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पेट्रो-रसायन और रसायन उद्योग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

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पेट्रो-रसायन उद्योग खनिज तेल पर आधारित होते हैं। खनिज तेल को परिष्कृत करके उसमें से स्नेहक तेल, फर्नेस तेल, डीजल, मिट्टी का तेल, सफेद तेल, पेट्रोल, एल०पी०जी० गैस, नेफ्था, रासायनिक गोंद, ग्रीस, मेन्थॉल, नाइलोन, पॉलिस्टर प्राप्त किये जाते हैं। रेयॉन, नाइलोन, टेरीन और डेकरॉन कृत्रिम रेशे पेट्रो-रसायन उद्योग के वे उत्पाद हैं जिनसे आकर्षक, अधिक टिकाऊ वस्त्र बनाये जाते हैं। अपने उत्कृष्ट गुणों के कारण पेट्रो-रसायन उत्पाद, परम्परागत कच्चे माल; जैसे-लकड़ी, शीशा और धातु का स्थान ले रहे हैं। घरों, कारखानों और खेतों में इनका उपयोग हो रहा है। उदाहरण के लिए- प्लास्टिक के उपयोग से जन-जीवन में क्रान्तिकारी परिवर्तन आ रहे हैं। सिन्थेटिक डिटर्जेण्ट एक क्रान्तिकारी पेट्रो-रसायन उत्पाद ही है।

रसायन उद्योग – लोहा तथा इस्पात, इंजीनियारिंग और वस्त्र उद्योग के बाद रसायन उद्योग का देश में चौथा स्थान है। पिछले कुछ वर्षों में कार्बनिक तथा अकार्बनिक रसायन उद्योग ने बड़ी तेजी से विकास किया है। ये उद्योग रसायनों पर आधारित होते हैं। इन भारी रसायनों से अनेक उत्पाद बनाये जाते हैं। इनमें औषधियाँ, रँगाई के सामान, नाशकमार (कीटनाशक आदि), पेण्ट, दियासलाई, साबुन आदि उत्पाद उल्लेखनीय हैं। अमेरिका का रसायन उद्योग में विश्व में प्रथम स्थान है।

नाशकमार दवाओं में कीटनाशक, खरपतवारनाशक, फफूदनाशक और कृतंकनाशक, कृषि और जन-स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। डी०डी०टी० बनाने का कारखाना सन् 1954 में दिल्ली में लगाया गया था। सन् 1996-97 में इसका उत्पादन १ 900 अरब मूल्य का था। औषध निर्माण उद्योग में भारत का अब विश्व में श्रेष्ठ स्थान है। देश मूलभूत तथा व्यापक (Bulk) औषधियों के उत्पादन में लगभग आत्मनिर्भर बन गया है।



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