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औद्योगिक विकास में कृषि का क्या महत्त्व है ?

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औद्योगिक विकास में कृषि का योगदान

राष्ट्रीय आय में अंश – भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान पहले बहुत अधिक था, किन्तु वह धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। यह प्रवृत्ति इस बात की सूचक है कि भारत विकास की ओर अग्रसर है। वर्ष 1950-51 में यह योगदान 55.40% था, जो 2001-02 ई० में घटकर 26.1% रह गया।

रोजगार की दृष्टि से कृषि – देश की कुल श्रम-शक्ति का लगभग दो-तिहाई (64%) भाग कृषि एवं इससे सम्बन्धित उद्योग-धन्धों से अपनी आजीविका कमाता था। सी०डी०एस० आधार पर कृषि उद्योग में 1983 ई० में 5.135 करोड़ श्रमिक लगे हुए थे, जब कि वर्ष 1999-2000 में इन श्रमिकों की संख्या बढ़कर 19.072 करोड़ हो गयी।

औद्योगिक विकास में कृषि – भारत के प्रमुख उद्योगों को कच्चा माल कृषि से ही प्राप्त होता है। सूती और पटसन वस्त्र उद्योग, चीनी, वनस्पति, बागान आदि उद्योग प्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर हैं। हथकरघा, बुनाई, तेल निकालना, चावल कूटना आदि बहुत-से लघु और कुटीर उद्योगों को भी कच्चा माल. कृषि से ही उपलब्ध होता है। अत: देश के औद्योगिक विकास में कृषि महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में कृषि – भारत के विदेशी व्यापार का अधिकांश भाग कृषि से जुड़ा हुआ है। वर्ष 2002-03 में देश के निर्यात में कृषि वस्तुओं का अनुपात 11.9% था और कृषि से बनी हुई वस्तुओं; जैसे—निर्मित पटसन एवं कपड़ा; का अनुपात लगभग 25%। इस प्रकार भारत के कुल निर्यात में कृषि और उससे सम्बन्धित वस्तुओं का अनुपात लगभग 37% था। भारत के कृषि निर्यात में चावल और समुद्री उत्पाद का महत्त्व बढ़ रहा है। वर्ष 2002-03 में कृषि निर्यात में अकेले समुद्री उत्पाद का अंश 23.4% रहा है, जब कि चावल का अंश 13.6%। काजू का निर्यात-अंश 9.2% भी सराहनीय है।



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