1.

“भारत का विकास वस्तुतः पंचवर्षीय योजनाओं से प्रारम्भ हुआ था।” टिप्पणी कीजिए।

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स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत की आर्थिक व्यवस्था अत्यन्त जर्जर थी। भारत की स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् अर्थव्यवस्था की पुननिर्माण प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। इस उद्देश्य से विभिन्न नीतियाँ और योजनाएँ बनाई गईं। और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से क्रियान्वित की गई। स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की प्राथमिकताओं में से पहली प्राथमिकता भारत के आर्थिक ढाँचे को मजबूत करना था। इसके लिए उन्होंने 1950 ई० में राष्ट्रीय योजना आयोग की स्थापना की। इस आयोग के अन्तर्गत 16 माह के गहन विचार-विमर्श के पश्चात् देश के आर्थिक विकास हेतु पंचवर्षीय योजनाकाल का जन्म हुआ। प्रथम पंचवर्षीय योजना का प्रारम्भ 1 अप्रैल, 1951 ई० को हुआ। अब तक ग्यारह पंचवर्षीय योजनाएँ पूरी हो चुकी हैं। वर्तमान में बारहवीं पंचवर्षीय योजना जारी है जिसका कार्यकाल 2012-2017 है। भारत में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में रखे गए उद्देश्यों को मुख्य रूप से चार भागों में विभाजित किया जा सकता है-

⦁    विकास

⦁    आधुनिकरण

⦁    आत्मनिर्भरता, तथा

⦁    सामाजिक न्याय।

पंचवर्षीय योजनाओं की विकास सम्बन्धी उपलब्धियाँ- पंचवर्षीय योजनाओं की विकास उपलब्धि को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है

1. विकास दर- आर्थिक प्रगति का महत्त्वपूर्ण मापदण्ड विकास की दर के लक्ष्य की प्राप्ति है। प्रथम योजना में आर्थिक विकास की दर 3.6% थी, जो बढ़कर आठवीं योजना में 6.5% हो गई। नवीं पंचवर्षीय योजना में यह 5.5% रही। दसवीं पंचवर्षीय योजना में विकास दर 9% रही। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में 12% का लक्ष्य रखा गया तथा 12 वीं योजना (2012-2017) में 9 प्रतिशत का लक्ष्य है।

2. राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय- योजनाकाल में राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई है। भारत में 1950 51 ई० में चालू मूल्यों के आधार पर शुद्ध राष्ट्रीय आय 8,525 करोड़ रुपए थी, जो कि 2001-02 में बढ़कर 19,51,935 करोड़ रु०,2002-03 में 19,95,229 करोड़ रु०, 2009-10 में 51,88,361 करोड़ रु० हो गई, जबकि प्रति व्यक्ति आय 237.5 रु० से बढ़कर 2009-10 में 44,345 रु० हो गई।

3. कृषि उत्पाद- योजनाकाल में कृषि उत्पादन में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। सन् 1950-51 में खाद्यान्नों का कुल उत्पादन मात्र 50.8 मिलियन टन था, जो 2010-11 में बढ़कर 241.56 मिलियन टन हो गई।

4. औद्योगिक उत्पादन- योजनकाल में औद्योगिक उत्पादन में तीव्र गति से वृद्धि हुई। 1950-51 ई० में, 1993-94 ई० की कीमतों पर औद्योगिक उत्पादन सूचकांक 7.9 था जो बढ़कर 167 हो गया। दसवीं पंचवर्षीय योजना की समाप्ति पर उद्योग उत्पादन क्षेत्र में 8.75% की वृद्धि हो गई।

5. बचत एवं विनियोग- योजनाकाल में भारत में बचत एवं विनियोग की दरों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। चालू मूल्य पर | सकल राष्ट्रीय आय के प्रतिशत के रूप में 1950-51 ई० में सकल विनियोग और बचत की दरें क्रमशः 10.4% और 9.3% थीं, दसवीं पंचवर्षीय योजना के अन्त में ये क्रमश: 7.8% और 26.62% थीं। निवेश 28.10% रहा।

6. यातायात एवं संचार- यातायात एवं संचार के क्षेत्र में योजनाकाल में उल्लेखनीय प्रगति हुई। रेलवे लाइनों की लम्बाई 53,596 किलोमीटर से बढ़कर 31 मार्च, 2010 को 63,974 किलोमीटर हो गई। सड़कों की लम्बाई 1,57,000 किलोमीटर से बढ़कर 32 लाख किलोमीटर हो गई। हवाई परिवहन, बन्दरगाहों की स्थिति एवं आन्तरिक जलमार्ग का भी विकास किया गया। संचार-व्यवस्था के अन्तर्गत विकास के क्षेत्रों में डाकखानों, टेलीग्राफ, रेडियो-स्टेशन एवं प्रसारण केन्द्रों की संख्या में भी पर्याप्त वृद्धि हुई।

7. शिक्षा- योजनाकाल में शिक्षा का भी व्यापक प्रसार हुआ है। इस अवधि में स्कूलों की संख्या 2,30,683 से बढ़कर  8,21,988 तथा विश्वविद्यालयों और समान संस्थाओं की संख्या 27 से बढ़कर 315 हो गई।

8. विद्युत उत्पादन क्षमता- योजनाकाल में विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। अगस्त 2004 ई० के आँकड़ोंके अनुसार उत्तर प्रदेश में विद्युत की प्रति व्यक्ति वार्षिक खपत केवल 188 यूनिट है, जो राष्ट्रीय औसत का 50 प्रतिशत है। सन् 2012 ई० की समाप्ति तक नाभकीय विद्युत उत्पादन 10 हजार मेगावाट होने की सम्भावना है।

9. बैंकिग संरचना- प्रथम योजना के आरम्भ  में देश में बैंकिग क्षेत्र अपर्याप्त और असन्तुलित था, परन्तु योजनाकाल में और विशेष रूप से बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पश्चात् देश की बैंकिग संरचना में उल्लेखनीय परिवर्तन हुआ है। 30 जून, 1969 ई० को व्यापारिक बैंकों की शाखाओं की संख्या 8,262 थी, जो कि 31 मार्च, 2009 ई० में बढ़कर 80,547 हो गई।

10. स्वास्थ्य सुविधाएँ- योजनाकाल में देश में स्वास्थ्य सुविधाओं में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई। टी० बी०, कुछ महामारियों आदि के उन्मूलन तथा परिवार कल्याण कार्यक्रमों में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई।

11. आयात एवं निर्यात- केन्द्र सरकार ने 31 अगस्त, 2004 ई० को विदेशी नीति 2004-09 ई० की घोषणा कर दी है। वर्ष 2010-11 ई० में भारत का निर्यात 11,42,649 करोड़ रुपए तथा आयात 16,83,467 करोड़ रुपए रहा।
पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा भारत का आधुनिकीकरण- आधुनिककरण के क्षेत्र में प्रमुख उपलब्धियों को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

1. कृषि का आधुनिकीकरण- भारत एक कृषि प्रधान देश है; अत: कृषि-संरचना में व्यापक सुधार एवं आधुनिकीकरण पर विशेष ध्यान दिया गया। योजनाकाल में भूमिसुधार कार्यक्रमों का विस्तार किया गया है। रासायनिक खाद व उन्नत बीजों का प्रयोग भी बढ़ा है। कृषि क्षेत्र में आधुनिक कृषि-यन्त्रों एवं उपकरणों को प्रोत्साहन मिला है। इसके अतिरिक्त, सिंचाई सुविधाओं में भी पर्याप्त मात्रा में वृद्धि हुई है। कृषि उपजों की विपणन व्यवस्था तथा कृषि वित्त-व्यवस्था में भी उल्लेखनीय सुधार हुए हैं।

2. राष्ट्रीय आय की संरचना में परिवर्तन- राष्ट्रीय आय की संरचना में योजनाकाल में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। राष्ट्रीय आय में प्राथमिक क्षेत्र का अनुपात निरन्तर घट रहा है, जबकि द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र का अनुपात निरन्तर बढ़ रहा है।

3. औद्योगिक संरचना में परिवर्तन- योजनाकाल में औद्योगिक संरचना में भी उल्लेखनीय परिवर्तन हुए है। आधारभूत एवं पूँजीगत उद्योगों की स्थापना की गई है, सार्वजनिक उपक्रमों की संख्या में वृद्धि हुई है, उद्योगों का विविधीकरण हुआ है। तथा उत्पादन तकनीक में व्यापक सुधार हुआ है।

4. बैंकिग संरचना में परिवर्तन- योजनाकाल में बैंकिग व्यवस्था को सुव्यवस्थित, सुगठित एवं विस्तृत किया गया है। ग्रामीण और बैंकरहित क्षेत्रों में बैंकिग सुविधाओं का विस्तार किया गया है, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना की गई है, बैंक साख के वितरण में व्यापक सुधार तथा बैंकिग सुविधाओं में गुणात्मक परिवर्तन किए गए हैं।

    आत्मनिर्भरता- हमारा देश आर्थिक नियोजन के काल में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हुआ है। पहले जिन वस्तुओं का आयात किया जाता था, आज वे वस्तुएँ हमारे ही देश में निर्मित होने लगी हैं तथा उनका निर्यात भी किया जा रहा है। देश में भारी मशीनें व विद्युत उपकरण आदि भी पर्याप्त मात्रा में तैयार होने लगे हैं। खाद्यान्नों के सम्बन्ध में देश आत्मनिर्भरता प्राप्त कर चुका है। विदेशी सहायता भी पहले की अपेक्षा कम ही ली जा रही है।

⦁    सामाजिक न्याय- योजनाकाल में सामाजिक न्याय की दृष्टि से मुख्य रूप से दो पहलुओं पर ध्यान दिया गया है- प्रथम, समाज के निर्धन वर्ग के जीवन-स्तर में सुधार किया जाए तथा द्वितीय, धन एवं सम्पत्ति के वितरण में समानता लाई जाए। इस दृष्टि से विभिन्न प्रेरणात्मक एवं संवैधानिक उपाय किए गए हैं, यद्यपि उनसे आशातीत परिणामो की प्राप्ति तो नहीं हो पाई है, परन्तु कुछ सुधार अवश्य हुए हैं।उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम कह सकते हैं कि भारत का विकास वास्तविक रूप से पंचवर्षीय योजनाओं के द्वारा आरम्भ हुआ।



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