ वह बदले में गेहूं लेने के लिए तैयार हो। इस प्रकार दो पक्षों का ऐसा पारस्परिक संयोग, जो एक-दूसरे की आवश्यकता की वस्तुएँ प्रदान कर सके, मिलना कठिन हो जाता है।
2. मूल्य के सर्वमान्य माप का अभाव – इस प्रणाली में मूल्य का कोई ऐसा सर्वमान्य माप नहीं होता जिसके द्वारा प्रत्येक वस्तु के मूल्य को विभिन्न वस्तुओं के सापेक्ष निश्चित किया जा सके। इस स्थिति में दो वस्तुओं के बीच विनिमय दर निर्धारित करना कठिन होता है। दोनों पक्ष अपनी-अपनी वस्तु को अधिक मूल्य ऑकते हैं तथा वस्तु विनिमय कार्य में कठिनाई होती है।
3. वस्तु के विभाजन की कठिनाई – कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिनका विभाजन नहीं किया जा सकता; जैसे – गाय, बैल, भेड़, बकरी, कुर्सी, मेज आदि। वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं की अविभाज्यता भी बहुधा कठिनाई का कारण बन जाती है। उदाहरण के लिए-यदि योगेश के पास एक गाय है और वह इसके बदले में खाद्यान्न, कपड़े तथा रेडियो चाहता है, तो इस स्थिति में योगेश को अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ प्राप्त करना कठिन हो जाएगा। वह ऐसे व्यक्ति को शायद ही खोज पाएगा जो उससे गाय लेकर उसकी सभी आवश्यक वस्तुएँ दे सके। साथ ही योगेश के लिए गाय का विभाजन करना भी असम्भव है, क्योंकि विभाजन करने से गाय का मूल्य या तो बहुत ही कम हो जाएगा या कुछ भी नहीं रह जाएगा।
4. मूल्य संचय की असुविधा – वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं को अधिक समय तक संचित करके नहीं रखा जा सकता, क्योंकि वस्तुएँ नाशवान् होती हैं। वस्तुओं के मूल्य भी स्थिर नहीं रहते हैं; अतः वस्तुओं को धन के रूप में संचित करना कठिन होता है।
5. मूल्य हस्तान्तरण की असुविधा – वस्तु विनिमय प्रणाली के अन्तर्गत वस्तु के मूल्य को हस्तान्तरित करने में कठिनाई उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिए-योगेश के पास मेरठ में एक मकान है। यदि वह अब अपने गाँव में रहना चाहता है तो वस्तु विनिमय प्रणाली की स्थिति में वह अपने मकान को न तो बेचकर धन प्राप्त कर सकता है और न ही उस मकान को अपने साथ जहाँ चाहे ले जा सकता है। इस प्रकार उसके सामने बहुत बड़ी असुविधा उत्पन्न हो जाती है।
6. स्थगित भुगतानों में कठिनाई – वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तु के मूल्य स्थिर नहीं होते हैं। तथा वस्तुएँ कुछ समय के पश्चात् नष्ट होनी प्रारम्भ हो जाती हैं। इस कारण उधार लेन-देन में असुविधा रहती है। यदि वस्तुओं के मूल्य का भुगतान तुरन्त न करके कुछ समय के बाद किया जाता है तब सर्वमान्य मूल्य-मापक के अभाव के कारण बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न हो जाती है।



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