InterviewSolution
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औरंगजेब की धार्मिक नीति की समीक्षा कीजिए। |
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Answer» औरंगजेब की धार्मिक नीति के विषय में इतिहासकारों में गहरा मतभेद है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार उसने अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीति को उलटकर साम्राज्य को हिन्दुओं की वफादारी से वंचित कर दिया। उनके अनुसार इसके फलस्वरूप जन-विद्रोह भड़क उठे, जिससे साम्राज्य की शक्ति क्षीण हो गई। लेकिन कुछ दूसरे इतिहासकारों का विचार है कि औरंगजेब पर नाहक दोषारोपण किया गया है। उनके अनुसार हिन्दू औरंगजेब के पूर्ववर्ती शहंशाहों की शिथिलता के कारण गैर-वफादार हो गए थे, जिससे मजबूर होकर आखिरकार उसे कड़े कदम उठाने पड़े और मुसलमानों का समर्थन प्राप्त करने की खास कोशिश करनी पड़ी, क्योंकि साम्राज्य अंततः टिका हुआ तो उन्हीं के समर्थन पर था। परन्तु औरंगजेब के सम्बन्ध में लिखी गई हाल की कृतियों में एक नई दृष्टि उभरी है जिसमें कोशिश यह की गई है कि औरंगजेब की राजनीतिक एवं धार्मिक नीतियों का मूल्यांकन उस काल की सामाजिक, आर्थिक एवं संस्थागत घटनाक्रम के सन्दर्भ में किया जाए। इसमें कोई सन्देह नहीं कि औरंगजेब के धार्मिक विचार रूढ़िवादी थे। औरंगजेब कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसका राजत्व सिद्धान्त इस्लाम का राजत्व सिद्धान्त था। औरंगजेब का प्रमुख लक्ष्य भारत को काफिरों के देश से इस्लाम देश बनाना था। औरंगजेब जीवनपर्यन्त इस उद्देश्य को न भूल सका और न कभी शासन नीति को इससे पृथक् रख सका। औरंगजेब का विश्वास था कि उससे पहले के सभी मुगलों ने सबसे गम्भीर भूल यह की थी कि उन्होंने भारत में इस्लाम की श्रेष्ठता को स्थापित करने का प्रयत्न नहीं किया था। उसके अनुसार यह इस्लाम को मानने वाले बादशाह का एक प्रमुख कर्तव्य था। इस व्यक्तिगत धारणा के अतिरिक्त परिस्थितियों ने भी औरंगजेब को धार्मिक कट्टरता की नीति अपनाने के लिए बाध्य किया था। परन्तु तब भी इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि औरंगजेब की धार्मिक कट्टरता की नीति का मुख्य आधार उसकी धार्मिक कट्टरता की स्वयं की धारणा थी। औरंगजेब की धार्मिक नीति का विश्लेषण करते हुए हम सबसे पहले नैतिक और धार्मिक नियमों का जायजा ले सकते हैं- ⦁ गायन पर प्रतिबन्ध- औरंगजेब ने दरबार में गायन बन्द करवा दिया और गायकों को पेंशन दे दी। लेकिन वाद्य-संगीत तथा नौबत (शाही बैण्ड) को जारी रखा गया। हरम में महिलाओं ने गायन जारी रखा और सरदार लोग भी गायन को प्रश्रय देते थे। इसी प्रकार औरंगजेब ने सती प्रथा पर प्रतिबन्ध लगा दिया, वेश्याओं को शादी करने अथवा देश छोड़ देने के आदेश दिए। सादगी और मितव्ययिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सिंहासन कक्ष को सस्ते और सादे ढंग से सजाने का हुक्म दिया। रेशमी कपड़ों को अस्वीकृत की दृष्टि से देखा जाता था। इसी प्रकार उसने पेशकारों और करोरियों के पद मुसलमानों के लिए आरक्षित करने की कोशिश की, लेकिन सरदारों के विरोध और योग्य मुसलमानों की कमी के कारण शीघ्र ही उसने इस नियम में संशोधन कर दिया। अब हम औरंगजेब की उन नीतियों का अवलोकन करेंगे, जिनसे दूसरे धर्मों के अनुयायियों के प्रति औरंगजेब के धर्माध व्यवहार का पता चलता है 1. सरकारी नौकरियों से हिन्दुओं को वंचित करना- औरंगजेब ने सरकारी नौकरियों में भी भेदभावपूर्ण नीति अपनाई। उसने एक आदेश जारी कर कहा कि खालसा में लगान वसूल करने वाले सभी मुसलमान हों तथा वायसराय और तालुकेदार अपने हिन्दू पेशकार और दीवानों को निकाल दें। प्रो० जदुनाथ सरकार का मत है कि औरंगजेब के शासनकाल में कानूनगो बनने के लिए मुसलमान बनना एक लोक-प्रसिद्ध कहावत हो गई थी। 2. मन्दिरों का विध्वंस- प्रो० जदुनाथ सरकार ने लिखा है कि औरंगजेब ने हिन्दू धर्म पर बड़े विषैले ढंग से आक्रमण किया। पहले तो उसने एक फरमान (1659 ई०) में यह जारी किया कि “पुराने मन्दिरों को नहीं तोड़ना चाहिए लेकिन कोई नया मन्दिर नहीं बनने देना चाहिए। किन्तु अप्रैल, 1669 में औरंगजेब का अन्तिम आदेश हुआ, जिसमें हुक्म दिया गया कि काफिरों के सब शिवालय और मन्दिर गिरा दिए जाएँ और उनकी धार्मिक प्रथाओं को दबाया जाए। इस कट्टरता के तूफान में काठियावाड़ का सोमनाथ मन्दिर, बनारस का विश्वनाथ मन्दिर, मथुरा का केशवराय मन्दिर तोड़ दिए गए और उनके स्थान पर मस्जिदें बनवा दी गईं। आमेर राज्य जो उसका व उसके पूर्वजों का मित्र रहा था, वहाँ के भी सब मन्दिर तोड़ दिए गए, उनकी मूर्तियों को मस्जिद की सीढ़ियों पर डलवा दिया ताकि पैरों तले रौंदी जा सकें। 3. जजिया कर का पुनः प्रचलन- बादशाह औरंगजेब ने 2 अप्रैल, 1679 को आदेश दिया कि कुरान के नियमों के अनुसार जिम्मी (गैर-मुसलमान) लोगों पर जजिया कर लगाया जाए। हिन्दुओं ने दिल्ली में इस कर का विरोध किया, परन्तु सुल्तान ने कोई ध्यान नहीं दिया। गौरतलब है कि 1564 ई० में अकबर ने इस घृणित कर को हटा दिया था और तब से एक शताब्दी से अधिक समय तक इसे किसी ने लागू नहीं किया था। 4. चुंगीसम्बन्धीभेदभावपूर्ण नीति – जजिया कर के अतिरिक्त हिन्दुओं से अन्य करों में भी भेदभाव किया जाता था। व्यापारिक माल पर मुस्लिमों के लिए 2.5% और हिन्दुओं के लिए 5% कर था। हिन्दुओं को धर्म-यात्रा पर भी कर देना पड़ता था। 5. बलात् धर्म परिवर्तन- सम्राट ने अनेक बार हिन्दुओं को बलपूर्वक धर्म-परिवर्तन करने के लिए भी बाध्य किया, अन्यथा उनको प्राणदण्ड देने की धमकी दी। जाट नेता गोकुल के परिवार को बलपूर्वक मुसलमान बना दिया। सिक्ख गुरु तेगबहादुर सिंह को इस्लाम स्वीकार करने के लिए अनेक यातनाएँ दी गई और अन्त में बादशाह के हुक्म से उनका सिर काट दिया गया। 6. हिन्दुओं के विरुद्ध नियम- औरंगजेब ने दीपावली पर बाजारों में रोशनी करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। होली खेलने, हिन्दू मेलों तथा धार्मिक उत्सवों पर प्रतिबन्ध लगा दिया। राजपूतों के अतिरिक्त अन्य जाति के हिन्दुओं के लिए हथियार लेकर अच्छी नस्ल के घोड़ों एवं पालकी पर चलने की प्रथा को बन्द कर दिया। 7. इस्लाम ग्रहण करने के लिए प्रलोभन- औरंगजेब ने मुसलमान बन जाने की शर्त पर हिन्दुओं को ऊँचे पद दिए जाने और कैद से छुटकारा पाने का प्रलोभन दिया। डॉ० एस० आर० शर्मा ने लिखा है कि “चाहे जो भी अपराध होता था, इस्लाम स्वीकार कर उसका प्रायश्चित हो सकता था।” |
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