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बाजार का शास्त्र किसको कहा गया है? उसको मायावी, सरासर औंधा तथा अनीतिशास्त्र कहने का क्या कारण है?

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बाजार का शास्त्र अर्थशास्त्र को कहा गया है। अर्थशास्त्र बाजार का पोषण करता है। वह बताता है कि माल का प्रदर्शन पूर्ण विज्ञापन करके किस तरह ग्राहक को आकर्षित किया जाय तथा उसको अनावश्यक चीजों को खरीदने के लिए प्रेरित तथा प्रोत्साहित किया जाय। इस प्रकार अर्थशास्त्र विक्रेता को अधिक से अधिक धन कमाने का गुर सिखाता है। वह क्रेता के शोषण के उपाय बताता है। लेखक ने अर्थशास्त्र को मायावी, सरासर औंधा तथा अनीतिशास्त्र कहा है। ऐसा कहना अकारण नहीं है। माया का अर्थ है-छल-कपट आजकल उपभोक्तावाद का युग है। अर्थशास्त्र अर्थ की उचित सामाजिक व्यवस्था करके छल-कपट द्वारा अधिकाधिक धनोपार्जन के उपाय बताता है। वह बाजार में अनुचित विज्ञापन से ग्राहकों को आकर्षित करके उनके शोषण का द्वारा खोलता है। अर्थशास्त्र मायावी है तथा सरासर औंधा है। वह समाज के हित में काम न करके उसका अहित करता है। समाज में उसके कारण अमीरी-गरीबी तथा आर्थिक विषमता का जन्म होता है। वह अपने नाम के विपरीत अनर्थ का काम करता है। वह नीति का नहीं अनीति का शास्त्र है। नीति का अर्थ सही और समानतापूर्ण उपार्जन तथा वितरण है। इसके विपरीत जो होता है, वह अनीति है। अर्थशास्त्र द्वारा प्रेरित बाजार-व्यवस्था आर्थिक असमानता की नीति को ही जन्म देती है। इस व्यवस्था से उपार्जित धन दानाय’ न होकर ‘मदाय’ ही होता है। उसके कारण ही राष्ट्रीय धन के नब्बे प्रतिशत पर दस प्रतिशत लोगों का अधिकार हो जाता है।



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