InterviewSolution
| 1. |
भारत में लौह-इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण, वितरण एवं भावी सम्भावनाओं का विवरण दीजिए।याभारत में लौह-इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण के कोई तीन कारण बताइए। |
|
Answer» भारत में लोहा-इस्पात उद्योग उद्योग का महत्त्व एवं विकास लोहा-इस्पात उद्योग की गणना भारत के महत्त्वपूर्ण भारी उद्योगों में की जाती है। वर्तमान में भारत में लोहा-इस्पात के 11 कारखाने है, जिनमें से 4 बिल्कुल नए हैं। लोहा-इस्पात उद्योग, औद्योगिक क्रान्ति का जनक है। इस्पात का उपयोग मशीनों, रेलवे लाइन, परिवहन के साधन, भवन निर्माण, रेल के पुल, जलयान, अस्त्र-शस्त्र तथा कृषि यन्त्र आदि बनाने में किया जाता है अर्थात् इससे एक सुई से लेकर विशालकाय टैंकों तक का निर्माण किया जाता है। वर्तमान में भारत में एक इस्पात कारखाना निजी क्षेत्र में (टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी) तथा शेष 10 सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित किए गए हैं। स्थानीयकरण के कारण – भारत में लोहा-इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
उत्पादन एवं उद्योग के प्रमुख केन्द्र 1. टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी, जमशेदपुर (TISCO) – इसे कम्पनी की स्थापना सन् 1907 में जमशेद जी टाटा द्वारा तत्कालीन बिहार (वर्तमान में झारखण्ड राज्य) के साँकची (वर्तमान में जमशेदपुर) नामक स्थान पर की गई थी। वर्तमान में यह एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा लोहा-इस्पात कारखाना है। इस कारखाने की उत्पादन क्षमता 20 लाख टन इस्पात पिण्ड तथा 19 लाख टन ढलवाँ लोहा प्रतिवर्ष तैयार करने की है। जमशेदपुर को ही इस्पात नगरी या टाटानगर भी कहा जाता है। 2. इण्डियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (ISCO) – इस कम्पनी के अधीन इस्पात के तीन कारखाने-पश्चिम बंगाल के बर्नपुर, कुल्टी तथा हीरापुर स्थानों पर स्थापित किए गए हैं। सन् 1952 से इन तीनों कारखानों को ‘इण्डियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी के नाम से जाना जाता है। सन् 1976 से सरकार ने इस कम्पनी को अपने अधिकार में ले लिया है। बर्नपुर में इस्पात, हीरापुर में ढलवाँ लोहा तथा कुल्टी में इस्पात पिण्ड बनाए जाते हैं। इस कम्पनी का मुख्य कार्यालय कोलकाता में है। इन तीनों इकाइयों की वार्षिक उत्पादन क्षमता 10 लाख टन इस्पात तथा 13 लाख टन ढलवाँ लोहा तैयार करने की है। 3. विश्वेश्वरैया आयरन स्टील लिमिटेड – कर्नाटक राज्य के शिमोगा जिले में भद्रा नदी के किनारे भद्रावती नामक स्थान पर सन् 1923 में इस कारखाने की स्थापना की गई थी। इस क्षेत्र में पर्याप्त लौह-अयस्क निकाला जाता है, परन्तु कोयले का अभाव है। अत: कोयले के स्थान पर लकड़ी का कोयला प्रयोग में लाया जाता है। यहाँ लौह-अयस्क केमानगुण्डी तथा बाबाबूदन की पहाड़ियों से प्राप्त होता है। इस कारखाने की उत्पादन क्षमता 85,000 टन ढलवाँ लोहा तथा 2 लाख टन इस्पात तैयार करने की है। सन् 1962 ई० से इस कारखाने पर कर्नाटक सरकार तथा भारत सरकार का संयुक्त अधिकार है। 4. राउरकेला इस्पात लिमिटेड – ओडिशा राज्य में सन् 1955 में जर्मनी की सहायता से सुन्दरगढ़ जिले के राउरकेला नामक स्थान पर इस कारखाने की स्थापना की गई थी। वर्तमान में इसकी उत्पादन क्षमता 18 लाख टन इस्पात तैयार करने की है। इस कारखाने को लौह-अयस्क क्योंझर तथा गुरुमहिसानी की खदानों से तथा कोयला झरिया, तालचेर एवं कोरबा की खदानों से प्राप्त होता है। हीराकुड बाँध से इसे , सस्ती जलविद्युत शक्ति प्राप्त होती है। 5. भिलाई इस्पात कारखाना – इस कारखाने की स्थापना वर्तमान छत्तीसगढ़ (तत्कालीन मध्य प्रदेश) राज्य के दुर्ग जिले में भिलाई नामक स्थान पर सन् 1955 ई० में तत्कालीन सोवियत संघ की सरकार के सहयोग से की गई थी। इस कारखाने में उत्पादन सन् 1962 ई० में आरम्भ हुआ था। इस कारखाने को सभी भौगोलिक सुविधाएँ प्राप्त हैं। इस कारखाने की उत्पादन क्षमता 40 लाख टन इस्पात प्रतिवर्ष तैयार करने की है। यहाँ लोहे की छड़े, शहतीर, रेल की पटरियाँ तथा इस्पात के ढाँचे बनाए जाते हैं। 6. दुर्गापुर इस्पात कारखाना – पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर नामक स्थान पर ब्रिटिश सरकार की सहायता से सन् 1956 ई० में इस कारखाने की स्थापना की गई थी परन्तु इस कारखाने से सन् 1962 ई० में उत्पादन प्रारम्भ हो सका। इसमें रेल की पटरियाँ, शहतीर तथा ब्लेड बनाए जाते हैं। इसकी उत्पादन क्षमता 16 लाख टन इस्पात पिण्ड तैयार करने की है। 7. बोकारो इस्पात कारखाना – वर्तमान झारखण्ड (तत्कालीन बिहार) राज्य के बोकारो नामक स्थान पर चौथी पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत सन् 1964 ई० में सोवियत संघ के सहयोग से इस कारखाने की स्थापना की गई थी। इस कारखाने की उत्पादन क्षमता 40 लाख टन इस्पात प्रतिवर्ष तैयार करने की है। अन्य प्रतिष्ठान – भारत में इस्पात की बढ़ती हुई माँग की पूर्ति के लिए लोहा-इस्पात के अनेक नए कारखानों की स्थापना की गई है। इनमें कर्नाटक राज्य में बेल्लारी जिले में हॉस्पेट के निकट विजयनगर, आन्ध्र प्रदेश में विशाखापत्तनम, तमिलनाडु में सलेम तथा ओडिशा राज्य में दैतारी नामक स्थानों पर नए इस्पात कारखानों की स्थापना प्रमुख है। उत्पादन एवं व्यापार – भारत अनेक देशों को इस्पात का निर्यात करता है। न्यूजीलैण्ड, मलेशिया, बांग्लादेश, ईरान, म्यांमार (बर्मा), सऊदी अरब, श्रीलंका, कीनिया आदि देश भारतीय इस्पात के प्रमुख ग्राहक हैं। भविष्य में इस्पात के निर्यात की सम्भावना बढ़ी है। |
|