1.

औद्योगिक ढाँचे का क्या तात्पर्य है ? स्पष्ट कीजिए।

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भारत के औद्योगिक उद्यमों को मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र एवं निजी क्षेत्र में वर्गीकृत किया जा सकता है। वे कम्पनियाँ जिन पर सरकारी विभागों अथवा केन्द्र या राज्यों द्वारा स्थापित संस्थाओं का स्वामित्व होता है, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम कहलाते हैं।दूसरे निजी क्षेत्र के उद्यम हैं। कुछ उद्यमों का मिश्रित रूप भी है जिन पर सार्वजनिक क्षेत्र की संस्था और निजी उद्यम दोनों का संयुक्त स्वामित्व होता है। संयुक्त क्षेत्र और निजी क्षेत्र के उद्योगों को कभी-कभी निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया जाता है

() गैर-कारखाना विनिर्माण इकाइयाँ – ये दो प्रकार की होती हैं

  • ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में कुटीर उद्योग और
  • अन्य औद्योगिक इकाइयाँ, जो इतनी छोटी होती हैं कि वे कारखाना कहलाने लायक नहीं होतीं और इसलिए उन्हें छोटी विनिर्माण इकाइयाँ कहा जाता है।

(ख) ऐसे उद्यम जिन्हें अधिक मात्रा में विदेशी विनिमय का प्रयोग करना पड़ता है, जो कि भारत के लिए दुर्लभ स्रोत है। ये उद्यम विदेशी विनिमय अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत काम करते हैं और फेरा (FERA) कम्पनियाँ कहलाते हैं। वर्तमान में ‘फेरा’ के स्थान पर ‘फेमा’ (FEMA) के नियमों के अन्तर्गत कार्य किया जाता है।

(ग) ऐसे उद्यम जो इतने बड़े हैं कि जिन्हें एकाधिकार एवं प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम (MRTP Act) के अन्तर्गत काम करना पड़ता है। इन्हें MRTP कम्पनियाँ कहते हैं।



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