InterviewSolution
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                                    भारतीय संविधान की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। | 
                            
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Answer»  संविधान एक महत्वपूर्ण प्रलेख है, जिसमें ऐसे नियमों का संग्रह होता है जिसके आधार पर किसी देश का शासन संचालित होताहै। संविधान किसी देश में दीपशिखा का काम करता है, जिसके प्रकाश में देश का शासन संचालित होता है। भारत के संविधान की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं 1. संविधान की प्रस्तावना- प्रत्येक देश के संविधान के प्रारम्भ में सामान्यतया एक प्रस्तावना होती है, जिसमें संविधान के मूल उद्देश्यों व लक्ष्यों को स्पष्ट किया जाता है। वास्तव में, प्रस्तावना संविधान का अंग नहीं होता है। बल्कि इसके द्वारा संविधान के स्वरूप का आभास हो जाता है। वस्तुतः इस प्रस्तावना में भारतीय संविधान का मूल दर्शन निहित है। संविधान के 42 वें संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा प्रस्तावना में समाजवादी, पंथनिरपेक्ष तथा अखण्डता शब्द जोड़कर इसकी गरिमा को और भी अधिक बढ़ा दिया गया है। 2. लिखित, निर्मित और विस्तृत संविधान- भारतीय संविधान अनेक प्रगतिशील देशों कनाडा, फ्रांस, अमेरिका आदि की भाँति एक लिखित संविधान है। इसका निर्माण एक संविधान सभा द्वारा किया गया था। यह विश्व का सबसे बड़ा संविधान है। डॉ० जेनिंग्स के अनुसार, “भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा, विशाल और व्यापक संविधान है। 3. सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न लोकतन्त्रात्मक गणराज्य- संविधान की प्रस्तावना में भारत को सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न लोकतन्त्रात्मक गणराज्य घोषित किया गया है। सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न का अर्थ है कि भारत अब बाह्य एवं आन्तरिक क्षेत्र में सभी प्रकार से पूर्ण स्वतन्त्र है। भारतवर्ष में लोकतन्त्रात्मक शासन भी है। 4. संघात्मक संविधान- संविधान द्वारा भारत में संघात्मक शासन की स्थापना की गई है। संविधान के अनुसार, भारत राज्यों का एक संघ है।” अत: इसमें संघात्मक संविधान के सभी तत्व विद्यमान हैं। यद्यपि संविधान का ढाँचा संघात्मक बनाया गया है, परन्तु उसकी आत्मा एकात्मक है, क्योंकि संविधान में अनेक ऐसे एकात्मक तत्व विद्यमान हैं जो एकात्मक शासन-व्यवस्था में ही पाए जाते हैं। 5. धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना- संविधान की प्रस्तावना में 42 वें संवैधानिक संशोधन के द्वारा ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोड़ा गया है। धर्मनिरपेक्ष का तात्पर्य है कि राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होगा। जनता के लोग अपना धर्म चुनने या धर्म परिवर्तन करने के लिए स्वतन्त्र होंगे, और किसी भी पूजा-पद्धति को अपना सकेंगे। 6. संसदात्मक शासन-प्रणाली- भारत ने संसदात्मक प्रणाली को अपनाया है। इसमें शासन करने की वास्तविक शक्ति राष्ट्रपति में नहीं अपितु उसके द्वारा नियुक्त मन्त्रिपरिषद् में हित होती है। 7. राज्य के नीति-निदेशक तत्व- ये तत्व सरकार को दिशा-निर्देश देने और उसका मार्गदर्शन करने वाले बिन्दु हैं, जिनका अनुसरण करना प्रजातान्त्रिक सरकारों का दायित्व होता है। ये नीति-निदेशक तत्व आयरलैण्ड के संविधान से ग्रहण किए गए हैं। 8. नागरिकों के मूल अधिकार- भारत के संविधान में नागरिकों के मूल अधिकारों की समुचित रूप से व्यवस्था की गई है। न्यायपालिका (उच्चतम न्यायालय) को इनका संरक्षक बनाया गया है, परन्तु ये अधिकार पूर्णतया असीमित तथा अनियन्त्रित नहीं हैं। संविधान द्वारा नागरिकों को सात मौलिक अधिकार प्रदान किए गए थे, परन्तु 44 वें संविधान संशोधन द्वारा ‘सम्पत्ति के अधिकार’ को मौलिक अधिकार की श्रेणी से अलग कर दिया गया है और अब सम्पत्ति का अधिकार केवल एक कानूनी अधिकार रह गया है। इस प्रकार नागरिकों को अब छह मौलिक अधिकार प्राप्त हैं। 9. मूल कर्तव्यों का वर्णन- मूल कर्तव्यों की धारणा भारत के संविधान में पूर्व सोवियत संघ के संविधान से ली गई है। इनमें नागरिकों से अपील की गई है कि वे संविधान का पालन करें, देश की रक्षा करें, राष्ट्र-सेवा करें, हिंसा से दूर रहें तथा सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखें आदि। 10. अस्पृश्यता का अन्त- संविधान के भाग III अनुच्छेद 17 के आधार पर अस्पृश्यता का अन्त कर दिया गया है। अत: अब छुआछूत की दूषित मनोवृत्ति पर आधारित आचरण करने वाला व्यक्ति अपराधी समझा जाएगा और दण्ड का भागीदार होगा। इस प्रकार संविधान ने देश में सामाजिक समानता स्थापित करने का प्रयत्न किया है। 11. महिलाओं को समान अधिकार- भारतीय संविधान ने नारियों को पुरुषों के समान आदर व सम्मान प्रदान किया है। उन्हें वे समस्त अधिकार प्रदान किए गए हैं, जो पुरुषों को प्राप्त हैं। ऊँचे पदों पर काम करने, मतदान करने, स्वयं चुनाव लड़ने आदि कई अधिकार संविधान ने उन्हें प्रदान किए हैं। सार्वभौमिक अथवा वयस्क मताधिकार- भारतीय संविधान के 61 वें संविधान संशोधन के अनुसार 18 वर्ष की आयु प्राप्त नागरिकों को बिना जाति, धर्म, लिंग, वर्ण के भेदभाव के मतदान का अधिकार प्रदान किया गया है। स्वतन्त्र, निष्पक्ष एवं शक्तिसम्पन्न न्यायपालिका- संविधान में एक सर्वोच्च न्यायालय की व्यवस्था की गई है, जो संविधान के रक्षक के रूप में कार्य करता है। स्वतन्त्र और निष्पक्ष न्याय के लिए न्यायपालिका को कार्यपालिका के नियन्त्रण से मुक्त रखा गया है 12.संकटकालीन उपबन्ध- भारतीय संविधान में कुछ आपातकालीन नियम भी उल्लिखित हैं, जिनके आधार पर संकटकाल में समस्त शक्तियाँ केन्द्र के पास आ जाती हैं अर्थात् संघीय शासन एकात्मक शासन में परिवर्तित हो जाता है। इससे देश की असामान्य स्थिति पर शीघ्र नियन्त्रण कर लिया जाता है। कठोर एवं लचीले संविधान का सम्मिश्रण- भारतीय संविधान कठोर तथा लचीलेपन का सुन्दर समन्वय है। भारतीय संविधान के कुछ अनुच्छेद ऐसे हैं, जिनमें अकेले संसद साधारण कानून की भाँति ही संशोधन कर सकती है तथा कुछ अनुच्छेद ऐसे हैं, जिनमें संशोधन करने के लिए संसद के दो-तिहाई बहुमत के साथ-साथ राज्यों के कम-से-कम आधे विधानमण्डलों की सहमति भी आवश्यक है। 13. विश्व- शान्ति व सार्वभौमिक मैत्री का पोषक- संविधान के 51 वें उपबन्ध के अन्तर्गत यह भी उल्लेख किया गया है कि भारत विश्व के अन्य राष्ट्रों के साथ सह-अस्तित्व की भावना रखते हुए विश्व-शान्ति और सुरक्षा में सकारात्मक सहयोग देगा। 14.अल्पसंख्यक वर्गों के हितों की पूरी सुरक्षा- संविधान में अल्पसंख्यकों के हितों तथा जनजातियों और आदिवासियों की उन्नति हेतु भी विशेष संवैधानिक व्यवस्थाएँ की गई हैं। भारतीय संविधान में अनुसूचित जातियों तथा जनजाति के नागरिकों को सेवाओं, विधानसभाओं तथा अन्य क्षेत्रों में विशेष संरक्षण प्रदान किया गया है। 15. कानून का शासन- भारत के संविधान में कानून के शासन की व्यवस्था की गई है। विधि के शासन की अवधारणा ग्रेट ब्रिटेन के संविधान से ली गई है। भारत में कानून के समक्ष सभी नागरिक एकसमान हैं। कानून व दण्ड विधान की पद्धति सभी के लिए एक जैसी है। 16. बहुदलीय संसदीय व्यवस्था- भारत ने द्वि-दलीय पद्धति अथवा एकल-पद्धति को न अपनाकर बहुदलीय पद्धति पर आधारित संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया है। बहुदलीय व्यवस्था होने के कारण संसद में समाज के सभी वर्गों के प्रतिनिधित्व की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं तथा जनता को अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए अनेक विकल्प भी मिलते हैं।  | 
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