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बाल-अपराध के जैविकीय तथा शारीरिक कारकों का उल्लेख कीजिए।

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अनेक मनोवैज्ञानिकों तथा अपराधशास्त्रियों ने अपने अध्ययन और खोजों के आधार पर बाल-अपराधियों के जैविकीय तथा शारीरिक कारणों की पुष्टि की है। हूटन ने 668 अपराधियों तथा अपराधी की परस्पर तुलना करके बताया कि अपराध को मुख्य कारण ‘जैविकीय हीनता’ है। बर्ट, हीली व ब्रोनर, ग्ल्यूक तथा हिर्श व थर्स्टन ने संकेत दिया है कि अपराधियों में शारीरिक कारक (Physical Factors) अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इसी प्रकार गिलिन एवं गिलिन के अध्ययनों से पता चला है कि शारीरिक दोषों के कारण बहुत-से बालक अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असमर्थ हो जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप वे बहुत से समाज-विरोधी कार्यों में लग जाते हैं। अन्धापन, बहरापन, लँगड़ाना, हकलाना, तुतलाना, बहुत ज्यादा मोटे-पतले या नाटे तथा इसी तरह से विकृतियों के कारण बालक सामान्य बालकों से अलग हो जाते हैं जिससे उसके आचरण में भिन्नता आ जाती है। कुरूप, काने और लँगड़े बालकों को अक्सर लोग चिढ़ाते हैं जिसकी प्रतिक्रिया में वे असामाजिक कार्य कर डालते हैं निष्कर्षत: शारीरिक हीनता व विकृति के कारण बालक को समाज में असफलता मिलती है जो उसके अपराध का कारण बनती है।

बाल-अपराध से सम्बन्धित प्रारम्भिक अध्ययनों से ज्ञान होता है कि अपराधी बालकों में वंशानुक्रम या पैतृकता (Heredity) का भी महत्त्वपूर्ण प्रभाव होता है। वंशानुक्रम तथा पर्यावरण दोनों ही अपराध के लिए उत्तरदायी हैं। एक जन्मजात कारक है और दूसरा अर्जित कारक। बालक में कुछ जन्मजात गुण निहित होते हैं और ये गुण किन्हीं निश्चित परिस्थितियों से एक विशेष प्रकार का परिणाम देते हैं। अच्छी परिस्थतियों में अच्छा परिणाम तथा बुरी परिस्थितियों में बुरा परिणाम निकलता है। गाल्टन, गोडार्ड तथा डगडेल के निष्कर्षों से पुष्ट होता है कि वंशानुक्रम ही अपराध का प्रमुख कारण है, क्योंकि ‘ज्यूक्स’ तथा कालीकाक’ आदि अपराधी वंशों में उत्पन्न अधिकांश सन्तानें बड़ी होकर अपराधी बनीं। सीजर, लाम्ब्रोसो तथा फैरी का कथन है कि बाल-अपराधों का सम्बन्ध शारीरिक विशेषताओं से है। विभिन्न शारीरिक गुण; यथा स्नायविक संस्थान, रक्त की संरचना, ग्रन्थीय बनावट आदि वंशानुक्रम द्वारा ही संक्रमित होते हैं जिनकी विशिष्ट अवस्थाएँ बालक को अपराध करने के लिए प्रेरित करती हैं।



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