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भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।

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भारतीय संविधान के तृतीय भाग में अनुच्छेद 12 से 35 तक मौलिक अधिकारों का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। मूल अधिकार वे अधिकार होते हैं जिन्हें देश के सर्वोच्च कानून में स्थान प्राप्त होता है तथा जिनका उल्लंघन कार्यपालिका तथा विधायिका भी नहीं कर सकती है। मूलतः संविधान द्वारा नागरिकों को सात मौलिक अधिकार प्रदान किए गये, परन्तु 44 वें संवैधानिक संशोधन के अनुसार ‘सम्पत्ति के अधिकार’ को मौलिक अधिकारों की श्रेणी से निकाल दिया गया है, अब यह अधिकार एक कानूनी अधिकार रह गया है। भारतीय संविधान में निम्नलिखित छ: मौलिक अधिकारों का समावेश है]

⦁    समानता का अधिकार
⦁    स्वतन्त्रता का अधिकार

⦁    शोषण के विरुद्ध अधिकार
⦁    धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार

⦁    संस्कृति और शिक्षा-सम्बन्धी अधिकार ।
⦁    संवैधानिक उपचारों का अधिकार भारतीय संविधान में उपरोक्त मौलिक अधिकारों का समावेश कर एक प्रगतिशील कदम उठाया गया है। इससे सरकार की

निरकुंशता पर नियन्त्रण किया गया है। जहाँ तक मौलिक अधिकारों पर लगे प्रतिबन्धों या आपातकाल में उनके स्थगन का प्रश्न है, हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि वे प्रतिबन्ध राष्ट्र-हित, सार्वजनिक कल्याण तथा भारतीय लोकतंत्र के स्वरूप को विकृतियों से बचाने के लिए लगाये गये हैं। परन्तु न्याय पालिका के स्वतन्त्र होने के कारण नागरिक अपने अधिकारों की रक्षा के लिए इस पर विश्वास कर सकते हैं।” मौलिक अधिकारों का संविधान में उल्लेख कर देने से उनके महत्व और सम्मान में वृद्धि होती है। इससे उन्हें साधारण कानून से अधिक उच्च स्थान और पवित्रता प्राप्त हो जाती है। इससे वे अनुल्लंघनीय होते हैं। व्यवस्थापिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका के लिए उनका पालन आवश्यक हो जाता है।



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