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शाहजहाँ के शासनकाल में मुगल स्थापत्य कला पर क्या प्रभाव पड़ा?

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शाहजहाँ के शासनकाल में मुगल स्थापत्य कला पर प्रभाव- शाहजहाँ एक ‘शानदार’ सम्राट था तथा उसे भवन निर्माण कला से विशेष अनुराग था। यद्यपि उसके काल में सभी ललित कलाओं तथा साहित्य का पोषण हुआ किन्तु भारत में भवननिर्माण-कला का जितना विकास उसके काल में हुआ उतना और कभी नहीं हुआ। यद्यपि अकबर के समय में भी अनेक कलाकतियों का निर्माण हुआ किन्त सौन्दर्य के दष्टिकोण से शाहजहाँ के समय की कला ने उसके महान पितामह के समय की कला को भी पीछे छोड़ दिया।

अकबर द्वारा परिश्रमपूर्वक स्थापित साम्राज्य का वास्तविक उपभोग शाहजहाँ ने ही किया। यद्यपि स्वर्ण-युग का आरम्भ जहाँगीर के काल में ही हो गया था किन्तु कला-क्षेत्र में जहाँगीर नहीं वरन् शाहजहाँ का काल स्वर्ण युग माना गया है। परन्तु अनेक विद्वानों में इसमें मतभेद भी हैं। उसके काल की कलाकृतियाँ आज भी उसके समय के गौरव का गान कर रही हैं। विद्वानों के मत में शाहजहाँ यदि और कुछ निर्मित न करवाकर केवल ताजमहल ही निर्मित करवा देता तब भी उसका काल कला का स्वर्ण-युग ही माना जाता। शाहजहाँ के शासन काल में मुगल स्थापत्य कला में योगदान निम्नलिखित है

1. ताजमहल – ताजमहल शाहजहाँ की अमूल्य तथा सुन्दरतम कृति है, जिसे आगरा में यमुना के तट पर सफेद संगमरमर से निर्मित किया गया। ताजमहल का निर्माण उसने अपनी प्रिय पत्नी मुमताजमहल की स्मृति में करवाया था तथा इसी सुन्दर मकबरे में मुमताजमहल को दफनाया गया था। अन्त में शाहजहाँ की कब्र भी यहीं (मुमताजमहल की कब्र के समीप) बनाई गई। तत्कालीन इतिहासकार अब्दुल हमीद लाहौरी के अनुसार- “ताजमहल 50 लाख रुपये से 12 वर्ष में बनकर तैयार हुआ था। 1631 ई० में मुमताज की मृत्यु हुई तथा उसके एक वर्ष पश्चात् ही उसका निर्माण कार्य प्रारम्भ हो गया था। ट्रेवेनियर के अनुसार- “इस इमारत (ताजमहल) पर तीन करोड़ रुपया व्यय हुआ तथा 1653 ई० में 22 वर्ष पश्चात यह बनकर तैयार हुई। 20,000 श्रमिकों ने प्रतिदिन इस भवन के निर्माण में योगदान दिया। आज भी ताजमहल संसार की आश्चर्यजनक कलाकृतियों में अपना उच्च स्थान रखता है।

2. मुसम्मन बुर्ज – आगरा के दुर्ग में बादशाह ने कई संगमरमर के भवन बनवाए, जो उसके हरम की स्त्रियों के लिए थे। जहाँआरा तथा रोशनआरा के निवास के लिए भी उसने भवन बनवाए। इन्हीं भवनों के पास उसने मुसम्मन बुर्ज का निर्माण कराया, जो शुद्ध संगमरमर द्वारा निर्मित है तथा बहुमूल्य पत्थरों से अलंकृत है। यहीं पर ताजमहल को देखते-देखते सम्राट ने अपने प्राण त्यागे थे। इसके अतिरिक्त झरोखा-दर्शन, दौलतखाना-ए-खास उसकी अन्य इमारतें हैं, जो उसने आगरा के दुर्ग में निर्मित करवाई। जहाँआरा के कहने पर उसने एक बड़ा चौक तथा उसमें लाल पत्थरों की जामा मस्जिद निर्मित करवाई, जो 1648 ई० में, पाँच वर्ष में निर्मित हुई।

3. मोती मस्जिद – आगरा के दुर्ग में बादशाह ने एक छोटी-सी मस्जिद का निर्माण करवाया, जो शुद्ध संगमरमर की बनी है। तथा मोती मस्जिद के नाम से विख्यात है, क्योंकि मोती के समान सफेद पत्थरों द्वारा इसका निर्माण हुआ था। यह मस्जिद अपनी सादगी एवं सौन्दर्य के लिए विख्यात है तथा विद्वानों के मत में यह संसार का सर्वोत्तम पूजा-स्थल मानी जाती है।

4. जामा मस्जिद – लाल किले के सामने शाहजहाँ ने जामा मस्जिद का निर्माण करवाया, जो भारत की सबसे बड़ी मस्जिद मानी जाती है। यह लाल पत्थर की बनी है तथा 6 वर्ष में इसका निर्माण किया गया था। मस्जिद के चारों ओर सीढ़ियाँ बनी हैं तथा इसमें दस हजार व्यक्ति सामूहिक रूप से नमाज पढ़ सकते हैं।

5. शाहजहाँनाबाद – शाहजहाँ ने आगरा तथा फतेहपुर सीकरी को छोड़कर दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया तथा यमुना के किनारे उसने एक नवीन दिल्ली नगर का निर्माण कराया, जिसे उसने शाहजहाँनाबाद नाम दिया। यहाँ का किला लाल पत्थर द्वारा निर्मित है। इसके अन्दर की इमारतों में दीवान-ए-आम (जो लाल पत्थर द्वारा निर्मित है) तथा दीवान-ए-खास प्रमुख हैं। दीवान-ए-खास शुद्ध संगमरमर का बना है, जिसकी छतों पर सोने का बहुमूल्य तथा सुन्दर काम किया गया है। दीवान-ए-खास को वास्तव में पृथ्वी का स्वर्ग कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसमें संगमरमर की बनी एक ऊँची चौकी पर ‘मयूर सिंहासन’ रखा रहता था, जिसे ‘तख्त-ए-ताउस’ कहा जाता था। यह बादशाह की एक अनुपम कृति थी। दिल्ली के लाल किले की अन्य इमारतों में रंगमहल, मुमताजमहल तथा सावन-भादों प्रमुख हैं। सावन-भादों में सम्राट सावन व भादों के महीनों में विहार करता था।

6. जहाँगीर का मकबरा – लाहौर से चार मील दूर शाहदरा में शाहजहाँ ने अपने पिता का छोटा किन्तु भव्य मकबरा निर्मित करवाया।

7. मयूर सिंहासन – सुन्दरतम कलाकृतियों में, जिनका निर्माण शाहजहाँ के काल में हुआ, मयूर सिंहासन का उच्च स्थान है। इस सिंहासन के निर्माण में 14 लाख रुपये का सोना खर्च हुआ। इसकी लम्बाई सवा-तीन गज, चौड़ाई दो गज तथा ऊँचाई 5 गज थी। इस सिंहासन में 12 स्तम्भ तथा जवाहरातों से निर्मित दो मोर थे। सात वर्ष में यह बनकर तैयार हुआ।
1739 ई० में नादिरशाह ने जब भारत पर आक्रमण किया तो वह इस बहुमूल्य सिंहासन को अपने साथ ले गया। उपर्युक्त महत्वपूर्ण भवनों के अतिरिक्त शाहजहाँ ने कुछ अन्य कलाकृतियों का भी निर्माण करवाया। दिल्ली मे उसने निजामुद्दीन औलिया का मकबरा बनवाया, जिसमें संगमरमर का भी प्रयोग किया गया है। अजमेर में उसने एक मस्जिद तथा एक सुन्दर मकबरे का निर्माण कराया, जो शेख मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के पश्चिम की ओर स्थित है। शाहजहाँ को सुन्दर उद्यानों से भी विशेष प्रेम था। उसने अपनी सभी इमारतों में सुन्दर उद्यान बनवाए। कश्मीर के शालीमार बाग तथा चश्मेशाही और लाहौर के शालीमार बाग उसी की देन हैं।



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