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“बाजार दर्शन’ निबन्ध में परमात्मा तथा मनुष्य में क्या अन्तर बताया गया है? मनुष्य को मन को बन्द करने का अधिकार क्यों नहीं है?

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‘बाजार दर्शन’ निबन्ध के लेखक ने बताया है कि परमात्मा स्वयं पूर्ण है। उसमें कोई इच्छा नहीं है। उसको शून्य कहा गया है। मनुष्य अपूर्ण है। उसके मन में इच्छाएँ उत्पन्न होना स्वाभाविक है, मनुष्य की पहचान उसकी अपूर्णता तथा इच्छाओं से परे होना है। उसमें इच्छाएँ रहती हैं। इच्छाओं से मुक्त होकर वह पूर्ण तथा शून्य हो जायेगा। अपनी अपूर्णता के रहते मनुष्य को मन को बन्द अर्थात् इच्छा शून्य करने का अधिकार नहीं है।



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